हाइलाइट्स
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MP हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रेमानंद महाराज से मुलाकात
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प्रेमानंद महाराज ने बताईं धर्म और न्याय की बातें
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प्रेमानंद महाराज बोले- अपने पद के कर्त्तव्य को पूजा बना लेना है
Premanand Maharaj Sanjeev Sachdeva: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा अपनी पत्नी के साथ वृंदावन पहुंचे। उन्होंने स्वामी प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की। जस्टिस संजीव सचदेवा की पत्नी के सवाल पर प्रेमानंद महाराज ने धर्म और न्याय को लेकर बातें बताईं।
प्रेमानंद महाराज ने कहा- अनित्य से नित्य की प्राप्ति
स्वामी प्रेमानंद महाराज ने जस्टिस संजीव सचदेवा से कहा कि धर्मो रक्षति, रक्षितः, जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा कर लेता है। मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य है भगवदानंद। ये सब छूट जाएगा। आपका पद छूट जाएगा। आपका शरीर छूट जाएगा। आपका वैभव छूट जाएगा। आपका संबंध छूट जाएगा। सब यहीं छूट जाएगा। ये सब कुछ समय के लिए है। आप अविनाशी हैं। ये शरीर और इस शरीर का नाटक यहीं रह जाता है। पति-पत्नी, पुत्र, परिवार, पद, प्रतिष्ठा, ये मायाकृत है। ये सच्चिदानंद नहीं है। ये त्रिकाल सत्य नहीं है। ये अनित्य है। ये नित्य नहीं है। इस अनित्य से हमें नित्य की प्राप्ति कर लेनी है।
‘कोई भय या प्रलोभन मुझे न्याय से विचलित नहीं कर सकता’
स्वामी प्रेमानंद महाराज ने कहा कि अपने पद के कर्त्तव्य को पूजा बना लेना है और भगवान को वो पूजा समर्पित कर देनी है। बस इसी से भगवत प्राप्ति हो जाएगी। अर्जुन जी को कह रहे हैं युद्ध रूपी पूजा कर। जब गले काटना पूजा हो सकती है तो हम अपने न्याय को धर्म से युक्त करके दोषी को दंड देना ही है। न किसी का भय, न किसी का प्रलोभन, हमको विचलित नहीं कर सकता है। निर्दोष को बचाना ही है, पक्का बचाना है। कोई भय या प्रलोभन मुझे न्याय से विचलित नहीं कर सकता। ये निष्ठा आपके अंदर बनी रहे और भगवान का नाम स्मरण। ये अनित्य क्रिया से नित्य सच्चिदानंद की प्रसन्नता प्राप्त हो गई। यही जीवन का परमानंद है।
‘निर्भय-निर्लोभी बनकर पद का पालन ही भगवान की पूजा’
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि अपने-अपने कर्त्तव्य कर्म के द्वारा यदि हम धर्मपूर्वक पूजा करें तो हमारा पूरा देश सुखी हो जाए। आज जहां हम अपने कर्त्तव्य से चित होकर भय या प्रलोभन के वशीभूत हो जाते हैं। वहीं हमारी हानि हो जाती है। वहीं हमें अशांति प्राप्त होती है। वहीं हमारे द्वारा ऐसा कृत्य हो जाते हैं जिससे हमारे समाज को पीड़ा पहुंचती है। ये समाज सब भगवत स्वरूप है। हमें अपने-अपने अधिकार के अनुसार सेवा करने के लिए भगवान ने ये पद दिए हैं। बहुत निर्भय होकर और निर्लोभी बनकर अपने पद का पालन करो, यही भगवान की पूजा होगी, इसी से भगवान प्रसन्न हो जाएंगे। भगवान प्रसन्न हो गए तो सर्वमंगल है।
प्रेमानंद महाराज बोले-भगवान भावना चाहते हैं
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि भगवान अगरबत्ती-धूपबत्ती नहीं चाहते। भगवान तुम्हारी भावना चाहते हैं। निर्दोष को दंड विधान है। उसका हृदय पीड़ित हो रहा है। वो जो कर्म बन रहा है। उससे बचना बड़ा भारी हो जाएगा। हमको सपोर्ट मिलता है कि हे भगवान मैंने तो कुछ देखा नहीं। जैसा वकील प्रमाण देते हैं। उसके अनुसार हम निर्णय करते हैं। भगवान हमारे निर्णय को आप देख लीजिएगा। मेरा इसमें दोष नहीं, मेरे सामने जो प्रमाण हैं। उन्हीं प्रमाणों के अनुसार हम आपकी प्रेरणा से निर्णय करते हैं। आप इसके जिम्मेदार हैं, हम इसके जिम्मेदार नहीं हैं। अगर कहीं त्रुटि हो तो आप प्रेरणा करो और संभालो। हमारा जीवन निश्पाप होता चला जाएगा और हम महान भगवान को प्राप्त हो जाएंगे।
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि सही मार्ग में चलने पर नारायण स्वामी नाम के एक महान जज हुए हैं। उनके रोम-रोम से भगवान का नाम कीर्तन चलता था। ऐसा नहीं है कि हमको भगवान की प्राप्ति के लिए कोई और वेश या कोई और क्रिया करनी पड़ेगी। इसी क्रिया से हो जाएगी, बस धर्मपूर्वक कीजिए और नाम जाप कीजिए।
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