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नई दिल्ली। भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने वियना में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में किशनगंगा और रतले मामले में परमानेंट कोर्ट आफ आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता के लिए गठित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय) की बैठक में भाग लिया। यह बैठक 20 और 21 सितंबर को हुई। विदेश मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, यह बैठक भारत के अनुरोध पर बुलाई गई थी, जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
जल संसाधन विभाग के सचिव ने लिया भाग
इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जल संसाधन विभाग के सचिव ने किया। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने इस बैठक में भारत के प्रमुख वकील के रूप में शामिल हुए। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि भारत की भागीदारी सैद्धांतिक रुख के अनुरूप है
भारत नहीं है बाध्य
मालूम हो कि इससे पहले विदेश मंत्रालय ने जुलाई में कहा था कि भारत मामले में इस तरह की अवैध और समानांतर प्रक्रिया को मान्यता देने या उसमें शामिल होने के लिए बाध्य नहीं है। भारत ने कहा था कि इस मामले में नई दिल्ली का सुसंगत और सैद्धांतिक रुख रहा है। विज्ञप्ति के मुताबिक, अवैध रूप से गठित तथाकथित मध्यस्थता अदालत ने फैसला सुनाया है कि उसके पास किशनगंगा और रतले पनबिजली परियोजनाओं से संबंधित मामलों पर विचार करने की क्षमता है।
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