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Kundalpur Jain Temple: यहां बन रहा दुनिया का सबसे बड़ा जैन मंदिर, बिना लोहा और सीमेंट के हो रहा निर्माण

मध्‍य प्रदेश के दमोह जिले के कुण्‍डलपुर में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का दुनिया का सबसे उंचे मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है।

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Bansal News
Kundalpur Jain Temple: यहां बन रहा दुनिया का सबसे बड़ा जैन मंदिर, बिना लोहा और सीमेंट के हो रहा निर्माण

दमोह। Kundalpur Jain Temple: मध्‍य प्रदेश के दमोह जिले के कुण्‍डलपुर में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का दुनिया का सबसे उंचे मंदिर का निर्माण हो रहा है। जिसका निर्माण नागर शैली में कराया जा रहा है।

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कुण्डलपुर में बन रहे इस जैन मंदिर का निमार्ण कार्य पिछले 16 सालों से जारी है। बताया जाता है कि यहां करीब एक हजार साल पुरानी प्रतिमा स्थापित की जा रही है।

बिना लोहा और सीमेंट से हो रहा निर्माण

बता दें कि यह मंदिर 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर बन रहा है, जिसका शिखर 189 फीट ऊंचा है। बता जा रहा है दुनिया में अब तक इतना ऊंचा मंदिर नहीं बना है।

मंदिर की खासियत है कि इसे लोहा और सीमेंट का उपयोग किए बगैर ही बनाया जा रहा है, इस मंदिर की डिजाइन सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है।

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म‍ंदिर निर्माण में गुजरात और राजस्थान से लाल-पीले पत्थर लाए जा रहे हैं। साथ ही इन्‍हें जोड़ने के लिए एक विशेष तकनीक का उपयोग किया गया जा रहा है।

189 फीट शिखर वाले जैन मंदिर का निर्माण कार्य करीब 600 करोड़ रूयए की लगात से किया जा रहा है। पत्थरों से बन रहे इस मंदिर की दीवरों पर दिलवाड़ा और खजुराहो की तर्ज पर शानदार नक्‍काशी की जा रही है।

छत्रसाल ने बनवाया था मंदिर

कुंडलपुर का यह क्षेत्र 2500 साल पुरान बताया जाता है, यहां मौजूद मुख्‍य मंदिर का निर्माण छत्रसाल ने कराया था। जहां 15 फीट ऊंची बाबा की पद्मासन प्रतिमा विराजामन है।

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इस प्राचीन धार्मिक क्षेत्र को सिद्धक्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यहां अति अलौकिक 65 मंदिर हैं, जो आठवीं-नौवीं शताब्दी के बताए जाते हैं।

मंदिर से जुड़ी ये कथा है प्रचलित

कहा जाता है कि पटेरा गांव निवासी एक व्यापारी बंजी का काम करता था, जो प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था। इस दौरान उसे रास्‍ते में एक पत्थर से ठोकर लग जाती थी।

इस देखते हुए उसने एक दिन मन बना लिया कि अब वह उस पत्थर को हटा देगा। लेकिन उसे रात में स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थकर कराने के लिए कहा गया और शर्त है वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा।

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जिसके बाद व्यापारी ने दूसरे दिन वैसा ही किया। लेकिन जैसे ही वह आगे की आरे बढ़ा उसे संगीत और वाद्यध्वनियों की आवाज आई।

जिसके बाद वह उत्साहित हो गया और पीछे मुडकर देख लिया, जिसे मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।

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