World Braille Day: जानिए लुई ब्रेल ने कैसे की थी ‘ब्रेल लिपि’ की खोज, कहां से आया था उन्हें इसका आइडिया?

नई दिल्ली। ब्रेल लिपि (Braille lipi) का अविष्कार करने वाले लुई ब्रेल का आज जन्मदिवस है। अगर ये नहीं होते तो शायद नेत्रहीन लोगों के लिए पढ़ाई-लिखाई करना इतना आसान नहीं होता। यही कारण है कि हर साल विश्व में 4 जनवरी को ब्रेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि लुई ने इस लिपि को क्यों बनाया और यह कैसे काम करता है?
हादसे में खो दिया था देखने की क्षमता
दरअसल, 4 जनवरी,1809 को फ्रांस की राजधानी पेरिस से 40 किमी दूर कूपरे नामक गांव में लुई ब्रेल (Louis Braille) का जन्म हुआ था। जब वे 3 साल के थे तब खेल-खेल में उनके एक आंख में गहरी चोट लग गई। उस चोट के कारण पहले तो उन्होंने एक आंख को खो दिया फिर कुछ ही दिनों में उनकी दूसरी आंख से भी देखने की क्षमता छीन गई। उन्हें अपने काम करने में और खास कर पढ़ाई करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और यही दिक्कत ना जाने कितने दृष्टिहीनों के लिए वरदान साबित हुआ। लुई ब्रेल ने मात्र 15 साल की छोटी सी उम्र में ही ब्रेल लिपि की खोज कर दी जिससे नेत्रहीन, दृष्टिहीन और आंशिक रूप से नेत्रहीन लोगों की जिंदगी काफी आसान हो गई।
कैसे काम करता है ब्रेल लिपि
हम जब भी कहीं ब्रेल लिपि को देखते हैं तो हमें लगता है कि ये कुछ शब्द लिखे हैं जो उभरे हुए हैं। लेकिन दरअसल में उसमें कोई शब्द नहीं लिखा होता। इसमें एक तरह का कोड होता है जो उभरे हुए बिंदुओं से बनाया जाता है, जिसमें 6 बिंदुओं की तीन पंक्तियां होती हैं और इन्हीं में पुरे सिस्टम का कोड बना होता है।
कहां से आया आइडिया
कहा जाता है कि लुई ब्रेल को इस लिपि का आइडिया नेपोलियन की सेना के एक कैप्टन चाल्स बार्बियर की वजह से आया था। चाल्स एक दिन लुई के स्कूल में आए थे जहां उन्होंने बच्चों को नाइट राइटिंग की तकनीक बताई थी। इस तकनीक का इस्तेमाल उस दौरान नेपोलियन की सेना दुश्मनों से बचने के लिए किया करते थे। जिसमें उभरे हुए बिंदुओं में गुप्त संदेश लिखे जाते थे ताकि कोई और उन्हें ना पढ़ पाए। फिर क्या था लुई ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर नेत्रहीनों के लिए पढ़ने का एक माध्यम बना दिया जिसे केवल महसुस कर पढ़ा जा सकता था।
मृत्यु के 16 साल बाद लिपि को मिली मान्यता
लुई ब्रेल ने जिस लिपि को बनाया था उसे लिपि की मान्यता उनके जीवनकाल में नहीं मिली। वे मजह 43 साल की उम्र में ही इस दुनिया को छोड़ कर चले गए थे। उनकी मृत्यु के करीब 16 साल बाद 1868 में ‘रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर बलाइंड यूथ’ ने ब्रेल लिपि को मान्यता दी और आज ये लिपि भारत समेत लगभग विश्व के सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है।