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Indore High Court Verdict overturns the decision of Indore administration all accused released Hindi News
Indore High Court Verdict: सरकारी चावल की कालाबाजारी पर एक्शन के एक फैसले को उच्च न्यायालय ने बदल दिया है। प्रशासन की कार्रवाई को अवैध मानते हुए आरोपियों को रिहा कर दिया गया है। दरअसल, हाई कोर्ट ने यह माना है कि जिन तथ्यों के आधार पर मामला दर्ज किया गया है, उससे जुड़े सबूत ही प्रशासन के पास फिलहाल नहीं है। मई में प्रशासन ने सैकड़ों बोरी चावल को पकड़ा था और इस एक्शन को बड़ा-चढ़ाकर पेश किया था। दावा किया था कि सरकारी चावल रेहड़ी वालों से खरीदकर बियन और वाइन फैक्ट्री वालों को बच जिया जा रहा था।
खाद्य सुरक्षा विभाग ने सतीश अग्रवाल राम प्रसाद गुप्ता और सक्षम अग्रवाल के खिलाफ एक रिपोर्ट पेश की थी। इसपर कलेक्टर ने तीनों को छह-छह महीने के जेल का आदेश दिया था। इसपर आरोपी सतीश के वतील मुदित माहेश्वरी ने जानकारी दी कि कलेक्टर के ऑर्डर को आरोरियों ने इंदौर हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। अब उस आदेश को रद्द कर दिया गया है। साथ ही प्रशासन के द्वारा जो दावे किए गए थे, वह भी कोर्ट में साबित नहीं कर पाए।
ये तीन कारणों से कलेक्टर का आदेश किया रद्द
इंदौर हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि प्रशासन के पास आरोपियों के खिलाफ सबूतों की कमी है, जिसके कारण उच्च न्यायालय ने सभी को रिहा कर दिया। साथ ही कलेक्टर का आदेश रद्द करने के ये तीन कारणों ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका आरोपियों को रिहा होने में निभाई थी।
- पहला कारण यह है कि जांच रिपोर्ट बनाने में प्रशासन के द्वारा काफी लापरवाही हुई थी। कार्रवाई के संबंध में राज्य सरकार को समय सीमा में पूरी रिपोर्ट नहीं भेजी गई थी।
- दूसरा कारण यह है कि जो चावल जब्त करना बताया था, वह किसी सरकारी राशन दुकान का है, इसका सबूत ही हाई कोर्ट में पेश नहीं किया गया था।
- जबकि इसका तीसरा कारण प्रशासन ऐसी कोई भी लैब टेस्टिंग रिपोर्ट पेश नहीं कर पाया है, जिससे यह साबित हो सके कि यह चावल सरकारी चावल हैं।
कार्रवाई के बाद प्रशासन ने किया था यह दावा
इस मामले में अधिकारियों ने कहा था कि शासन द्वारा दिया जाने वाला मुफ्त अनाज लोग रेहड़ी वालों को 10 से 13 रुपए प्रति किलो में बेच देते हैं। इनसे छोटे दुकानदार यही चावल खरीदते हैं और उनसे बड़े व्यापारी। ऐसे में बड़े व्यापारियों से राम प्रसाद गुप्ता और सतीश अग्रवार यह चावल 20 रुपए से 22 रुपए प्रति किलो में खरीदकर बियर और वाइन फैक्ट्री वालों को 25 से 27 रुपए प्रति किलो में बेच देते थे। इसका उपयोग वह लोग शराब बनाने में किया करते हैं।
साथ ही अधिकारियों ने उस समय यह भी कहा था कि यह दोनों ही पुराने राशन माफिया हैं और दोनों के खिलाफ इससे पहले भी एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। वहीं, इस मामले में अधिकारियों ने दोनों के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत प्रकरण कलेक्टर के सामने पेश किया गया था। कलेक्टर के आदेश पर ही एफआईआर सहित अन्य कार्रवाई हुई है।
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