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Crows Are Disappearing: नवरात्रि और पितृपक्ष के दिनों में जब भी हम कौए को याद करते हैं, तो मन में एक सवाल आता है आखिर कौआ कितने साल तक जिंदा रहता है और क्यों अब यह पक्षी हमारे शहरों से लगभग गायब होता जा रहा है? दरअसल, कौआ भारतीय संस्कृति और आस्था में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से कौओं को भोजन कराना शुभ माना जाता है। लेकिन दुखद सच यह है कि आजकल शहरों में कौवे नज़र ही नहीं आते। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण और कौए की वास्तविक उम्र।
कौए की उम्र कितनी होती है?
पशु विशेषज्ञों के मुताबिक कौए की औसत उम्र 15 से 20 साल होती है, लेकिन सही वातावरण, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित आवास मिलने पर यह 30 से 40 साल तक भी जीवित रह सकता है। कुछ शोधों में यह दावा भी किया गया है कि आदर्श परिस्थितियों में कौवा 50 साल तक जिंदा रह सकता है। यानी यह पक्षी लंबी उम्र जीने वाला माना जाता है। लेकिन मौजूदा हालातों ने उनकी उम्र के साथ-साथ उनकी संख्या पर भी गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।
शहरों से क्यों गायब हो रहे हैं कौवे?
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कौए मुख्य रूप से नीम, पीपल और बरगद जैसे बड़े पेड़ों पर अपना घोंसला बनाते हैं। लेकिन शहरीकरण की तेज़ रफ्तार ने इन पेड़ों को खत्म कर दिया है। अब ऊंचे पेड़ों की जगह कंक्रीट की इमारतें खड़ी हो गई हैं, जहां कौवों को न तो घोंसला बनाने की जगह मिलती है और न ही सुरक्षित वातावरण।
प्रदूषण और दूषित वातावरण
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प्रदूषण और दूषित वातावरण[/caption]
लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण, प्लास्टिक कचरा और रासायनिक उर्वरकों का असर सिर्फ इंसानों पर ही नहीं, बल्कि पक्षियों पर भी पड़ रहा है। दूषित भोजन और जहरीले वातावरण ने उनकी प्रजनन क्षमता को कम कर दिया है।
भोजन के स्रोतों की कमी
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भोजन के स्रोतों की कमी[/caption]
गांवों और छोटे कस्बों में पहले मृत जानवरों को खुले मैदानों में छोड़ दिया जाता था। कौवे, गिद्ध और चील जैसे पक्षी उस मृत शरीर को खाकर अपना जीवनयापन करते थे। लेकिन अब मृत जानवरों को सुरक्षित तरीके से निपटाया जाता है, जिससे कौवों का प्राकृतिक भोजन स्रोत खत्म हो गया है।
खतरनाक दवाओं का असर
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पशु चिकित्सक डॉ. संजीव नेहरू बताते हैं कि एक समय पर पशुओं को दिया जाने वाला डाईक्लोफिनेक सोडियम इंजेक्शन कौवों और गिद्धों की संख्या कम होने का बड़ा कारण बना। यह इंजेक्शन जानवरों की किडनी को खराब कर देता था। जब ऐसे जानवर मर जाते थे और कौवे या चील उनका मांस खाते थे, तो यह जहरीला असर उनकी किडनी पर भी पड़ता था, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती थी। हालांकि अब इस इंजेक्शन पर बैन लगा दिया गया है, लेकिन इसका असर वर्षों तक रहा।
गर्मियों में पानी की कमी
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गर्मियों में पानी की कमी[/caption]
शहरों में पहले लोग छतों पर या घर के बाहर पक्षियों के लिए पानी रखते थे। लेकिन अब यह परंपरा बहुत कम हो गई है। गर्मियों में पानी की कमी के कारण कौवों और अन्य पक्षियों की मौतें भी होने लगी हैं।
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क्या किया जा सकता है?
कौवों को बचाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि हम अपने आसपास अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। साथ ही छतों और बगीचों में पक्षियों के लिए पानी और अनाज रखें। सरकार और समाज को मिलकर प्रदूषण पर नियंत्रण करना होगा और पक्षियों के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करना होगा।
FAQs
सवाल – कौआ कितने साल तक जी सकता है?
जवाब –कौए की औसत उम्र 15 से 20 साल होती है, लेकिन सही माहौल में यह 40 से 50 साल तक भी जीवित रह सकता है।
सवाल – शहरों में अब कौवे क्यों नज़र नहीं आते?
जवाब –पेड़ों की कटाई, प्रदूषण, भोजन और पानी की कमी और दवाओं के जहरीले असर की वजह से कौवे शहरों से लगभग गायब हो रहे हैं।
सवाल – डाईक्लोफिनेक इंजेक्शन का कौवों पर क्या असर पड़ा?
जवाब –यह इंजेक्शन जानवरों की किडनी खराब कर देता था। ऐसे मृत जानवरों को खाने से कौवों और गिद्धों की भी किडनी फेल हो जाती थी, जिससे उनकी मौत हो जाती थी।
सवाल – कौवों को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है?
जवाब –अधिक पेड़ लगाना, छतों पर पक्षियों के लिए पानी और दाना रखना और प्रदूषण को कम करना इसके मुख्य उपाय हैं।
सवाल – भारतीय संस्कृति में कौए का क्या महत्व है?
जवाब –श्राद्ध पक्ष में कौए को पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है। इसलिए श्राद्ध के दौरान उन्हें भोजन कराना शुभ और जरूरी माना जाता है।
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