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Kota Suicides: छात्रों के आत्महत्या करने के डर से मां और दादा-दादी बच्चों साथ रहने के लिए आए कोटा, जानें पूरी खबर

Kota Suicides: छात्रों के अभिभावक के यहां उनके साथ रहने का यह मकसद है कि उनका बच्चा अवसाद में आकर आत्महत्या करने जैसा कोई कठोर कदम नहीं उठाए।

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Bansal News
Kota Suicides: छात्रों के आत्महत्या करने के डर से मां और दादा-दादी बच्चों साथ रहने के लिए आए कोटा, जानें पूरी खबर

KotaSuicides: इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों के मुख्य केंद्र के रूप में प्रख्यात राजस्थान के कोटा शहर में दूसरे राज्यों से पढ़ाई के लिए आने वाले छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं से चिंतित उनकी मां या दादा-दादी अब उनके साथ रहने के लिए यहां आ रहे हैं।

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छात्रों के अभिभावक के यहां उनके साथ रहने का यह मकसद है कि उनका बच्चा अवसाद में आकर आत्महत्या करने जैसा कोई कठोर कदम नहीं उठाए।

बिहार के सीतामढ़ी की रहने वाली 80 वर्षीय नीरु देवी हाल में कोटा में रहने आई हैं क्योंकि उनका पोता भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में दाखिले के लिए यहां इसकी प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा है।

हम घर पर सुकून से नहीं रह पा रहे थे

यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश की तैयारी के दौरान छात्रों द्वारा महसूस किए जाने वाले दबाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हम घर पर सुकून से नहीं रह पा रहे थे।’’

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इस साल अबतक सर्वाधिक संख्या में 22 छात्रों ने यहां आत्महत्या की है, जिनमें से दो ने 27 अगस्त को महज कुछ घंटों के अंतराल में आत्महत्या की। पिछले साल 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी।

व्यस्त दिनचर्या, कठिन प्रतिस्पर्धा, बेहतर करने का नियमित दबाव, माता-पिता के उम्मीदों का बोझ और घर से दूरी ऐसी समस्याए हैं, जिनका सामना यहां दूसरे शहरों और देश के अन्य हिस्सों से आकर पढ़ाई करने वाले ज्यादातर छात्र महसूस करते हैं।

अब कई माता-पिता अपने बच्चों को छात्रावासों में छोड़ना नहीं चाहते। इसके बजाय वे कोटा में किराये पर मकान लेकर अपने बच्चों के साथ ही रहने का विकल्प चुन रहे हैं।

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‘मैं अपने बेटे को खोना नहीं चाहती’

मध्य प्रदेश के सतना की रहने वाली संध्या नाम की महिला अपने बेटे के साथ कोटा में रह रही हैं, जबकि उनके पति घर पर रहकर अन्य जिम्मेदारियों का निवर्हन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं अब कम चिंतित हूं। मेरा बेटा रात को पढ़ता है...मैं उसे अपने हाथ से बनाकर चाय या कॉफी देती हूं। वह जानता है कि मैं उससे बात करने और माहौल को सहज बनाने के लिए उसके साथ हूं।

वह इस महीने दो बार बीमार पड़ा था और मैं उसकी देखभाल करने के लिए मौजूद थी। मैं चाहती हूं कि वह संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) उत्तीर्ण करे, लेकिन मैं इस प्रक्रिया में अपने बेटे को खोना नहीं चाहती...हम यहां छात्रों के आत्महत्या करने के बारे में सुनते हैं और हम खतरा मोल नहीं ले सकते।’’

कोटा में हर साल करीब ढाई लाख विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं, जैसे कि इंजनीरियरिंग कॉलेज में प्रवेश के लिए ‘जेईई’ और मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए राष्ट्रीय अर्हता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी करने यहां आते हैं।

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ऐसे कई केस सुननें में आए हैं जहां लोगों ने डर से अपने रहने की जगह ही बदल ली है।

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