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100 साल की हुई भारतीय हॉकी: 1980 तक जीते 8 गोल्ड, फिर 45 साल से क्यों नहीं ला पाए सोना ? इस पर ओलंपियंस ने क्या कहा

Indian Hockey 100 Years Celebration: 100 साल की हुई भारतीय हॉकी, 1980 तक जीते 8 गोल्ड, फिर 45 साल से क्यों नहीं ला पाए सोना ? इस पर ओलंपियंस ने क्या कहा indian hockey 100 years celebration Ashok Dhyanchand Aslam Sher Khan hindi News bps

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BP Shrivastava
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Indian Hockey 100 Years Celebration

हाइलाइट्स

  • भारतीय हॉकी ने पूरे किए 100 साल
  • मेजर ध्यानचंद के बेटे ने दी सीख
  • असलम शेरखान बोले- गोरों ने टोटल हाॅकी बदली
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Indian Hockey 100 Years Celebration: भारतीय हॉकी 7 नवंबर 2025 को पूरे 100 साल की हो गई। पूरे देश में इसका जश्न मनाया जा रहा है। शुरुआती 31 साल में हिन्दुस्तान ने ओलंपिक में लगातार 6 गोल्ड मेडल जीते हैं। इसके बाद 1964 और 1980 में स्वर्णिम जीत हासिल की। इन 8 गोल्ड मेडल का आज भी रिकॉर्ड है। 1980 से 2020 तक यानी 40 साल के सूखे के बाद ब्रॉन्ज मेडल से फिर ओलंपिक हॉकी में मेडल की शुरुआत हुई है। कुल मिलाकर 45 साल से भारत, ओलंपिक हॉकी गोल्ड के लिए तरसता रहा है। हालांकि, इस बीच 1975 में देश को हॉकी खिलाड़ियों ने बड़ा जश्न मनाने का मौका दिया... जब भारत ने वर्ल्ड कप जीता। इन उतार-चढ़ाव की क्या वजह रही ? साथ ही क्रिकेट की तुलना में हॉकी क्यों पिछड़ गई ? हॉकी को कब राष्ट्रीय खेल का दर्जा मिलेगा ? इन कुछ सवालों के जवाब जाने के लिए हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बेटे और ओलंपियन अशोक कुमार, वर्ल्ड कप विजेता टीम के खिलाड़ी असलम शेर खान और अर्जुन अवॉर्डी सैयद जलालउदीन रिजवी से खास बातचीत की।

ओलंपिक गोल्ड जीतने में अब भी सबसे ऊपर 

[caption id="attachment_927138" align="alignnone" width="789"]publive-image अशोक ध्यानचंद।[/caption]

अशोक ध्यानचंद ने कहा कि हमारे स्वर्णिम काल को दुनिया का कोई देश अब तक नहीं छू सका है। ओलंपिक में सबसे ज्यादा 8 गोल्ड जीतकर अब भी हिंदुस्तान सबसे ऊपर है। 1964 के बाद गोरों ने हमारी हॉकी को डैमेज किया। एस्ट्रोटर्फ पर हॉकी होने लगी, कलात्मक हॉकी का दौर जाता रहा। इसका खामियाजा 40 साल तक सूखे के रूप में देखने को मिला। पिछले दो ओलंपिक से इंडियन हॉकी ने फिर से ट्रैक पर लौटी है। भारतीय पुरुष टीम ब्रॉन्ज मेडल लेकर लौट रही है।

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भारत ने ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल्ड जीते

संख्याओलंपिक वर्षकप्तान का नाम
1एम्स्टर्डम 1928जयपाल सिंह मुंडा
2लॉस एंजिल्स 1932लाल शाह बुखारी
3बर्लिन 1936ध्यानचंद
4लंदन 1948किशन लाल
5हेलसिंकी 1952के. डी. सिंह
6मेलबर्न 1956बलबीर सिंह सीनियर
7टोक्यो 1964चरणजीत सिंह
8मॉस्को 1980वासुदेवन भास्करन

स्कूलों में हॉकी खत्म हो गई

अशोक कुमार ने कहा, जहां तक हॉकी के विकास की बात है तो ग्रास रुट... जैसे स्कूल-कॉलेजों में हॉकी न के बराबर रह गई। शहरों में मैदान खत्म हो गए हैं। बच्चे कहां हॉकी खेलने जाएं ? स्कूलों में विलुप्त सी हो गई है हॉकी। स्कूलों में हॉकी होनी चाहिए।  ऐतिहासिक औबेदुल्ला गोल्ड कप... जैसा हॉकी टूर्नामेंट बंद हो गया। असलम शेर खान इस बार टूर्नामेंट करवाने वाले थे, उन्हें अनुमति नहीं मिली।

[caption id="attachment_927143" align="alignnone" width="973"]publive-image 1975 हाॅकी विश्व कप विजेता भारतीय टीम। इंडिया ने अब तक सिर्फ एक बार वर्ल्ड कप जीता है।[/caption]

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क्रिकेट में एक खिलाड़ी मैच जिता देता है, हाॅकी में ऐसा नहीं

विश्व कप चैंपियन टीम के फारवर्ड रहे तेज तर्रार फारवर्ड रहे अशोक ध्यानचंद ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं अब हम ओलंपिक में गोल्ड के प्रयास के लिए बढ़ रहे हैं।
हॉकी और क्रिकेट की तुलना के सवाल पर उन्होंने कहा, क्रिकेट में एक खिलाड़ी मैच जीता देता है, जबकि हॉकी में ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा, हॉकी में जितने ओलंपिक गोल्ड हैं, उतने  क्रिकेट में हैं ?

