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Khudiram Bose Shahid Diwas: जब देश की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए थे बोस, जानिए पूरा इतिहास

Khudiram Bose Shahid Diwas: खुदीराम बोस बलिदान दिवस पर जानिए 11 अगस्त 1908 को हुई उनकी शहादत, कैसे और क्यों दी जान, और भारत की आज़ादी में उनका अमर योगदान।

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Shaurya Verma
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हाइलाइट्स

  • 18 साल में शहीद हुए वीर क्रांतिकारी खुदीराम बोस
  • 11 अगस्त 1908 को हंसते-हंसते फांसी चढ़े
  • बलिदान दिवस पर देशभर में श्रद्धांजलि कार्यक्रम
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Khudiram Bose Shahid Diwas: 11 अगस्त यानी क्रांतिकारी खुदीराम बोस बलिदान दिन — वह दिन जब भारत के आज़ादी के आंदोलन को नई ऊर्जा देने वाले इस वीर क्रांतिकारी ने 18 साल की उम्र में अपने प्राण हंसते- हंसते देश पर न्योछावर कर दिए। खुदीराम बोस का नाम स्वतंत्रता संग्राम के उन अमर सेनानियों में आता है, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

कौन थे खुदीराम बोस?  

[caption id="attachment_875297" align="alignnone" width="999"]publive-image खुदीराम बोस[/caption]

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान पश्चिम बंगाल) के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ। बचपन से ही उनमें देशभक्ति का जज्बा था। वह वंदे मातरम् और स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित होकर कम उम्र में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए।

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क्यों दिया बलिदान? 

[caption id="attachment_875296" align="alignnone" width="999"]publive-image खुदीराम बोस ब्रिटिश सैनिकों के साथ खड़े हुए[/caption]

उस समय ब्रिटिश अधिकारी डगलस किंग्सफोर्ड अपने दमनकारी रवैये के लिए बदनाम था। उसे भारतीयों, खासकर क्रांतिकारियों, के खिलाफ सख्त और कठोर सजा देने के लिए जाना जाता था। खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड को सबक सिखाने की योजना बनाई। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह दौर था, जब कई क्रांतिकारी मानते थे कि अंग्रेजी शासन को हटाने के लिए प्रतिरोध जरूरी है।

घटना कैसे हुई?

30 अप्रैल 1908 को, मुजफ्फरपुर (बिहार) में किंग्सफोर्ड की बग्घी को निशाना बनाकर बम फेंका गया। दुर्भाग्य से उस बग्घी में किंग्सफोर्ड नहीं, बल्कि दो ब्रिटिश महिलाएं — मिसेज कैनेडी और उनकी बेटी सवार थीं, जिनकी मौत हो गई। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने पूरे इलाके में कड़ी तलाशी अभियान चलाया।

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खुदीराम बोस को पुलिस ने वैनी स्टेशन के पास गिरफ्तार किया। उस समय वह नंगे पांव थे और उनके पास क्रांतिकारी साहित्य भी मिला। मुकदमे के बाद 13 जून 1908 को अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई।

बलिदान का दिन 

[caption id="attachment_875298" align="alignnone" width="900"]publive-image 11 अगस्त 1908 की सुबह, 18 साल के खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए[/caption]

11 अगस्त 1908 की सुबह, 18 साल के खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। कहा जाता है कि फांसी से पहले भी उनके चेहरे पर मुस्कान थी और होठों पर वंदे मातरम्। उनकी शहादत ने पूरे देश में क्रांतिकारी आंदोलन को नई दिशा दी और उन्हें भारत के सबसे युवा शहीदों में गिना जाने लगा।

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खुदीराम बोस बलिदान दिवस का महत्व

आज खुदीराम बोस बलिदान दिवस पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित होते हैं। स्कूली बच्चे, सामाजिक संगठन और इतिहास प्रेमी उनकी शहादत को याद करते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज़ादी हमें सहज रूप से नहीं मिली, बल्कि लाखों वीरों के त्याग और बलिदान से मिली है।

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