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संघर्ष की आग में तपकर कुंदन बने आस्ट्रेलिया में जीत के ये शिल्पकार

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Bhasha
चोटिल विहारी आखिरी टेस्ट से बाहर, इंग्लैंड के खिलाफ खेलना संदिग्ध, जडेजा की जगह ले सकते हैं शारदुल

ब्रिसबेन, 19 जनवरी (भाषा) प्रतिकूल परिस्थितियों में ही प्रतिभा के प्रसून प्रस्फुटित होते हैं और इसे चरितार्थ कर दिखाया आस्ट्रेलिया में जीत का इतिहास रचने वाले भारत के युवा क्रिकेटरों ने । मैदान के भीतर ही नहीं , बाहर भी चुनौतियों का सामना करके यहां तक आये इन युवाओं को हार नहीं मानने का जज्बा मानों विरासत में मिला है ।

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भारतीय जीत के शिल्पकार रहे खिलाड़ियों में जज्बे की कोई कमी नहीं दिखी। मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में टीम ने जो जज्बा दिखाया वह तारीफ के काबिल रहा। इस टीम में कोई खिलाड़ी बडे शहर था तो किसी ने छोटे शहर से अपनी सफलता की कहानी लिखनी शुरू कर दी थी।

ऐसे ही कुछ खिलाड़ियों के संघर्ष की कहानी को जानते है।

ऋषभ पंत: रूडकी को हमेशा से बेहतरीन आईआईटी सहित कुछ बेहतरीन इंजीनियरिंग कॉलेज के तौर पर जाना जाता है लेकिन यह ऋषभ पंत का घरेलू शहर है। पंत बचपन के दिनों में अपनी मां के साथ दिल्ली के सोन्नेट क्लब में अभ्यास करने के बाद कई बार गुरूद्वारा में आराम करते थे। उन्होंने पिता राजेन्द्र के निधन के बाद भी आईपीएल में मैच खेलना जारी रखा था।’’

मोहम्मद सिराज: सिराज हैदराबाद के ऑटो चालक मोहम्मद गौस के बेटे है। टीम के साथ उनके ऑस्ट्रेलिया पहुंचने के बाद उनके पिता का निधन हो गया लेकिन उन्होंने टीम के साथ बने रहने का फैसला किया। वह अपनी पहली श्रृंखला में पांच विकेट चटकाने का कारनामा कर इसे पिता को समर्पित करते समय भावुक हो गये। इस युवा खिलाड़ी ने दौरे पर नस्लवादी दुर्व्यवहार का सामना करने के बाद भी खुद को संभाले रखा और प्रदर्शन पर इसकी आंच नहीं आने दी।

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नवदीप सैनी: करनाल के बस चालक के बेटे सैनी एक हजार रूपये में दिल्ली में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलते थे। दिल्ली के प्रथम श्रेणी खिलाड़ी सुमित नरवाल उन्हें रणजी ट्रॉफी के नेट अभ्यास के लिए ले आए, जहां तत्कालीन कप्तान गौतम गंभीर ने उन्हें टूर्नामेंट के लिए चुना। गंभीर को हालांकि इसके लिए विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि वह दिल्ली से बाहर के खिलाड़ी थे। गंभीर अपने फैसले पर अड़े रहे और सैनी को टीम से बाहर करने पर इस्तीफे की धमकी भी दे दी।

शुभमन गिल: विराट कोहली के उत्तराधिकारी (भविष्य का भारतीय कप्तान) के तौर पर देखे जा रहे इस खिलाड़ी का जन्म पंजाब के फाजिल्का के एक गांव में संपन्न किसान परिवार में हुआ। उनके दादा ने अपने सबसे प्यारे पोते के लिए खेत में ही पिच तैयार करवा दी थी। उनके पिता ने बेटे की क्रिकेट की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए चंडीगढ में रहने का फैसला किया। वह भारत अंडर -19 विश्व कप टीम के सदस्य थे। हाल ही में, अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से उन्होंने किसानों के विरोध को अपना समर्थन दिया था।

चेतेश्वर पुजारा: राजकोट का यह खिलाड़ी ज्यादा भावनाएं व्यक्त नहीं करता । मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर वह मानसिक रूप से मजबूत खिलाड़ी बने जिसमें उनके पिता एवं कोच अरविंद पुजारा का काफी योगदान रहा। उन्होंने जूनियर क्रिकेट खेलते हुए उनकी मां का निधन हो गया था लेकिन वह लक्ष्य से नहीं भटके।

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शारदुल ठाकुर: पालघर के इस खिलाड़ी ने 13 साल की उम्र में स्कूल क्रिकेट (हैरिश शिल्ड) में एक ओवर में छह छक्के लगाये थे। वह विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल के छात्र रहे है जहां भारतीय उपकप्तान रोहित शर्मा भी पढ़ते थे। इन दोनों खिलाड़ियों को दिनेश लाड ने कोचिंग दी है।

वाशिंगटन सुंदर: उनके पिता ने अपने मेंटोर पीडी वाशिंगटन को श्रद्धांजलि देने के लिए सुंदर के नाम के साथ वाशिंगटन जोड़ा। वह 2016 में अंडर-19 टीम में सलामी बल्लेबाज थे। उनकी ऑफ स्पिन गेंदबाजी देखकर राहुल द्रविड और पारस महाम्ब्रे ने उन्हें गेंदबाजी पर ध्यान देने की सलाह दी।

टी नटराजन : तमिलनाडु के सुदूर गाँव छिन्नप्पमपट्टी के इस खिलाड़ी दिहाड़ी मजदूर का बेटा है जिसके पास गेंदबाजों के लिए जरूरी स्पाइक्स वाले जूते खरीदने के भी पैसे नहीं थे। वह अपनी जड़ों को नहीं भूले और उन्होंने अपनी गांव में क्रिकेट अकादमी शुरू की है।

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अजिंक्य रहाणे (कप्तान) : बचपन के दिनों में क्रिकेट खेलने के लिए लोकल ट्रेन से मुलुंड से आजाद और क्रास मैदान की यात्रा करने वाले रहाणे कराटे चैम्पियन (ब्लैक बेल्ट) रहे है। उनका कौशल पूर्व भारतीय बल्लेबाज प्रवीण आमरे की देखरेख में निखरा।

क्या आपको पता है रहाणे ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण पाकिस्तान में किया था? जी हां, यह मैच रणजी चैम्पियन मुंबई और कायदे आजम ट्राफी चैम्पियन कराची अर्बन्स के बीच खेला गया था।

भाषा आनन्द मोना

मोना

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