IPS Siddharth Tiwari Success Story: बंसल न्यूज (Bansal News) की इस खास स्टोरी में हम एक ऐसे IPS ऑफिसर की सक्सेस स्टोरी जानेंगे, जिन्होंने न सिर्फ पत्रकारिता की बल्कि एमबीए, और एफसीआई में क्लास 1 की नौकरी के बाद यूपीएससी की तैयारी की और सफलता हासिल कर अपनी मां का सपना भी पूरा किया। हम बात कर रहे हैं, IPS सिद्धार्थ तिवारी की। सिद्धार्थ यूपीएससी 2015 बैच के IPS अफसर हैं, वर्तमान में वे छत्तीसगढ़ के कोरबा में पदस्थ हैं। IPS सिद्धार्थ तिवारी की यूपीएससी की जर्नी बहुत ही रोमांचक रही है। UPSC क्रैक करने की इस जर्नी में IPS सिद्धार्थ की पत्नी ने उनकी बहुत मदद की।
IPS सिद्धार्थ ने बताया- मैं इस बात में विश्वास करता हूं कि यदि मेरी पत्नी मेरा सपोर्ट नहीं करतीं.. क्योंकि नई शादी होती है कई सारे ड्रीम्स होते हैं कई सारे एस्पिरेशंस होते हैं। तो ये सोचकर कि हम एक हायर गोल के लिए काम कर रहे हैं, मेरी पत्नी ने मेरा बहुत सपोर्ट किया और अभी तक कर रही हैं। पुलिस की भी एक बहुत ही चैलेंजिंग नौकरी होती है, हर दिन एक नया चैलेंज लेकर आती है। यदि आपको घर पर एक इमोशनल स्टेबिलिटी मिलती है तो काम करने में कई गुना आराम से उस काम को कर सकते हैं।
वाइफ लाती थीं टेस्ट पेपर्स और किताबें
IPS सिद्धार्थ ने आगे बताया कि उनकी पत्नी सेंट्रल जीएसटी में बतौर इंस्पेक्टर काम करती थीं। हम लोग मेट्रो से ट्रैवल करते थे, तो उनके ऑफिस से राजेंद्र नगर पास होता था। मेरे जो टेस्ट सीरीज की आंसर शीट्स होती थीं या जो किताबें होती थीं। राजेंद्र नगर से काफी सारी बुक्स मिल जाती थीं, तो मेरी पत्नी जाती थीं बुक्स लेकर आती थीं। मैं ज्यादातर घर पर रह कर ही अपनी पढ़ाई करता था। यूपीएससी जैसा कि आप सिर्फ एक एस्पिरेंट या एक ऑफिसर को देखते हैं, लेकिन बहुत से लोग हैं जिन्होंने हमे मोटिवेट किया होगा, गाइड किया होगा, सबके सम्मलित योगदान से ही ये एग्जाम क्लियर हो सकता है।
आगे IPS सिद्धार्थ ने बताया कि मैं जब एफसीआई में काम करता था तो मेरे बॉस जीएन राजू, वो डीजीएम हुआ करते थे। एक लड़का जो पढ़ाई करता है उसे छुट्टियां चाहिए, उन्होंने छुट्टियां दीं, अपनी अर्न्ड लीव दीं पर दीं कि जाओ तुम पढ़ो। वे यदि छुट्टियां नहीं देते तो हमें हमेशा मन में खिंचाव रहता। तो कितने ही लोग हैं जिन्होंने हेल्प की होगी। लोगों सिर्फ सिद्धार्थ तिवारी या एक अधिकारी दिखता है, लेकिन उस पेपर को क्लियर करने में बहुत सारे लोगों का योगदान और सैक्रिफाइस होता है और शुभकामनाएं होती हैं।
मां और पत्नी के साथ बैठकर दूसरे एस्पीरेंट्स के पेपर एनालाइज करते थे IPS सिद्धार्थ
IPS सिद्धार्थ ने आगे कहा- एक एकेडमी हुआ करती थी जहां मैं पेपर लिखा करता था। वो एकेडमी जो अच्छे लिखने वाले बच्चे होते थे उनके पेपर स्कैन करके अपलोड करते थे। मैं, मेरी माता जी और मेरी पत्नी बैठकर उन बच्चों के पेपर पढ़ा करते थे। साथ ही देखते थे कि ये बच्चे क्या कर रहे हैं और क्या सुधार हम कर सकते हैं, इस तरह से हमने उसमें सुधार किया।
कभी घड़ी को चुराने पर मां ने लगाई थी पिटाई
