नई दिल्ली। आज के दिन यानी 26 जुलाई को कोई भी भारतीय नहीं भूल सकता। क्योंकि आज ही के दिन साल 1999 में भारत ने कारगिल युद्द को जीता था। तब से इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हम अपने वीर सपूतों को सलाम करते हैं। साथ ही उनके बहादुरी के किस्से को भी याद करते हैं। ऐसे में आज हम आपको भारतीय सेना के स्नो टाइगर्स यानि लद्दाख स्काउट्स के वीरता की गाथा बताएंगे।
सेना ने सोनम वांगचुक को जिम्मेदारी सौंपी
दरअसल, भारत को जैसे ही पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर मिली, सबसे पहले लद्दाख स्काउट्स के जवान वहां मुस्तैद हो गए। वहीं दूसरी तरफ दुश्मन 5500 फीट की उंचाई से लगातार गोली बारी कर रहा था। पाकिस्तान, लेह-लद्दाख को भारत से काटने की रणनीति बना कर आया था। भारत के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे थे। ऐसे में सेना ने दुश्मन को मार गिराने और खदेड़ने के लिए लद्दाख स्काउट्स के मेजर सोनम वांगचुक को जिम्मेदारी सौंपी।
पहले उन्होने 12-13 पाकिस्तानी टेंट को स्पॉट किया
वांगचुक अपने 30-40 जवानों के साथ इस मिशन पर निकल गए। 30 मई को वांगचुक के जवानों ने LOC के ठीक उस पार 12 से 13 पाकिस्तानी टेंट को स्पॉट किया। इसमें 130 से ज्यादा पाकिस्तानी मौजूद थे। उन्होंने देखा कि 3 से 4 पाकिस्तानी जवान दूसरी तरफ से चोटी पर चढ़ाई कर रहे हैं। भारतीय जवानों ने बिना देर किए उन्हें मार गिराया। लेकिन तब पाकिस्तानी हर तरफ से चढ़ाई कर रहे थे। इस कारण से सभी को मारा नहीं जा सकता था। क्योंकि वे दूरी पर थे। ऐसे में मेजर वांगचुक ने मुख्यालय से परमिशन लेकर 25 जवानों के साथ दो फीट गहरे बर्फ में दौड़ लगा दी।
पाकिस्तानी सेना ने शुरू कर दी फायरिंग
वांगचुक समेत सभी 25 जवानों ने 8 किलोमीटर का रास्ता महज ढाई घंटे में पूरा किया। वे जैसे ही दुश्मन के नजदीक पहुंचे पाकिस्तानी फौज ने उनपर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। हालांकि भारतीय जवानों किसी तरह से एक चट्टान के पीछे छिपकर अपनी जान बचाई। दोनों तरफ से कई घंटों तक गोलीबारी चलती रही। इस गोलीबारी में एक भारतीय सैनिक शहीद हो गया।
स्नो टाइगर्स भी हार नहीं मानने वाले थे
लेकिन स्नो टाइगर्स भी हार नहीं मानने वाले थे। इस फायरिंग में मेजर वांगचुक का रेडियो सेट बुरी तरह से टूट चुका था। जैसे ही गोलीबारी थमी, उन्होंने अपने एक सौनिक को वापिस यूनिट में भेजा। आदेश दिया कि वे दाएं तरफ से पाकिस्तान के कब्जे वाली चोटी पर चढ़ाई शुरू कर दें। इसके साथ ही मेजर वांगचुक और बाकी के सौनिक ओपी यानि ऑपरेशन पोस्ट के नीचे स्थित ऐडम बेस की तरफ बढ़े। इस समय शाम के साढ़े चार बज रहे थे।
सैनिकों ने 18000 फीट की चढ़ाई को रात भर में नाप दिया
चढ़ाई शुरू करते ही पूरी घाटी देखते ही देखते कोहरे में ढक गई। भारतीय सेना ने इसी का फायदा उढ़ाया और 18000 फीट की इस दुर्गम चढ़ाई को रात भर में नाप दिया। गौरतलब है कि यह चढ़ाई लगभग 90 डिग्री की चढ़ाई जैसी थी। साथ ही -6 डिग्री का तापमान था। फिर भी हमारे सैनिकों ने यह काम रात भर में पूरा कर दिया। भारतीय सैनिकों ने सुबह होते ही पाकिस्तानियों पर हमला बोल दिया। लद्दाख स्काउट्स ने इस हमले में 10 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। बाकी के बचे 100 से ज्यादा सैनिक अपनी पोस्ट छोड़ के भाग खड़े हुए। भारतीय सौनिकों ने इसके बाद चोरबाटला समेत पूरे बटालिक सेक्टर को पाकिस्तान के कब्जे से वापिस ले लिया।
कारगिल की लड़ाई में भारत की पहली जीत
कारगिल की लड़ाई में यह भारत की पहली जीत थी। इसके बाद पूरी दुनिया को यह पता चल गया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने हमपर हमला किया है। जबकि इससे पहले पाकिस्तान यह मानने को तैयार ही नहीं था। इसके लिए वो आतंकियों को जिम्मेवार ठहरा रहा था। 31 मई से 1 जून तक चली इस लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाने के लिए मेजर सोनम वांगचुक को सेना ने महावीर चक्र से सम्मानित किया। वहीं लद्दाख स्काउट्स को भारतीय सेना ने गोरखा और डोगरा रेजीमेंट की तर्ज पर 2001 में इंफैन्ट्री रेजीमेंट का दर्जा दिया। आपको बता दें कि सियाचिन में भी लद्दाख के लड़ाकों को तैनात किया जाता है।