हाइलाइट्स
- बाबा प्रेमानंद पर टिप्पणी के बाद चर्चा तेज
- पूरे संत समाज में हलचल
- दिव्यांगता के बावजूद सफलता
Jagadguru Rambhadracharya: जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) और संत प्रेमानंद महाराज (Sant Premanand Maharaj) के बीच हाल ही में एक विवाद सामने आया है। यह विवाद संस्कृत ज्ञान (Sanskrit Knowledge) को लेकर हुआ। रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज की विद्वत्ता पर सवाल उठाते हुए एक चुनौतीपूर्ण बयान दिया। इस बयान को कई लोगों ने अपमानजनक मान लिया और इससे पूरे संत समाज (Sant Samaj) में हलचल मच गई।
रामभद्राचार्य का संस्कृत ज्ञान
रामभद्राचार्य का अध्ययन वाराणसी (Varanasi) स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय (Sampurnanand Sanskrit University) से हुआ। यहां उन्होंने वेद (Vedas), दर्शन (Philosophy) और संस्कृत व्याकरण (Sanskrit Grammar) पर गहरी पकड़ बनाई। इसी शिक्षा ने उन्हें विश्व स्तर पर मान्यता दिलाई और जगद्गुरु (Jagadguru) की उपाधि प्रदान की गई।
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दिव्यांगता के बावजूद सफलता
रामभद्राचार्य बचपन से ही दृष्टिबाधित (Visually Impaired) हैं। जब वह केवल दो महीने के थे, तब ट्रेकोमा (Trachoma) नामक बीमारी के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई। लेकिन इस कठिनाई के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी गहरी छाप छोड़ी।
समाजसेवा और शिक्षा में योगदान
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने रामकथा (Ramkatha) की शुरुआत की और उससे प्राप्त धन को दिव्यांगों (Differently Abled) की सेवा में लगाया। उन्होंने पहले मिडिल स्तर तक पढ़ाई के लिए एक विद्यालय (School) खोला और बाद में एक विश्वविद्यालय (University) की स्थापना की। इस तरह उन्होंने समाज में शिक्षा और सेवा दोनों क्षेत्रों में बड़ा योगदान दिया।
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