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हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: बैंक डिफॉल्टर्स को भुगतान के लिए बाध्य नहीं कर सकते, ये प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन

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Kushagra valuskar
हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: बैंक डिफॉल्टर्स को भुगतान के लिए बाध्य नहीं कर सकते, ये प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन

Bank Defaulters Rights: बैंक डिफॉल्टर उधारकर्ताओं की तस्वीरें और विवरण प्रकाशित करके उन्हें ऋण चुकाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। यह निर्देश हाईकोर्ट ने दिये हैं। कोर्ट ने कहा कि “उधारकर्ताओं को उनकी प्रतिष्ठा और निजता को नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर लोन चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सार्वजनिक रूप से डिफॉल्टर उधारकर्ताओं की तस्वीरों और अन्य विवरणों का प्रकाशन या प्रदर्शन उधारकर्ताओं के सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से इस तरह का वंचन कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किया जा सकता है।”

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यह है याचिका

यह याचिका चेम्पाजंथी कृषि सुधार सहकारी समिति द्वारा सहकारी समितियों के सहायक रजिस्ट्रार के उस पत्र को चुनौती देते हुए दायर की गई, जिसमें उन्हें अपने मुख्यालय के सामने डिफॉल्टर उधारकर्ताओं के नाम और फोटो प्रदर्शित करने वाले फ्लेक्स बोर्ड को हटाने का निर्देश दिया गया।

बैंक का तर्क- ऐसा करने पर मिल जाते हैं पैसे

बैंक ने कहा कि इस पद्धति का सहारा लेने से पहले उन्होंने इन डिफॉल्टरों से कई बार पैसे मांगे थे। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने अपने विवरण प्रकाशित होने के बाद अपना लोन चुकाया। उन्होंने कहा कि सफलता से प्रेरित होकर वे बैंक परिसर में लगाने के लिए एक और सेट तैयार कर रहे हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि यह केरल सहकारी समिति नियम, 1969 के नियम 81 में उल्लिखित “टॉम-टॉम की बीट” के समान है, जिसकी अचल संपत्तियों की कुर्की और बिक्री के दौरान अनुमति है।

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टॉम-टॉमिंग की प्रथा पुरानी

केरल हाईकोर्ट के जस्टिस मुरली पुरुषोत्तमन ने कहा कि इस तरह के कृत्य किसी व्यक्ति के सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के कृत्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

न्यायालय ने यह भी कहा कि यह वसूली का ऐसा तरीका नहीं है, जिसका उल्लेख किसी अधिनियम या नियम में किया गया। न्यायालय ने टिप्पणी की कि टॉम-टॉमिंग की प्रथा पुरानी और आदिम पद्धति है। हालांकि न्यायालय ने इस प्रथा की कानूनी वैधता पर निर्णय नहीं लिया, क्योंकि यह इस मामले में कोई मुद्दा नहीं था।

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