बचपन में IPS सिद्धार्थ ने एक गलती की थी, जिसके चलते उनकी मां ने उनकी पिटाई की थी। इसके बारे में IPS सिद्धार्थ बताते हैं कि मेरा विश्वास है कि हर एक बच्चा अपने माता पिता का प्रतिबिंब होता है। उसके व्यक्तित्व में उसके माता पिता एक बहुत अहम किरदार होते हैं। मैंने बचपन में एक घड़ी चुराई थी, और जब मेरी माता को पता चला कि मैं एक घड़ी को चुरा के लेकर आया हूं तो उन्होंने मेरी पिटाई की और रातभर के लिए मुझे घर से बाहर खड़ा कर दिया। दरअसल, उस टाइम पर एक घड़ी आई थी जिसको दबाते थे तो वो बोलती थी। वो बहुत यूनिक सी चीज हुआ करती थी उस वक्त। वो मुझे एक ग्राउंड में मिली तो मैं उसे उठाकर ले आया। इसके बाद मेरी खूब पिटाई हुई।
आगे IPS सिद्धार्थ बताते हैं कि जो ईमानदारी सीखी माता जी, पिता जी से ही सीखी। सम्मान के साथ रहना है, जो सही है उसके लिए काम करना है और मैं हमेशा शुक्रगुजार हूं, भगवान ने मुझे ऐसे माता पिता दिए, जिन्होंने मुझको और मेरे भाई को ऐसी परवरिश दी।
जामिया में ऐसा रहा IPS सिद्धार्थ का एक्सपीरिएंस
IPS सिद्धार्थ ने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता के कोर्स के बारे में अपना एक्सपीरिएंस शेयर करते हुए बंसल न्यूज को बताया, हमारा सालभर का जर्नलिज्म का कोर्स था। जामिया मिलिया इस्लामिया में जो मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर है, उस वक्त वहां का इनटेक बहुत ही कम था। बहुत ही कम बच्चों का वहां सिलेक्शन होता था और बहुत ही बड़ा कैम्पस था। जब वहां गए तो पता चला कि बहुत ही दिग्गज नाम वहां से पढ़कर निकले हैं। शाहरुख खान, बरखा दत्त, मौनी रॉय जो फिल्म अभिनेत्री हैं वो मेरी बैचमेट हुआ करती थीं। वहां जाने के बाद बहुत ही एक्साइटमेंट भी होता था क्योंकि वहां कई सारी चीजें जैसे कैमरा, लाइटिंग, एडिटिंग के बारे में हमको सिखाया जाता था।
वॉइस ऑफ द वॉइसलेस के विचार लेकर दिल्ली आए थे IPS सिद्धार्थ
आगे IPS सिद्धार्थ बताते हैं- हालांकि, आप एक सपना लेकर आते हैं, लेकिन धरातल और सपने में एक गैप होता है। वॉइस ऑफ द वॉइसलेस, हारबिंगर ऑफ सोशल चेंज ये सब विचार लेकर में दिल्ली आया था। मुझे लगा कि जो कॉम्पिटेंस के लिए चाहिए वो डेवलप करने में मुझे अभी समय लगेगा। चुंकि मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से था, तो अच्छी नौकरी हमारी दरकार होती है, हमें गुड करियर बहुत जरूरी होता है। इसलिए मैं अब एक भगोड़ा पत्रकार हूं! तो जैसी किस्मत रही और जैसा-जैसा समय आता है उसके हिसाब से आदमी डिसीजन लेता है और आगे बढ़ता है।
पत्रकारिता के बाद मैंने एमबीए भी किया। अगर पत्रकारिता नहीं तो कॉर्पोरेट फिर एक नेक्स्ट ऑप्शन होता है कि कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी करेंगे। इसलिए फिर मैंने एमबीए के लिए प्रिपेयर किया और भगवान की कृपा से एमबीए में मेरा एडमिशन भी हो गया।
इतिहास में ऐसे इंट्रेस्ट डेवलप हुआ, डिबेट के मिलते थे 300-100 रुपए
IPS सिद्धार्थ ने बंसल न्यूज को आगे बताया, जब मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में था तो 300 रुपए, 200 रुपए, 100 रुपए कभी 1000 रुपए डिबेट कॉम्पिटीशन के लिए प्राइज मनी मिला करती थी। तो हम युवा थे, दो दोस्तों के साथ जाया करते थे उनके साथ मेरी एक टीम थी तो कोशिश करते थे कि जाएं और जीतकर आएं। और हम जीते भी बहुत बार जीते। इससे ही मेरी पब्लिक स्पीकिंग स्किल डेवलप हुई और ये बहुत समय की प्रेक्टिस है, धीरे-धीरे-धीरे काम करते हैं।
