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जबलपुर। Jabalpur News: मध्य प्रदेश के जबलपुर में सिकल सेल एनीमिया बीमारी से पीड़ित 63 मरीज मिले हैं, जिनका विशेषज्ञ डॉक्टर्स की निगरानी में इलाज चल रहा है। केंद्र सरकार का जनजाति कार्य मंत्रालय इस बीमारी से जुड़ी गाइडलाइन बनाने में जुटा है।
स्वास्थ्य कर्मियों को इसके इलाज और रोकथाम के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि इस बीमारी को फैलने से रोका जाए। दरअसल, सिकल सेल एनिमिया एक ऐसी बीमारी है, जिसकी चपेट में आने से जिंदगी नासूर बन जाती है। उंगलियों की लंबाई में अंतर, हड्डियों में दर्द, वजन का बढ़ना और थकान जैसे लक्षण पाए जाते हैं।
घातक बीमारी सिकल सेल एनीमिया
पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार को अपनी चपेट में लेने वाली घातक बीमारी सिकल सेल एनीमिया के खात्मे के लिए अब सरकार ने कमर कस ली है। हालांकि, मूल रूप से आदिवासी अंचलों में पैर पसारने वाली सिकल सेल एनीमिया बीमारी अब आदिवासी जिलों से होकर शहरी इलाकों में भी तेजी से पनपती नजर आ रहा है।
यही वजह है कि जबलपुर जैसे शहर में भी पिछले दिनों 63 सिकल सेल एनीमिया के मरीज रिपोर्ट किए गए थे जिन का इलाज विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में चल रहा है। सिकल सेल एनीमिया को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अभी कोई गाइडलाइन नहीं है। लिहाजा केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने इसकी गाइडलाइन बनाने का जिम्मा जबलपुर के राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान को सौंपा है।
सिकल सेल एनीमिया से संबंधित गाइडलाइन
जबलपुर के राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सिकल सेल एनीमिया से संबंधित गाइडलाइन तो बनाई ही जा रही है साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों को इस लाइलाज रोग के ईलाज और रोकथाम के लिए ट्रेनिंग भी दी जा रही है।
अनुवांशिक बीमारी सिकल सेल एनीमिया को लेकर प्रशासन का दावा है कि जबलपुर जिले में पाए गए 63 सिकल सेल एनीमिया के रोगियों की नियमित रूप से जांच कराई जा रही है। साथ ही उन्हें निशुल्क दवाइयां और समय-समय पर खून की भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
स्वयंसेवी संगठनों की भी मदद
इस काम में स्वयंसेवी संगठनों की भी मदद ली जा रही है। इसके अलावा बच्चों को इस लाइलाज बीमारी से बचाने के लिए गर्भवती महिलाओं का भी परीक्षण किया जा रहा है। सिकल सेल एनीमिया बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए प्रदेश स्तर पर स्क्रीनिंग के लिए 89 विकासखंडों का चयन किया गया है।
क्या है सिकल सेल बामारी?
इस घातक बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों को जिंदगी में जिंदगी भर जहां जद्दोजहद करनी पड़ती है, तो वहीं लगातार दवाइयों के सेवन के साथ ही जीवनभर सावधानी बरतनी पड़ती है। चिकित्सकों द्वारा ऐसे मरीजों को बारिश में न भीगने से लेकर ज्यादा धूप में न रहने की सलाह भी दी जाती है।
सिकल सेल एनीमिया की बीमारी से पीड़ित लोगों के शरीर का खून में पाए जाने वाले पाए जाने वाले आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल धीरे-धीरे सूखने लगते हैं, जिसके चलते जिस्म को अतिरिक्त खून की जरूरत पड़ने लगती है यही वजह है कि ऐसे मरीजों को हर दो-तीन माह में नए खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
पीढ़ी दर पीढ़ी और सामुदायिक स्तर पर लगातार फैलते जा रहे सिकल सेल एनीमिया को लगातार अनुसंधान किए जा रहे हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक अब गर्भावस्था के 10 से 14 हफ्ते में जांच के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में पलने वाला शिशु एनीमिया से पीड़ित है या नहीं।
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