इंदौर। केंद्र सरकार के स्वच्छ सर्वेक्षण में इंदौर के लगातार पांचवीं बार देश भर में अव्वल रहने की बुनियाद में गीले तथा सूखे कचरे के प्रसंस्करण से शहरी निकाय की मोटी कमाई के टिकाऊ रास्ते खोजना और बड़े पैमाने पर गंदे पानी के उपचार से इसे दोबारा उपयोग किए जाने के नवाचार हैं। स्वच्छ भारत अभियान के लिए इंदौर नगर निगम (आईएमसी) के सलाहकार असद वारसी ने शनिवार को बताया कि शहर में औसतन 300 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) गंदा पानी उत्सर्जित होता है और अलग-अलग इलाकों में बने विशेष संयंत्रों में इसके उपचार के बाद 110 एमएलडी पानी सार्वजनिक बगीचों, खेतों और निर्माण गतिविधियों में दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि गंदे पानी के प्रबंधन के सर्वश्रेष्ठ इंतजामों के चलते ही स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 के तहत इंदौर को देश के पहले वॉटर प्लस शहर के खिताब से अगस्त में नवाजा गया था। अधिकारियों के मुताबिक स्वच्छ सर्वेक्षण के वॉटर प्लस प्रोटोकॉल के दिशा-निर्देशों के अनुसार आईएमसी ने कान्ह-सरस्वती नदी और शहर में बहने वाले 25 छोटे-बड़े नालों में छूटे हुए 1,746 सार्वजनिक आउटफॉल (गंदा पानी बहने के रास्ते जिनसे यह अपशिष्ट जल स्रोतों में मिलता है) और 5,624 घरेलू सीवरेज आउटफॉल रोककर नदी-नालों को गंदगी से मुक्त किया है।इंदौर का शहरी निकाय सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की अलग-अलग परियोजनाओं के जरिये कचरे से मोटी कमाई भी कर रहा है।
कचरे से कम्पोस्ट खाद
आईएमसी के सलाहकार वारसी ने बताया कि निजी कम्पनियां शहर में गीले और सूखे कचरे के प्रसंस्करण से बायो-सीएनजी, कम्पोस्ट खाद तथा अन्य उत्पाद बना रही हैं और वे कचरा मुहैया कराने के बदले हर साल आईएमसी को प्रीमियम के तौर पर करीब आठ करोड़ रुपये अदा कर रही हैं। उन्होंने बताया कि शहर में 550 टन क्षमता का नया बायो-सीएनजी संयंत्र जल्द ही शुरू होने जा रहा है जिससे कचरे से आईएमसी की सालाना कमाई 10 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि इंदौर का स्वच्छता मॉडल 3 आर (रिड्यूज, रीयूज और रीसाइकिल) फॉर्मूला पर आधारित है। उन्होंने बताया कि शहर से बड़ी कचरा पेटियां छह साल पहले ही हटा दी गई थीं और आईएमसी की गली-मोहल्लों में लगातार चलने वाली करीब 700 गाड़ियों की मदद से लगभग हर घर एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान से गीला और सूखा कचरा अलग-अलग जमा किया जाता है।
नागरिकों को भी लगातार कर रहे प्रेरित
अधिकारियों ने बताया कि इस्तेमाल किए गए डाइपर और सैनिटरी नैपकिन जैसे जैव अपशिष्टों समेत छह तरह के कचरे को अलग-अलग जमा करने के लिए इन गाड़ियों में विशेष कम्पार्टमेंट बनाए गए हैं।मोटे अनुमान के मुताबिक कोई 35 लाख की आबादी वाले इंदौर में हर रोज तकरीबन 1,200 टन कचरे का अलग-अलग तरीकों से सुरक्षित निपटारा किया जाता है जिसमें 600 टन गीला कचरा और 600 टन सूखा कचरा शामिल है।अधिकारियों ने बताया कि आईएमसी की गाड़ियों द्वारा शहर में सूखे कचरे के संग्रहण की मात्रा दिनों-दिन कम हो रही है क्योंकि जीरो वेस्ट (शून्य अपशिष्ट) वॉर्ड बनाकर आम नागरिकों को घरेलू स्तर पर इसके सुरक्षित निपटान के लिए प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लगभग 8,500 सफाई कर्मी तीन पालियों में सुबह छह बजे से तड़के चार बजे तक लगातार काम करते हुए शहर को चकाचक रखते हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार के वर्ष 2017, 2018, 2019 और 2020 के स्वच्छता सर्वेक्षणों के दौरान भी इंदौर देश भर में अव्वल रहा था। वर्ष 2021 के सर्वेक्षण में यह खिताब कायम रखने के लिए आईएमसी ने इंदौर लगाएगा स्वच्छता का पंच का नारा दिया था।