Jyotiraditya Scindia Birthday: केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री और मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) आज अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म 1 जनवरी 1971 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। ग्वालियर राज घराने से ताल्लुक रखने के कारण लोग उन्हें महाराज के नाम से भी जानते हैं। सिंधिया राजनीति में आने से पहले चार साल तक बैंकर रह चुके हैं।
अचानक से राजनीति में आए थे
साल 2002 में पिता के निधन के बाद उन्हें अचानक से राजनीति में आना पड़ा। तब लोग मान रहे थे कि सिंधिया राजनीति में सफल नहीं हो पाएंगे। लेकिन उन्होंने सभी को गलत साबित कर दिखाया। कम समय में ही उन्होंने राजनीति में गहरी पकड़ बना ली। उनकी दादी के बाद सिंधिया राज परिवार के कई लोग राजनीति में आए। जिसमें उनके पिता माधवराव सिंधिया, दो बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया और फिर खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया।
कांग्रेस के साथ सफल शुरूआत
सिंधिया परिवार की खास बात यह है कि जो भी राजनीति में आया वह सफल रहा। हालांकि सभी के करियर में उतार-चढ़ाव आते रहे। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इससे अछूते नहीं रहे। 2002 के बाद उनका राजनीतिक करियर कांग्रेस के साथ अच्छा चल रहा था। उन्हें गांधी परिवार का सबसे करीबी माना जाता था। इसके पीछे दो कारण थे, पहला उनके पिता कांग्रेस के एक कद्दावर नेता थे और सोनिया गांधी के काफी करीबी माने जाते थे, दूसरा, ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद राहुल गांधी के बेहद करीब थे।
विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ विवाद
लेकिन 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव ने यह तय कर दिया की अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ज्यादा दिन तक कांग्रेस के करीबी नहीं रहेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस 15 साल बाद चुनाव जीतकर सत्ता में आई थी और उसके बाद प्रदेश की कमान कमलनाथ को सौंप दी गई थी। इस बात से सिंधिया, कांग्रेस से काफी नाराज थे। जानकारों का भी यही मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया उस समय सीएम की कुर्सी के सबसे प्रबल दावेदार थे। जनता ने सिंधिया के चेहरे पर कांग्रेस को वोट दिया था न की कमलनाथ के चेहरे पर। जाहिर है कि ऐसे में नाराजगी तो होगी ही।
जानकार क्या मानते हैं
इतना ही नहीं वादे के बावजूद सिंधिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी नहीं बनाया गया। जानकारों का मानना है कि पार्टी में उन्हें एक तरह से दरकिनार किया जा रहा था। राज्यसभा भेजे जाने को लेकर भी विवाद होने लगा था। ऐसे में उनका कांग्रेस से अलग होना तो लाजमी था। सिंधिया के साथ 22 विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़ दी और मध्य प्रदेश में 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई।
वो 17 दिन
सरकार गिरने की इस पूरी घटना को वरिष्ठ पत्रकार ‘ब्रजेश राजपूत’ ने अपनी किताब ‘वो 17 दिन’ में लिखा है। ब्रजेश कहते हैं कि कोई भी सरकार को गिराने के लिए लंबी प्लानिंग की जाती है। कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए भी 17 दिन तक प्लानिंग की गई थी। राजनीति में कुछ भी यू ही नहीं होता।
मालूम हो कि भाजपा राज्य में सरकार बनाने के लिए पहले से ही ताक में थी। हालांकि, उन्हें ये मालूम नहीं था कि सरकार इतनी जल्दी गिर जाएगी। उन्होंने पहले कांग्रेस के कुछ विधायकों से संपर्क इसलिए किया था कि उन्हें राज्यसभा की दो सीटें चाहिए थी। लेकिन उनके खाते में एक ही सीट आ रही थी। ऐसे में भाजपा चाहती थी कि कांग्रेस के कुछ विधायक बस क्रॉस वोट करें।
भाजपा तब सरकार गिराना नहीं चाहती थी
लेकिन तभी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक ट्विट करते हुए कहा कि भाजपा राज्य में कमलनाथ सरकार को गिराना चाहती है। भाजपा का जो सीक्रेट प्लान था वो सबके सामने आ गया, हालांकि भाजपा उस समय तक केवल राज्यसभा सीट के लिए क्रॉस वोट कराना चाहती थी और इसी को लेकर कांग्रेस के कुछ विधायक रिजॉट में रूके थे। लेकिन जब सीक्रेट प्लान को लेकर खुलासा हो गया तब भाजपा ने सरकार गिराने की ठान ली।
प्लान ‘A’ और प्लान ‘B’
प्लान ‘A’ में क्रॉस वोटिंग को लेकर कुछ विधायकों को इक्कठा किया गया था, वहीं जब खुलासा हो गया तो भाजपा ने प्लान ‘B’ को लॉन्च कर दिया। प्लान ‘B’ के तहत अमित शाह ने सिंधिया को साथ लाया और पहले से जो विधायक उनके साथ थे दोनों को मिलाकर कांग्रेस की सरकार गिरा दी गई। एक तीर से भाजपा ने यहां दो शिकार किए थे। पहला कांग्रेस उस समय केवल 1 ही राज्यसभा की सीट जीत पाई और दूसरा प्रदेश में सरकार बनाने में भी सफल रही।