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Kamakhya Devi Mandir Ambubachi Mela: अंबूबाची मेला आज से शुरू, रहस्यमयी तरीके से बदलेगा ब्रहृमपुत्र नदी के पानी का रंग

Preeti Dwivedi by Preeti Dwivedi
August 10, 2024
in धर्म-अध्यात्म
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Kamakhya Devi Mandir Ambubachi Mela: आषाढ़ का महीना शुरू हो गया है। ये महीना महाबली बजरंगबली यानी श्री हनुमान और गुप्त नवरात्रि के लिए खास माना जाता है।

इसी क्रम में आज से गोवाहाटी स्थित कामाख्या देवी मंदिर में अंबूबाची मेला शुरू हो रहा है। इस मेले के साथ कई रहस्य जुड़े (Janna Jaruri Hai) हैं। जिस दिन से इस मेले की शुरुआत होती है उस दिन से यहां से बहने वाली ब्रहृमपुत्र नदी के पानी का रंग रहस्यमयी तरीके से बदल जाता है।

कब से कब तक कहां चलेगा अंबूबाची मेला

आपको बता दें अंबूबाची मेला ( Ambubachi Mela 2024) आज 22 जून से चार दिवसीय मेला शुरू हो गया है। जो 26 जून तक चलेगा।

देवी का यह शक्तिपीठ (51 Shaktipeeth) असम के नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। आपको बता दें यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी शहर से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

51 शक्तिपीठों में से एक

​गोवाहाटी स्थित कामाख्या देवी मंदिर (Kamakhya Devi Mandir Facts) मां शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक  माना जाता है।

आसाम स्थित इस मां कामाख्या देवी के रहस्य

से शायद आप परिचित न हों। ऐसी मान्यता है कि यहां पर मां की योनी गिरी थी।

तीन दिन के बंद हो जाता है मंदिर

ऐसी मान्यता है कि कामाख्या मंदिर (Kamakhya Mandir) को  तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाता है।

जानते हैं इससे जुड़े कुछ रहस्य। साथ ही हम आपको बताएंगे आप इस मंदिर तक कैसे पहुंच सकते हैं।

जानिए मां कामाख्या मंदिर की खासियत

51 शक्तिपीठों में से है एक

इस कामाख्या शक्तिपीठ की गिनती 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ के रूप में होती है। यह बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। इस मंदिर को अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है।

असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर स्थित है। सभी शक्तिपीठों के महापीठ के रूप में इसे जाना जाता है।

बिना प्रतिमा वाला मंदिर

कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Mandir)  की खासियत है कि मंदिर में मां अम्बे की मूर्ति, प्रतिमा या चित्र Kamakhya Devi Temple Facts स्थापित नहीं है।

मंदिर में बना एक मात्र कुंड बना है जो जिसमें हमेशा फूलों की चादर बनी होती है।

इस कुंड में हमेशा जल का बहाव अनवरत होता रहता है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर की यहीं खासियत है कि यहां देवी की योनि की पूजा होती है। यहां योनी भाग के होने से कारण मां यहां रजस्वला होती हैं।

क्यों पड़ा कामाख्या मंदिर नाम

हिन्दू पुराणों (Hindu Purnan)  के अनुसार हर मंदिर के नाम के पीछे एक कारण होता है।

शक्तिपीठ का नाम कामाख्या (Kamakhya Devi Temple Facts) इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह मां सती के प्रति शिव जी का मोह भंग करने के लिए विष्णु जी ने अपने चक्र से मां के 51 भाग कर दिए थे।

जहां-जहां ये भाग गिरे वहां-वहां माता के शक्तिपीठ बन गए। इस स्थान पर माता की योनी गिरी थी। इस पीठ को सबसे शक्तिशाली पीठों में गिना जाता है।

वैसे तो सालभर यहां भक्तों की भीड़ रहती है परन्तु दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा आदि अवसरों पर मंदिर की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है।

क्यों लाल हो जाता पानी

हर साल आषाढ़ माह में अंबबाची मेला लगता है। इस साल ये मेला 22 जून यानी आज से शुरू हो गया है। इस मेले के दौरान की खासियत है कि यहां पर स्थित ब्रहृमपुत्र (Brahmaputra river) का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है।

ऐसा माना जाता है कि पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। ऐसा माना जाता है कि इन तीन दिनों में मंदिर में भारी भीड़ जमा होती है।

प्रसाद में मिलता है लाल कपड़ा

यहां भक्तों को प्रसाद देने का तरीका भी अलग है। इस मंदिर में दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा देते हैं।

