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Indian Railway: पटरी के किनारे इस बॉक्स को क्यों बनाया जाता है? जानिए इसका खास मकसद

Bansal Digital Desk by Bansal Digital Desk
September 6, 2024
in भारत
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Indian Railway: भारत में रेलवे को जीवन रेखा के रूप में माना जाता है। देश के लगभग 70 प्रतिशत लोग ट्रेन से यात्रा जरूर करते हैं। आपने भी कभी न कभी ट्रेन से यात्रा की होगी। हालांकि हम रेलवे के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। हम बस स्टेशन पहुंचते हैं, टिकट लेते और यात्रा करने के लिए ट्रेन में बैठकर गंतव्य स्थान के लिए निकल जाते हैं।

लेकिन कभी-कभी कुछ चीजें देखकर हमारे मन में यह सवाल उठता है कि जो चीज मैंने अभी देखी है उसका क्या इस्तेमाल है। जैसे आपको पटरी के किनारे-किनारे हर थोड़ी दूरी पर चौकोर ब्लॉक्स टाइप की जगह बनी दिखती होगी। अगर आपने इस पर गौर किया है तो आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि इसे क्यों बनाया गया है। चलिए आज हम आपको इसके पीछे का कारण बताते हैं।

रिफ्यूज इंडिकेटर महत्वपूर्ण क्यों है

मालूम हो कि भारतीय रेलवे (Indian Railways) अपनी भाषा में इसे रिफ्यूज इंडिकेटर (Refuse indicator) कहता है। ये चौकोर ब्लॉग्स रेलवे विभाग के लिए काफी महत्वरूर्ण है। हालांकि सवाल अब भी वही है कि आखिर इस बॉक्स का काम क्या है और ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

कर्मचारी समय-समय पर पटरियों की मरम्मत करते हैं

दरअसल, आपने देखा होगा कि रेलवे के कर्मचारी समय-समय पर ट्रेन की पटरियों की मरम्मत करते रहते हैं। मरम्मत का ये काम दिनभर या फिर कई दिनों तक चलता है ऐसे में रेलवे के कर्मचारी मरम्मत स्थल तक पहुंचने के लिए एक ट्रॉली का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में अब आप सोचिए कि जिस ट्रैक की मरम्मत की जा रही है और ट्रेन को उसी ट्रैक से होकर गुजरना है तो रेल कर्मचारी और उस ट्रॉली का क्या होगा?

ट्रॉली को सुरक्षित रखने के लिए

आप कहेंगे कि रेलवे कर्मचारी ट्रेन को देखकर वहां से हट जाएंगे। जी हां सही कहा, लेकिन ट्रॉली को सुरक्षित रखने के लिए रेलवे कर्मचारी इसी रिफ्यूज इंडिकेटर (Refuse Indicator) का इस्तेमाल करते हैं। ट्रॉली ही नहीं खुद कर्मचारी भी इसी स्थान पर खड़े होते हैं। साथ में उनका सामान भी होता है। यही कारण है कि चौकोर से दिखने वाले इस जगह को रेलवे विभाग के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

कर्मचारी इसे उठाकर इंडिकेटर पर रख देते हैं

जब कोई ट्रेन आती है तो कर्मचारी ट्रॉली को उठाकर रिफ्यूज इंडिकेटर पर लगा देते हैं, ताकि ट्रेन को पार करने में कोई दिक्कत न हो। ट्रेन के गुजरते ही कर्मचारी उसे फिर से उठाकर ट्रैक पर रख देते हैं और फिर उसकी मदद से नजदीकी यार्ड या स्टेशन पर पहुंच जाते हैं। बता दें कि रेलवे इस रिफ्यूज इंडिकेटर्स को एक निश्चित दूरी पर बनाता है।

ये भी पढ़ें- Indian Railway: ट्रेन के बीच में ही AC कोच क्यों लगाए जाते हैं? जानिए इसके पीछे के रोचक तथ्य

पुल पर भी इसे बनाया जाता है

रिफ्यूज इंडिकेटर्स को रेलवे के पुल पर भी बनाया जाता है। यहां इसे कॉनक्रीट से बनाया जाता है। इसकी उंचाई रेलवे की पटरी की उंचाई के बराबर होती है और पटरी से रिफ्यूज इंडिकेटर तक एक स्लोप होता है ताकि सामान और ट्रॉली को आसानी से वहां तक पहुंचाया जा सके।

रेलवे ट्राली को धकेलने की बजाए छोटे इंजन से क्यों नहीं चलाई जाती ?

