नई दिल्ली। हर साल पुरी से निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा इस साल 12 जुलाई सुमवार को निकाली जाएगी। जगन्नाथ रथ यात्रा 12 जुलाई से शुरू होगी वहीं इसका समापन 20 जुलाई को होगा। मान्याता है कि इस जगन्नाथ यात्रा के पहले दिन भगवान रथ में बैठकर प्रसिद्ध गुंडिया माता के मंदिर जाते हैं। हिन्दू पंचाग के अनुसार रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। जगन्नाथ रथ यात्रा हिन्दू धर्म का बहुत प्रसिद्ध पर्व माना जाता है। हर साल भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा उड़ीसा के पुरी से निकाली जाती है। पुरी में हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा का विशाल आयोजन किया जाता है। सैकड़ों की संख्या में लोग इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं और भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते है।
कोरोना का रखा जा रहा है ध्यान
इस साल भी रथ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है जो 12 जुलाई से शुरू होकर 20 जुलाई को समाप्त होगा। कोरोना काल को देखते हुए इस बार रथ यात्रा में जो भी शामिल होगा उसे 4 बार आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाना होगा। वहीं कोरोना की रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही रथ यात्रा में शामिल हो सकते हैं। इसके साथ ही इस बार आयोजित होने वाली रथ यात्रा में कोरोना का पूरी तरह से ध्यान रखा जाएगा। कोरोना गाइडलाइन के पालन के साथ ही यह रथ यात्रा आयोजित की जाएगी।
भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा पूरे भारत में मशहूर है लेकिन क्या आप जनते हैं रथ यात्रा के पीछे का महत्व
इस प्रकार निकलती है रथ यात्रा
स्नान पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान जगन्नाथ को उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर के समीप बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है। वहीं स्नान कक्ष में ले जाने के बाद 15 दिनों के लिए भगवान को विशेष कक्ष में रखा जाता है। इन 15 दिनों की अवधी में सेवकों के अलावा भगवान को कोई नहीं देख सकता है। 15 दिन के बाद भगवान कक्ष से बाहर आते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके अगले दिन भगवान भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होते हैं और नगर का भ्रमण करते हैं।
एक बार ही खुलता है कुआं
कहा जाता है कि भगवान को जिस कुंए के पानी से स्नान करवाया जाता है वह साल में एक ही बार खुलता है। इसके साथ ही भगवान को स्नान 108 घड़ों में पानी भरकर करवाया जाता है। हर साल भगवान की प्रतिमा नीम की लकड़ियों से बनाई जाती है। इन प्रतिमा में रंगों का पूरी तरह से ध्यान रखा जाता है। भगवान जगन्नाथ के साथ बलराम और सुभद्रा की भी प्रतिमा नीम की लकड़ियों से ही बनाई जाती है। भगवान जगन्नाद जिस रथ में सवार होते हैं उसकी ऊंचाई 45.6 फुट होती है। उसे नंदीघोष भी कहा जाता है। वहीं बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ होता है। इस रथ को बनाने का काम अक्षय तृतीया से शुरू कर दिया जाता है जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक पूरी तरह से तैयार हो जाता है।