जैसे दिल्ली में जब हम अपने माता-पिता के साथ घूमने जाते थे, तो वे हमे कुतुब मीनार, लाल किला ले जाते थे। क्योंकि उस वक्त मॉल वगैरा जैसे ऑप्शन नहीं हुआ करते थे। तो तब वहां कि कहानी मेरी माता जी और पिता जी बताते थे, उसमें मेरा इंट्रेस्ट होता था। जैसे अग्रसेन की बावली करके एक जगह है जिसका नाम भी बहुत लोगों नहीं सुना होगा। कनौट प्लेस के बीच में लगभग 500-600 साल पुरानी एक बावली है, जिसमें पानी भरा रहता था और उसमें से ही लोग पानी निकाला करते थे। ऐसे बहुत सारे मॉन्यूमेंट्स दिल्ली में हैं, दिल्ली इतिहास का गड़ है। तो हम सब घूमते रहते थे, और जगहों के बारे में पता लगता रहता था। इससे इतिहास में, पढ़ने लिखने में मेरा इंट्रेस्ट आया। जैसे एक नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया है, वहां से बहुत सस्ती किताबें आया करती थी, 2-5 रुपए की। इतिहास, जानवरों, वाइल्ड लाइफ पर वो मेरे माता-पिता दिलाते थे। हम ऋषिकेश जाते थे तो वहां एक गीता प्रेस गोरखपुर की 1 रुपए, 2 रुपए की किताबें होती थीं, वो सब पढ़ते रहते थे। अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि बहुत समय निकल गया है। दूसरा ये लगता है कि इन सब चीजों ने कैसे आपको शेप किया है।
‘UPSC आपको फिजिकली, इमोशनली और मेंटली थकाने वाला एग्जाम है’
IPS सिद्धार्थ ने आगे हमें बताया कि उन्होंने फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) में क्लास 1 अफसर होने के बाद भी UPSC का रास्ता कैसे चुना। IPS सिद्धार्थ ने कहा- मेरी माता जी का बहुत लंबे समय से सपना था। मुझे लगता है कि यूपीएससी एक ऐसा एग्जाम है कि जब तक व्यक्ति स्वतः इसकी पढ़ाई ना करे तब तक वो इस एग्जाम को क्लियर नहीं कर सकता है। एमबीए के टाइम पर या जब मैं जर्नलिज्म की पढ़ाई कर रहा था, क्या है कॉन्फिडेंस भी चाहिए होता है। यूपीएससी एक बहुत ही फिजीकली, मेंटली, इमोशनली, आपको थकाने वाला एग्जाम है, वो बहुत महनत मांगता है। कभी-कभार हम तैयार नहीं होते, या तो हमें अपनी केपेबिलिटी पर विश्वास नहीं होता है, कभी-कभी हम तैयार भी नहीं होते कि हम इतनी महनत कर सकते हैं।
आगे IPS सिद्धार्थ ने कहा जब मैं नौकरी में आया और 2013 में यूपीएससी का पैटर्न भी चेंज हुआ। जब मैं छोटा था तो यूपीएससी के बारे में लोगों के मन में एक धारणा थी कि उसमें बहुत रट्टा मारना पड़ता है और बहुत कठिन होता है। साल 2013 में जब मच्योरिटी भी आने लगी सोच में, तो पता चला कि GS-4 के चार पेपर्स इंट्रोड्यूस किए गए हैं और एक ऑप्शनल भी खत्म कर दिया गया, ऐसा एनालिसिस और न्यूज में आया। तब एक विश्वास आया मेरे मन में कि में पढ़ सकता हूं और इसे कर सकता हूं।
रूममेट ने दिलाई UPSC की किताबें
IPS सिद्धार्थ ने आगे कहा भगवान अननोन क्वारटर से हमारी मदद कराता है। जब मेरा यूपीएससी का इल्म भी नहीं था कि मैं पढ़ूंगा या करूंगा, तब मैं एफसीआई में एजीएम हुआ करता था। मेरे साथ मेरी ही शाखा में एक लड़के की पदस्थापना हुई, उसका नाम था संदीप बलागा, वो भी एफसीआई में एजीएम था। संदीप और मैं एक कमरे में रहते थे, वो दिनभर पढ़ाई करता था और मैं नहीं पढ़ता था। मेरे मन में ख्याल आता ता कि मैं सारा दिन फाइलों में डूबा रहता हूं, और ये यूपीएससी की पढ़ाई करता है, मैं