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'मेजर ध्यानचंद ने हॉकी पूरी निष्ठा से खेली'

अशाेक कुमार ने कहा, जहां तक विकास की बात करें तो उम्मीद करते हैं कि हॉकी में आगे अच्छा काम होगा। उन्होंने कहा, स्कूलों में हॉकी होनी चाहिए। अशोक कुमार ने कहा कि मेरे पिता मेजर ध्यानचंद ने निष्ठा, समर्पण और निस्वार्थ भाव से हॉकी खेली और खेल को बड़े मुकाम तक पहुंचाया...यह सभी को पता है।

[caption id="attachment_927145" align="alignnone" width="1046"]publive-image टोक्यो ओलंपिक 2020 की ब्राॅन्ज मेडिलिस्ट भारतीय पुरुष हाॅकी टीम। टीम ने यह मेडल 40 साल के अंतराल के बाद जीता।[/caption]

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शुरुआती 50 साल में हॉकी ने बहुत ऊंचाइयां छुईं

[caption id="attachment_927141" align="alignnone" width="831"]publive-image असलम शेर खान।[/caption]

असलम शेर खान ने कहा, हॉकी वो ऊंचाइयां तो छू ही नहीं सकती, जब 1925 से 1960-64 तक लगातार हिंदुस्तान ने 6 गोल्ड मेडल जीते।। शुरुआती के करीब 50 साल तक तो बहुत ऊंचाइयां छुई हैं। 1928 से गोल्ड मेडल जीतने का सिलसिला 1964 तक चला। फिर गेप आ गया। फिर लगातार दो-तीन ब्रॉन्ज मेडल आए। उसके बाद टोटल हॉकी बदलने के कारण 40 साल का सूखा रहा। हॉकी आर्टीफिशियल सरफेस पर आ गई। स्टिक और बॉल बदल गई। रूल्स बदल गए। फिटनेस और पावर पर हॉकी चली गई। भारतीय हॉकी  की पहचान आर्टीस्टिक हॉकी रही है। पाकिस्तान के अलग होने के बाद गोरों (अंग्रेजों) को यह लगा कि इंडिया नहीं तो पाकिस्तान मेडल जीत ले जाएगा। इससे गोरों ने टोटल गेम को ही चेंज कर दिया। मौजूदा भारतीय हॉकी से असलम शेर खान संतुष्ट हैं।
उन्होंने कहा, अब हॉकी के बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देने की जरूरत है।

हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा देने का काम सरकार का 

[caption id="" align="alignnone" width="993"]publive-image ओलंपियन और अर्जुन अवॉर्डी सैयद जलालउद्दीन रिजवी[/caption]

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ओलंपियन और अर्जुन अवॉर्डी सैयद जलालउद्दीन रिजवी का कहना है कि हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा देने में सरकार को क्या परेशानी से हो सकती है, समझ से परे है। हम तो सिर्फ अफसोस ही कर सकते हैं। हॉकी ओलंपिक में 8 गोल्ड समेत 12 मेडल जीतना आसाान नहीं होता। हॉकी को छोड़ किसी अन्य खेल में हम आज तक इतना ऊपर नहीं गए। तो यह सरकार और खेल मंत्रालय की जिम्मेदारी है कि वे हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दस्तावेजीकरण करें। हमारे खिलाड़ियों का दुनिया में नाम है।

हॉकी में आज भी भारत सिरमौर 

रिजवी ने कहा, हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा दिलाने के लिए, किसी के प्रयास करने की बात नहीं है, यह तो अपने आप ही होना चाहिए। जब आपने हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम नेशनल स्पोर्ट्स डे ( 29 अगस्त) तय कर दिया है तो हॉकी को राष्ट्रीय खेल भी तय करना चाहिए।
रिजवी ने कहा कि हॉकी में दुनिया के किसी देश के पास इतने तमगे नहीं हैं, जितने भारत ने जीते हैं। पदक जीतने का भारत का रिकॉर्ड अभी तक किसी ने नहीं तोड़ा है। हमें अपनी हॉकी पर आज भी नाज है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में हॉकी अच्छी हो रही है। प्रीमियर लीग, नेशनल टूर्नामेंट... सब अच्छे से हो रहे हैं। भारत ओलंपिक में लगातार दो बॉन्ज मेडल जीत चुका है। इसका मतलब है हॉकी में विकास हो रहा है। बीच में करीब चार दशक तक हॉकी में बदलाव के कारण हम पिछड़ गए थे। सब चीजों को रिवाइज कर हम उस तरफ दौड़ पड़े हैं। ओलंपिक में तीसरे स्थान पर हैं यानी दुनिया में हमारा तीसरा स्थान है।

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पैरेंट्स भी अब बच्चों को क्रिकेट खिलाना चाहते हैं

रिजवी ने कहा कि हॉकी में निचले स्तर पर काम करने की दरकार है। इसके लिए खेल संघ, स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री की जिम्मेदारी है। जानकारों से बातचीत कर, उसे ठीक करें। हमें लगता है ठीक होगा और ठीक हो भी रहा है।

उन्होंने कहा, जहां तक क्रिकेट की बात करें तो पैरेंट्स भी बच्चों को क्रिकेट खिलाना चाह रहे हैं। हॉकी में बहुत मेहनत लगती है, बच्चे कमजोर हो रहे हैं, इसलिए भी हॉकी से दूर भाग रहे हैं।

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