World Saree Day: दुनिया में जब भी भारतीय परंपरा और रीति-रिवाजों की बात होती है, तो हमारे दिमाग में कई चीजें आती है। इनमें से साड़ी सबसे ज्यादा पॉपुलर मानी जाती है। आज यानी 21 दिसंबर को को विश्व साड़ी दिवस (World Saree Day) मनाया जाता है। इस पारंपरिक भारतीय पोशाक की सुंदरता ने भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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क्यों मनाया जाता है साड़ी दिवस?
साड़ी, भारतीय स्त्री का मुख्य परिधान माना जाता है। इस भारतीय पोशाक को अब विदेशों में भी खासा पसंद किया जाता है। भारत आईं विदेशी मेहमान भी साड़ी पहनकर भारतीयता का एहसास करती हैं। हर साल साड़ी दिवस इस पोशाक को बनाने वाले बुनकरों के सम्मान में मनाया जाता है।
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साड़ी का इतिहास 3000 साल से भी ज्यादा पुराना है। साड़ी नाम संस्कृत शब्द “सारिका” से लिया गया है। जिसका मतलब कपड़े का लंबा टुकड़ा होता है। साड़ी दिवस (World Saree Day) के मौके पर हम आपको भारत में बनने वालीं कई साड़ियों की खासियत बताएंगे।
कांजीवरम साड़ी
देश में कांजीवरम साड़ी का जमकर क्रेज देखा जाता है। महिलाओं में कांजीवरम साड़ी की डिमांड बहुत होती है। असल में कांजीवरम साड़ी तीन तरीके से तैयार की जाती है। इन साड़ियों को सिल्क के रंगीन धागों और जरी का इस्तेमाल कर पूरी तरह हाथों से बनाया जाता। कांजीवरम साड़ियां शानदार बनावट, चमक, और मजबूती के लिए बेहद लोकप्रिय है।
बनारसी साड़ी
बेहद खूबसूरत दिखने वाली बनारसी साड़ी बहुत मेहनत से बनाई जाती है। बुनकरों के मुताबिक एक बनारसी साड़ी को तैयार करने में 3 कारीगरों की मेहनत लगती है। इन्हें रेशमी धागे से बुनकर तैयार किया जाता है। बनारसी साड़ी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पर जरी का काम होता है। हालांकि, पहले के जमाने में इन साड़ियों पर जरी वर्क सोने या चांदी के तारों से किया जाता था।
बांधनी साड़ी
बांधनी साड़ी आमतौर पर राजस्थान में पहनी जाती है। कई सालों से फैशन में बनी हुई ये साड़ी काफी डिमांड में रहती है। ये साड़ी राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में तैयार की जाती है। आमतौर पर कपड़े को रंगकर इस साड़ी को बनाया जाता है। इस साड़ी में आपको कई अलग-अलग पैटर्न और प्रिंट मिल जाते हैं।
चिकनकारी साड़ी
चिकनकारी साड़ी भारत की कई पारंपरिक साड़ियों में से एक है जो भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में महिलाओं द्वारा पहनी जाती है। यह सबसे लोकप्रिय और महंगी भारतीय साड़ियों में से एक है। चिकनकारी साड़ियाँ जटिल कढ़ाई के काम से बनाई जाती हैं, जिसे पूरा होने में कई दिन लग जाते हैं। इन साड़ियों पर कढ़ाई का काम ‘चिकनकारी’ नामक कुशल कारीगरों द्वारा किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि चिकनकारी कला मुगलों द्वारा मध्य एशिया से भारत लाई गई थी।
तांत साड़ी
भारत में कई तरह की साड़ियों में से तांत साड़ियां सबसे पारंपरिक मानी जाती है। इसे बंगाली साड़ी भी कहा जाता है। ये सूती धागे से बने होते हैं, जो इन्हें हल्का और पारदर्शी बनाता है। हालांकि सिर्फ बंगाली महिलाएं ही नहीं अब अलग-अलग समुदाय के लोग भी तांत की साड़ी पहनना पसंद करते हैं। ज्यादातर महिलाएं कॉटन साड़ी और तांत साड़ी दोनों को एक समझती हैं, जबकि ऐसा नहीं है। दोनों में काफी अंतर होता है।
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