भी पढ़ाई करूं। तो संदीप ने ही मुझे पहली बार यूपीएससी की किताबें दिलाईं और सब महनत करने के बारे में बताया कैसे पढ़ सकते हैं। हम दोनों ने यूपीएससी दिया और मेरा सिलेक्शन IPS (Indian Police Services) में छत्तीसगढ़ कैडर में हुआ और संदीप बलागा जो मेरा रूममेट हुआ करता था, उसका सिलेक्शन भी छत्तीसगढ़ कैडर में IFS (Indian Forest Services) में हुआ, 2015 बैच। इसके बाद हम दोनों दंतेवाड़ा में एसपी और डीएफओ भी रहे। तो ये जीवन का चक्र है चलता रहता है, अलग-अलग रंग दिखाता है, देखते रहते हैं आगे, सीखते रहते हैं।
यूपीएससी एस्पिरेंट्स के लिए IPS सिद्धार्थ तिवारी की राय
IPS सिद्धार्थ 2013 के अपने पहले अटेम्प्ट के बारे में बताते हैं- जब मैंने पहली बार पेपर दिया 2013 में तो मैंने कोचिंग नहीं ली थी और मैं पढ़ भी नहीं पाया था। दरअसल, तब हमें एक गाइडेंस नहीं थी कि कैसे इस पेपर के लिए पढ़ना है क्योंकि पैटर्न भी पहली बार चेंज हुआ था। किसी को भी ये अंदाजा नहीं था कि किन चीजों के ऊपर एग्जाम में आएगा। हालांकि, जब मैं पेपर लिख रहा था, मुझे समझ आ गया था कि मैं नहीं कर पाउंगा, लेकिन जब मैं क्वेश्चन को पढ़ रहा था, तो मुझे समझ आया कि इस तरह के सवाल को मैं बहुत आराम से निकाल सकता हूं यदि मैं इसके बारे में पढ़ूं। इसके बाद मैंने एक शॉर्ट एनालिसिस भी किया, सिलेबस को बार-बार पढ़ना। जो बच्चे यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं उन्हें मैं कहूंगा कि सिलेबस को ही अपनी गाईड मानिए। मैं सिलेबस को डेली सुबह उठकर पढ़ता था कि सिलेबस क्या मांग रहा है, हमको वो पढ़ना है जो सिलेबस पूछ रहा है। कई बार एग्जाम और जीवन में हम वो बताते हैं जो हमको पता है, लेकिन यूपीएससी में हमको वो लिखना है जो क्वेश्चन पूछ रहा है। क्वेश्चन का एनालिसिस, यदि वो डिस्कस बोल रहा है तो डिस्कस करना है, एनालाइज लिखा है तो एनालाइज करना है, क्रिटिक बोल रहा है तो क्रिटिकल एलिमेंट्स लिखने हैं। ये सब यूपीएस में पेपर लिखकर ही समझ आईं।
वरिष्ठ अधिकारियों का सपोर्ट मिला
IPS सिद्धार्थ तिवारी ने आगे बताया कि आईपीएस की ट्रेनिंग बहुत ही अनोखी है। वो आपको एकदम ही रैंक आउट साईडर से एक लड़का जो थाने के सामने से निकलने में भी थर्राता हो घबराता हो, उसको चेंज करते हैं पॉलिश करते हैं कि वो इस सर्विस में आ सके। आगे IPS सिद्धार्थ ने कहा जब आपको पहला जिला मिलता है, आप एडिशनल एसपी रहते हैं, सीएसपी रहते हैं तो सिर पर माई-बाप होता है विभाग में। यदि आपसे कोई गलती हो तो आपको बचा ले, शेल्टर ले। यदि मन में कोई दुविधा हो तो डायरेक्ट रिस्पॉन्सिबिलिटी आपकी नहीं होती। हां जब आप एसपी होते हैं तो आपको सारे डिसीजन लेने भी पड़ते हैं। लेकिन मैं बहुत लकी था कि जो मेरे वर्तमान आईजी हैं संजीव शुक्ला सर, उस वक्त डीआईजी कांकेर हुआ करते थे। सुंदराज सर उस समय आईजी हुआ करते थे। मुझसे गलतियां भी हुई होंगी और हुई थीं, मैं जानता हूं कि कुछ डिसीजन हम बैटर तरीके से हैंडल कर सकते थे, लॉ एंड ऑर्डर था। वरिष्ठ अधिकारियों ने हमेशा हमको सपोर्ट भी किया, हमें बताया, हमें रास्ता भी दिखाया कि क्या रास्ता है जिस पर आप चलेंगे तो समस्या भी कम होगी और समाधान भी निकलेगा।
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