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जानना जरूरी है: कोविड से एक और खतरा, महामारी ने पैदा किया 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा

जानना जरूरी है: कोविड से एक और खतरा, महामारी ने पैदा किया 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा Janna Zaroori Hai: Another threat due to Kovid, epidemic generated 8 million tonnes of plastic waste nkp

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Bansal Digital Desk
जानना जरूरी है: कोविड से एक और खतरा, महामारी ने पैदा किया 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा

नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर 80 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ है, जिसमें से 25,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा महासागरों में गया है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में पाया गया कि महासागर के प्लास्टिक मलबे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा तीन से चार वर्षों के भीतर लहरों के माध्यम से समुद्र तटों पर आने की उम्मीद है।

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प्लास्टिक समस्या का बढ़ा दवाब

मलबे का एक छोटा हिस्सा खुले समुद्र में चला जाएगा जो अंततः महासागर के बेसिन के केंद्रों में फंस जाएगा। इसके कारण वहां कचरा जमा हो सकते हैं और वे आर्कटिक महासागर में जमा हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि कोविड-19 महामारी ने फेस मास्क, दस्ताने और फेस शील्ड जैसे एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक की मांग में वृद्धि की है। इसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न कचरे का कुछ हिस्सा नदियों और महासागरों में चला गया जिसने पहले से ही नियंत्रण से बाहर वैश्विक प्लास्टिक समस्या पर दबाव बढ़ा दिया है।

अधिकांश कचरा एशिया से

चीन में नानजिंग विश्वविद्यालय और अमेरिका के सैन डिएगो में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसी) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में टीम ने भूमि स्रोतों से निकलने वाले प्लास्टिक पर महामारी के प्रभाव को मापने के लिए एक नए विकसित महासागर प्लास्टिक संख्यात्मक मॉडल का उपयोग किया। उन्होंने 2020 में महामारी की शुरुआत से लेकर अगस्त 2021 तक के आंकड़ों को शामिल किया, जिसमें पाया गया कि समुद्र में जाने वाला अधिकांश वैश्विक प्लास्टिक कचरा एशिया से आ रहा है, जिसमें अधिकांश अस्पताल का कचरा है।

निजी कचरे से कई गुणा अधिक है चिकित्सा कचरा

अध्ययन विकासशील देशों में चिकित्सा अपशिष्ट के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता पर बल देता है। यूसी सैन डिएगो में सहायक प्रोफेसर सह-लेखक अमीना शार्टुप ने कहा, ‘‘जब हमने हिसाब लगाना शुरू किया तो हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि चिकित्सा कचरे की मात्रा व्यक्तियों के निजी कचरे की मात्रा से बहुत अधिक थी और इसका बहुत कुछ हिस्सा एशियाई देशों से आ रहा था।’’

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एशियाई नदियों से 73% कचरा समुंद्र में आता है

शार्टुप ने कहा, ‘‘अतिरिक्त कचरे का सबसे बड़ा स्रोत उन क्षेत्रों में अस्पताल रहे जो महामारी से पहले ही अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या से जूझ रहे थे।’’ अध्ययन में शामिल नानजिंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर यान्क्सू झांग ने कहा, ‘‘अध्ययन में प्रयुक्त नानजिंग विश्वविद्यालय एमआईटीजीसीएम-प्लास्टिक मॉडल (एनजेयू-एमपी) ‘‘एक आभासी वास्तविकता’’ की तरह काम करता है और यह ‘‘मॉडल इस बात का अनुकरण करता है कि कैसे हवा के प्रभाव से समुद्र में लहरें गतिमान रहती हैं और कैसे प्लास्टिक महासागर की सतह पर तैरता रहता है, सूरज की रोशनी से क्षीण होता है, प्लैंकटन द्वारा दूषित होता है, समुद्र तटों पर वापस आता है और गहरे पानी में डूब जाता है।’’

एशियाई नदियों से कुल 73 प्रतिशत प्लास्टिक आता है, जिसमें शीर्ष तीन योगदानकर्ता शत अल-अरब, सिंधु और यांग्त्जी नदियां हैं, जो फारस की खाड़ी, अरब सागर और पूर्वी चीन सागर में जाकर मिलती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि अन्य महाद्वीपों से मामूली योगदान के साथ यूरोपीय नदियों से 11 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा महासागरों में आता है।

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