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Indore News: इंदौर के शीतलामाता बाजार से मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने का फैसला, विधायक के बेटे ने दिया था अल्टिमेटम

Indore Sheetlamata Bazar Controversy News: इंदौर के शीतलामाता बाजार में भाजपा नेता के बेटे की अपील के बाद मुस्लिम कर्मचारियों को हटाया गया।

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Shashank Kumar
Indore Sheetlamata Bazar Controversy News

Indore Sheetlamata Bazar Controversy News

हाइलाइट्स 

  • मुस्लिम कर्मचारियों को हटाया गया

  • व्यापारियों में फैली असहजता

  • भाईचारे पर राजनीतिक वार

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Indore Sheetlamata Bazar Controversy News: मध्य प्रदेश के इंदौर शहर का शीतलामाता बाजार, जो वर्षों से हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का प्रतीक रहा है, आज एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया है। इस विवाद की जड़ में हैं भाजपा (BJP) की विधायक मालिनी गौड़ के बेटे और नगर उपाध्यक्ष एकलव्य सिंह गौड़, जिन्होंने हाल ही में मुस्लिम कर्मचारियों को बाजार से हटाने का अल्टीमेटम दिया था।

उनका कहना है कि बाजार में लव जिहाद (Love Jihad) जैसी घटनाओं की आशंका है, और इससे हिंदू महिलाओं की सुरक्षा खतरे में है। अब यह मामला न सिर्फ स्थानीय व्यापारियों और कर्मचारियों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि शहर की गंगा-जमुनी तहजीब (communal harmony) पर भी सवाल उठा रहा है।

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एकलव्य सिंह गौड़ ने दिया था अल्टीमेटम 

हिंद रक्षक संगठन के संयोजक एकलव्य सिंह गौड़ ने 25 अगस्त को शीतलामाता बाजार के व्यापारियों के साथ बैठक कर मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने की बात कही थी। उन्होंने दावा किया कि कुछ मुस्लिम सेल्समैन महिलाओं से छेड़छाड़, रास्ता रोकने और लव जिहाद के संगठित अपराध में शामिल हैं। गौड़ का आरोप है कि “यह अब षड्यंत्र नहीं, बल्कि एक संगठित आपराधिक गतिविधि है।”

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उनका बयान था कि अगर व्यापारी 25 सितंबर तक उनकी बात नहीं मानते, तो वे “अपने तरीके से” एक्शन लेंगे। इस अल्टीमेटम के बाद बाजार में तनाव की स्थिति बनी और अधिकांश दुकानदारों ने मुस्लिम कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया।

व्यापारियों की मजबूरी या दबाव में फैसला?

बाजार में करीब 400 दुकानें हैं, जिनमें 70 से अधिक मुस्लिम सेल्समैन काम कर रहे थे। एसोसिएशन के महासचिव अतुल नीमा के अनुसार, अधिकांश मुस्लिम कर्मचारियों को हटाया जा चुका है और शेष को भी निकालने की प्रक्रिया जारी है।

व्यापारी पप्पू महेश्वरी कहते हैं, “हम अपने कर्मचारियों को हटाना नहीं चाहते थे, लेकिन समाजिक और राजनीतिक दबाव के चलते ऐसा करना पड़ रहा है।” उन्होंने यह भी स्वीकारा कि यह फैसला व्यापारिक नुकसान के साथ-साथ सदियों से चली आ रही एकता को तोड़ने जैसा है।

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[caption id="attachment_902618" align="alignnone" width="1187"]Indore Sheetlamata Bazar Controversy News Indore Sheetlamata Bazar Controversy News[/caption]

हिंदू-मुस्लिम साझेदारी पर भी पड़ा असर

शीतलामाता बाजार सिर्फ कामकाज का केंद्र नहीं, बल्कि सांझा व्यापारिक संस्कृति की मिसाल रहा है। बलवंत सिंह राठौड़ जैसे व्यापारी, जिनकी दुकान एक मुस्लिम साझेदार के साथ है, अब अपने व्यवसाय से हाथ धो रहे हैं।

इस मामले में बलवंत सिंह ने कहा कि हमारी दुकान खाली करवाई जा रही है। सिर्फ इसलिए कि मेरा पार्टनर मुस्लिम है। ये भाईचारा खत्म किया जा रहा है। दूसरी ओर मुस्लिम दुकानदार मोहम्मद गुलजार कहते हैं, “हमने 30-35 साल शांति से काम किया है, लेकिन अब हमें केवल मुसलमान होने की वजह से हटाया जा रहा है।”

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सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर इंदौर?

इंदौर, जो अब तक सांप्रदायिक सौहार्द का उदाहरण रहा है, इस घटनाक्रम के बाद दो भागों में बंटता नजर आ रहा है। कांग्रेस शहर अध्यक्ष चिंटू चौकसे ने इसे “शहर की संस्कृति को तोड़ने की साजिश” बताया। उन्होंने कहा, “एकलव्य गौड़ का बयान और बैठक इंदौर की साझा विरासत पर हमला है।”

हालांकि एकलव्य गौड़ इस बात से इनकार करते हैं कि उन्होंने मुस्लिम कहकर किसी को निशाना बनाया है। उनका कहना है कि उनका उद्देश्य सिर्फ “जिहादी मानसिकता” के खिलाफ है, न कि किसी धर्म विशेष के।

प्रशासन की चुप्पी और कानूनी सवाल

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहा है। क्या किसी व्यक्ति या संगठन को यह अधिकार है कि वह खुलेआम लोगों को धार्मिक पहचान के आधार पर निकालने की अपील करे? क्या यह भारत के संविधान और समानता के अधिकार (Right to Equality under Article 14) का उल्लंघन नहीं है?

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की अपील न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि यह IPC की धारा 153A के तहत सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के प्रयास के रूप में देखी जा सकती है।

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लव जिहाद का मामला मिथक या सच?

गौरतलब है कि 'लव जिहाद' (Love Jihad) शब्द कोई कानूनी या संवैधानिक परिभाषा नहीं रखता। कई राज्य सरकारों ने इससे जुड़े कानून जरूर बनाए हैं, लेकिन अब तक कोई भी ऐसा ठोस डेटा नहीं आया है जो इसे "संगठित अपराध" साबित कर सके। राष्ट्रीय महिला आयोग और कई कोर्ट भी इस बात को कह चुके हैं कि हर अंतरधार्मिक प्रेम संबंध को संदेह की दृष्टि से देखना उचित नहीं।

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