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MP High Court: जबलपुर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, मौत से पहले मौखिक वसीयत पर नहीं चलेगा दावा, मर्डर केस में 3 आरोपी बरी

जबलपुर हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि मौत से पहले दिया गया मौखिक बयान या मौखिक वसीयत बिना स्वतंत्र और ठोस साक्ष्य के स्वीकार नहीं की जा सकती। अदालत ने 2019 के लूट व हत्या मामले में इसी आधार पर तीन आरोपियों को राहत दे दी।

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Vikram Jain
MP High Court: जबलपुर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, मौत से पहले मौखिक वसीयत पर नहीं चलेगा दावा, मर्डर केस में 3 आरोपी बरी

हाइलाइट्स

  • जबलपुर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय।
  • मौत से पहले मौखिक वसीयत पर अविश्वास।
  • हाईकोर्ट ने लिखित सबूत को बताया अनिवार्य।
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Jabalpur High Court Oral Will Verdict: जबलपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए मौखिक वसीयत और मौत से पहले दिए गए मौखिक बयानों (Oral Dying Declaration) की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह जताया है। हाईकोर्ट ने मौत से पहले दिए मौखिक बयान और मौखिक वसीयत को अविश्वसनीय माना। अदालत ने स्पष्ट कहा कि ऐसे मौखिक दावों को तब तक मान्य नहीं माना जा सकता, जब तक इन्हें मजबूत, स्वतंत्र और लिखित सबूतों का समर्थन न मिले।

इसी आधार पर अदालत ने 2019 के हत्या और लूट के मामले में 3 आरोपियों को राहत दे दी, तीनों की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें रिहा कर दिया गया। FIR और प्रारंभिक बयान में नाम न होने तथा गवाहों के विरोधाभासी बयान अदालत के निर्णय का आधार बने।

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मौखिक वसीयत पर अदालत की टिप्पणी

जबलपुर हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस एके सिंह की बेंच ने कहा कि मृत्यु से पहले किसी व्यक्ति द्वारा कही गई मौखिक बात को कानूनी रूप से स्वीकार करने के लिए पुख्ता सबूत आवश्यक हैं।

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कोर्ट ने साफ कहा कि मौखिक वसीयत और मौखिक डाइंग डिक्लरेशन दोनों को बिना स्वतंत्र साक्ष्य के आधार मानकर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता।

जानें पूरा मामला

मामला 2019 में हुई लूट और हत्या से जुड़ा था। मामले में तीन आरोपी रमाकांत यादव, पिंकी यादव (पति-पत्नी) और मिंटू उर्फ घनश्याम को निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि FIR में इन आरोपियों के नाम दर्ज नहीं थे, प्रारंभिक बयान में भी इनके नाम शामिल नहीं थे। साथ ही गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे। इन कारणों से अदालत ने कहा कि दोषसिद्धि विश्वसनीय आधार पर टिक नहीं सकती।

विरोधाभासी बयानों पर कोर्ट सख्त

गवाहों और शिकायतकर्ता के बयानों में भारी विरोधाभास देख कोर्ट ने निर्णय दिया कि ऐसे मामलों में मौखिक बयान पर भरोसा करना न्याय के हित में नहीं है। अदालत ने कहा कि किसी को दोषी ठहराने के लिए ठोस, लिखित और स्वतंत्र साक्ष्य जरूरी हैं।

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आरोपियों को मिली राहत

इन सभी कारणों को देखते हुए अदालत ने मामले में सजा पर रोक लगा दी। साथ ही तीनों आरोपियों को रिहा कर दिया। मामले की आगे जांच के निर्देश दिए गए हैं। इस फैसले को भविष्य के संपत्ति विवादों और गंभीर आपराधिक मामलों में भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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