बेंगलुरु Belagavi Incident। कर्नाटक के बेलगावी की घटना ने जहां पर शर्मसार कर दिया है वहीं पर इस मामले पर कर्नाटक हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी सामने आई है। जिसमें कहा, सरकार को बेटी बचाओ अभियान नहीं बेटा पढ़ाओं अभियान पर काम करना चाहिए। ऐसे मामलों में समाज की सामूहिक जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और इसके लिए कानून बनना चाहिए।
जानिए क्या रहा HC का तर्क
आपको बताते चलें, बेलगावी मामले को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रसन्ना बी.वराले ने बयान जारी करते हुए कहा, नारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नहीं, बल्कि ‘बेटा पढ़ाओ’ होना चाहिए। आप जब तक बेटे को नहीं बताएंगे, आप यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते।
कोर्ट ने कहा कि गांव की आबादी आठ हजार है और घटना के समय 13 हमलावरों के अलावा वहां 50 से 60 लोग मौजूद थे। लेकिन महिला को बचाने के लिए जहांगीर नाम का एक ही व्यक्ति आगे आया। पीड़िता को हमलावरों से बचाने की कोशिश में घायल हुआ। 50-60 लोगों में एक ही व्यक्ति उन बदमाशों का सामना करने का साहस जुटा सका।
जाने क्या था मामला
आपको बताते चलें, यह घटना 12 दिसंबर की है जहां पर कर्नाटक के बेलगावी में हुक्केरी तालुक की 42 वर्षीय आदिवासी महिला के साथ घिनौनी वारदात को अंजाम दिया गया था। इस दौरान 42 वर्षीय आदिवासी महिला को निर्वस्त्र कर उसकी पूरे गांव में परेड कराने के बाद उसे बिजली के खंभे में बांधकर पीटा गया था। इसके पीछे केवल यह कारण था कि, पीड़ित महिला का बेटा उसी गांव की एक लड़की के साथ भाग गया था।
समाज को सुरक्षित बनाना जरूरी- हाईकोर्ट
यहां पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में सामूहिक जिम्मेदारी तय करने की भी आवश्यकता बताई है। साथ ही इसके लिए नए कानून बनाने का सुझाव दिया। साथ ही कहा, हाई कोर्ट ने ऐसे मामलों में सामूहिक जिम्मेदारी तय करने की भी आवश्यकता बताई है। साथ ही इसके लिए नए कानून बनाने का सुझाव दिया।
आगे कोर्ट ने कहा- रोमन शासन पर किताब ‘राइज एंड फाल ऑफ द रोमन एम्पायर’ का जिक्र कर कोर्ट ने कहा कि जब तक आप एक अच्छा समाज नहीं बना सकते, एक अच्छा देश भी नहीं बनेगा। हम इन मूल्यों को आने वाली पीढ़ियों में नहीं डालेंगे तो कुछ नहीं बदलेगा।
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