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Kailash Parvat: साल भर बर्फ की सफेद चादर लपेटे कैलाश पर्वत की बात अनोखी ! यहां चारों ओर है अलौकिक शक्ति का वास

आपने भगवान शिव के साधना वाले स्थान कैलाश पर्वत के बारे में सुना ही होगा। क्या आपको पता है ये कहां स्थित है फिलहाल में।

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Bansal News
Kailash Parvat: साल भर बर्फ की सफेद चादर लपेटे कैलाश पर्वत की बात अनोखी ! यहां चारों ओर है अलौकिक शक्ति का वास

Kailash Parvat: देवादि देव महादेव के पावन पर्व महाशिवरात्रि ( MahaShivratri) जहां पर आने वाले दिन 18 फरवरी को मनाई जा रही है वहीं पर इस मौके पर भगवान भोलेनाथ से जुड़ी कई शुभकामनाओं का दौर जारी है ऐसे में कुछ तथ्य हम भगवान शिव से जुड़े सामने लेकर आ रहे है जिसके बारे में आपको जानकारी नहीं होगी। आपने भगवान शिव के साधना वाले स्थान कैलाश पर्वत के बारे में सुना ही होगा। क्या आपको पता है ये कहां स्थित है फिलहाल में।

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कहां स्थित है कैलाश पर्वत

आपको बताते चलें कि, हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान भोलेनाथ के पवित्र स्थान के तौर पर जाना जाता है जहां पर यह पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है. कैलाश पर्वत हिमालय से उत्तरी क्षेत्र तिब्बत में है, चूंकि यह क्षेत्र तिब्बत-चीन की सीमा में आता है इसलिए कैलाश पर्वत भी चीन में आता है. कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित है, जहां इसे कांग रैमपोचे का नाम दिया गया है, जिसका अर्थ है प्रीजियस ज्वेल होता है।

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क्या आप जानते है ये भी 

आपको पता नहीं हो तो कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का वास है । जहां पर कैलाश पर्वत और उसके आस पास के वातावरण पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक जार निकोलाइ रोमनोव और उनकी टीम ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरूओं से बात को थी, तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के आसपास एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है। जहां पर कई यात्री इस बात का अनुभव कर चुके हैं कि कैलाश पर्वत पर समय तेजी से बीतता है. यहां पहुंच कर यात्रियों और वैज्ञानिकों ने अपने बाल और नाखूनों की तेजी से बढ़ते हुए देखा है. इसके आधार पर उनका अनुमान है कि कैलाश पर्वत पर समय तेजी से बीतता है।

आकृति विराट शिवलिंग की तरह है

आपको बताते चलें कि, यहां पर इस पर्वत की बनावट की बात की जाए तो, कैलाश पर्वत की ऊंचाई लगभग 6714 मीटर है. देखने में इसकी चोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है, जिस पर साल भर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है. इस पर्वत पर चढना निषिद्ध माना जाता है, लेकिन 11वीं शताब्दी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढाई की थी. हालांकि, उन्होंने इसके बारे में कभी किसी से कोई बात नहीं की, इसलिए यह बात भी आज तक रहस्य ही है।

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