आपको बता दें मां के तीन दिन के रजस्वला के दौरान मंदिर में सफेद रंग का कपड़ा बिछाया जाता है जो तीन दिन बाद लाल रंग का हो जाता है। इसी कपड़े को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

इसी कपड़े को अम्बुबाची वस्त्र (Ambubachi) कहते है। यही वस्त्र है जिसे भक्तों को प्रसाद के रूप में मिलता है।

मन्नत पूरी होने पर कराना होता है ये काम

यहां दूर दूर से लोग मन्नत लेकर आते हैं। जब भक्त की मनोकामना पूरी होती है तो इस मंदिर में कन्या पूजन व भंडारा कराने की परंपरा है।

तंत्र साधना के लिए खास

वैसे तो मां के सभी शक्तिपीठ गृहस्थ साधना के लिए खास है। लेकिन कामाख्या देवी मंदिर ऐसा है कि जहां पर तंत्र साधना के लिए पूरा की जाती है।

ऐसा इसलिए क्योंकि काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता ऐसी देवी हैं जिनकी पूजा तंत्र साधना के लिए की जाती है।

शिवजी की नववधू के रूप में पूजा

आपको बता दें यहां कामाख्या देवी की पूजा शिवजी की नव वधू के रूप में की जाती है। कामाख्या देवी सभी इच्छाएं पूर्ण करने वाली मानी जाती हैं।

मंदिर के बाजू में स्थित एक मंदिर में मां की मूर्ति विराजित है। जिसे कामादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

बुरी शक्तियां होती हैं दूर

ऐसी मान्यता है कि बुरी शक्तियों को दूर करने में यहां के तांत्रिक बेहद निपुण होते हैं। जिन लोगों के ​जीवन में विवाह, संतान और धन संपत्ति संबंधी समस्याएं होती हैं वे कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जरूर जाते हैं।

तीन हिस्सों में बंटा है मंदिर

कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना है। इसके सबसे पहले बड़े हिस्से में सभी को जाने की इजाजत नहीं है। जबकि दूसरे हिस्से में मां कामाख्या के दर्शन होते हैं।

यही वो जगह है जहां पर एक ऐसा पत्थर से जिससे हर वक्त पानी बहता रहता है।

यही वो मंदिर है जहां माता के रजस्वला यानी मासिक धर्म के दौरान तीन दिनों के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। इसके तीन दिन बाद दोबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।

अघोरियों के लिए खास है ये मंदिर

आपको बता दें कामाख्या मंदिर को तंत्र साधना के लिए सबसे खास माना जाता है। यही कारण है कि यहां पर साधुओं और अघोरियों का तांता रहता है। ये स्थान काला जादू के लिए सबसे खास माना जाता है। साथ ही अगर काला जादू से प्रभावित लोग यहां आकर उसे उतरवाते भी हैं।

ऐसे पहुंच सकते हैं कामाख्या मंदिर? (How to Reach Kamakhya Temple)

हवाई यात्रा 

गुवाहाटी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (International International Airport) से कामाख्या देवी मंदिर से सबसे नजदीक में है। यहां से इसकी दूरी करीब 20 किमी. कामाख्या मंदिर है।

रेल यात्रा

यदि आप कामाख्या देवी मंदिर के दर्शन रेलयात्रा के माध्याम से करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए नजदीक में रेलवे स्टेशन कामाख्या ही है, जो कामाख्या मंदिर परिसर से मात्र 6 किमी. की दूरी पर स्थित है।

बस सेवा

आपको बता दें गुवाहाटी के लिए सीधे बस सेवा नहीं है। इसके लिए सबसे पहले पश्चिम बंगाल जा सकते हैं। यहां से कोलकाता, मालदा, नई जलपाईगुड़ी और हावड़ा आदि से गुवाहाटी के लिए आसानी से बस मिल जाती है।

नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं। बंसल न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करती।

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Preeti Dwivedi

Preeti Dwivedi

पत्रकारिता में 15 साल का अनुभव। डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी से 2007 में पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त की। नवदुनिया, दैनिक भास्कर, तीनबत्ती न्यूज.कॉम में कार्य का अनुभव। एस्ट्रोलॉजी, यूटिलिटी और लाइफ स्टाइल की खबरों में विशेष रुचि। इस क्षेत्र में कई महिला सम्मान भी मिले। 2021 से बंसल न्यूज डिजिटल के साथ सीखने-सिखाने का सफर जारी है।

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