पुश ट्रॉली बहुत हल्की फुल्की होती है। यदि उसी पटरी पर कोई ट्रेन आ रही होती है तो उसे उठाकर साइड में रख लिया जाता है। इस ट्रॉली की स्पीड काफी कम होती है। ऐसे में ट्राली पर बैठे अधिकारी ट्रैक का निरीक्षण अच्छी तरह से कर लेते हैं। इंजन रखने पर उसे उठाना संभव नहीं हो पाएगा। साथ ही स्पीड भी बढ़ जाएगी जिससे निरीक्षण उचित तरीके से नहीं हो पाएगा।

पुश ट्रॉली की जगह मोटर ट्रॉली Railway Motor Trolley

हालांकि अब पुश ट्रॉली के साथ-साथ मोटर ट्रॉली को भी रेलवे ने पटरियों पर उतारा है। ये ट्रॉली 30 KM प्रति घंटे की कफ्तार से चल सकती है। हालांकि पटरी की ठीक से जांच के लिए इसे 15-20 किमी प्रति घंटे की चाल से चलाया जाता है। बतादें कि ये ट्रॉली लगभग 350 किलोग्राम की होती है। इस कारण से इसे रेल सेक्शन में फुल ब्लॉक पर चलाया जाता है। फुल ब्लॉक का अर्थ है कि पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि दो स्टेशनों के बीच में कोई और ट्रेन न हो, तभी मोटर ट्रॉली को चलाया जाता है।

ये भी पढ़ें- Indian Railways: स्टेशन पर पीले रंग की खुरदरी टाइलें क्यों लगाई जाती हैं? जानिए इसके पीछे की वजह

अधिकारी करते हैं मोटर ट्रॉली का इस्तेमाल

पूर्वोत्तर रेलवे की बात करें तो वहां हर असिस्टेण्ट इंजीनियर या ऊपर के अधिकारी, जिनके पास रेल खण्ड के रखरखाव की जिम्मेदारी है। उनके पास मोटर ट्रॉली है। और उससे नीचे के सुपरवाइजर/जूनियर इंजीनियर के पास पुश-ट्रॉली। इस समय पूर्वोत्तर रेलवे में लगभग 30 मोटर ट्रॉली और 100-120 पुश ट्रॉली हैं।

पैडल ट्रॉली का भी किया जाता है इस्तेमाल

इन दोनों ट्रॉली के अलावा पैडल से चलने वाली ट्रॉली का भी रेलवे में इस्तेमाल किया जाता है। हुब्बल्ली रेल मंडल ने पैडल से चलने वाली इस ट्रॉली का निर्माण किया था। आपात स्थिति में इस ट्रॉली को पैडल से चलाकर दुर्घटना स्थल तक कर्माचारी जा सकते हैं। साथ ही वे पटरी निरिक्षण के दौरान भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। पैडल ट्रॉली स्प्रोकेट ट्रांसमिशन सिस्टम के साथ काम करती है। एक बार स्प्रोकेट को एक्सल और अन्य के माध्यम से शृंखला के माध्यम से तय किया जाता है, ट्रॉली एक साइकिल की तरह चलती है।

दोनों दिशाओं में इसे चलाया जा सकता है

इसमें सीट और हैंडल को उल्टा करके दोनों दिशाओं में चलाया जा सकता है। 1000 किलोग्राम तक के पुरुषों और सामग्री को लगभग 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से इस ट्रॉली चलाया जा सकता है। इस ट्रॉली को हल्के वजन की सामग्री का उपयोग कर तैयार किया गया है। इसके हल्के वजन के कारण, यह काफी पोर्टेबल है। इस ट्रॉली को भी ट्रेन आने पर कर्मचारी आसानी से उठाकर रिफ्यूज इंडिकेटर पर रख देते हैं। जब ट्रेन पास कर जाती है तब कर्मचारी उसे फिर से उठाकर ट्रैक पर रख देते हैं।

रेलपथ पर 1 हजार मीटर या उससे कम दूरी पर ट्रॉली को रखने के लिए रिफ्यूज इंडिकेटर को बनाया जाता है। हालांकि सभी जगहों पर इस तय मानक का इस्तेमाल नहीं किया जाता। जहां ट्रैक कटिंग में या उंचे बैंक पर ट्रैक हो तो ट्रॉली रिफ्यूज को 200 मीटर की दूरी पर बनया जाता है। वहीं अगर ट्रैक गोलाई में है तो रिफ्यूज इंडिकेटर को 100 मीटर की दूरी पर बनया जाता है।

 

 

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