RAIPUR: झारखंड की राजनीति के संकट का संकटमोचक छत्तीसगढ़ बनेगा.पूरा झारखंड मंत्रिमंडल से लेकर विधायक तक छत्तीसगढ़ शिफ्ट हो गया है.कहा जा रहा है झारखंड में खरीद-फरोख्त के संभावना बन गई है.राजभवन की चुप्पी ने विधायकों की सेंधमारी की गुंजाइश को बढ़ा दिया है. लिहाजा झारखंड की राजनीति गर्मी की तपिश अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अगले कुछ दिनों तक महसूस की जाएगी.
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झारखंड की सियासत छत्तीसगढ़ पर आकर टिक गई है.इसलिए नहीं की झारखंड के विधायक छत्तीसगढ़ आ रहे हैं बल्कि इसलिए कि, झारखंड की राजनीति की किस्मत छत्तीसगढ़ के रहने वाले और वर्तमान झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को तय करना है.यूं तो राजनीतिक उथल-पुथल के नजरिए से छत्तीसगढ़ कई राज्यों के लिए संकटमोचक बनकर सामने आया है.अब ऐसी ही आश झारखंड को भी है ये बात दीगर है कि, पिछली बार जब हरियाणा से विधायकों का जत्था यहां पर पहुंचा था और कड़ी सुरक्षा में छत्तीसगढ़ में उनकी खातिरदारी हुई थी तो भी विधायकों में सेंध लग गई थी. लिहाजा इस बार सुरक्षा के साथ-साथ सूचना तंत्र के भी चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं.हालांकि रवानगी के पहले यूपीए का दावा यही है कि वो लोकतंत्र बचाने के लिए ऐसा कदम उठा रहे हैं.
यूपीए का बड़ा दावा
ये भी अजीब विडंबना है कि, झारखंड के कानून व्यवस्था को लेकर सरकार सवालों में है.हालांकि विपक्ष हेमंत सोरेन सरकार की संवेदनशीलता और कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है.तो फिर एक बड़ी बहस की गुंजाइश तो बनती है.यूपीए दावा ये करता रहा कि, संख्या बल उसके पास पर्याप्त है.सरकार बहुमत में है और इस बात में कोई शक भी नहीं कि, यूपीए गठबंधन के पास अभी मौजूदा बहुमत के आंकड़ों से संख्या काफी ज्यादा है.लिहाजा यूपीए विधायकों का झारखंड से रांची शिफ्ट करना खरीद-फरोख्त का आरोप लगाना और पूरे झारखंड की शासन व्यवस्था को छोड़कर अपनी सियासत की साख को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया कदम सवालों को जन्म दे रहा है.