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India-Pak Partition : अपने घर से बिछड़ कर मिली तो कुछ लोगों को आज़ादी

India-Pak Partition : अपने घर से बिछड़ कर मिली तो कुछ लोगों को आज़ादी India-Pak Partition: If you get separated from your home, then some people get freedom sm

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Bansal News
India-Pak Partition : अपने घर से बिछड़ कर मिली तो कुछ लोगों को आज़ादी

नई दिल्ली। ‘‘पाकिस्तान में अपने घर जाना तो चाहते हैं, लेकिन अब कौन लेकर जाएगा…’’ यह कहते हुए दिल्ली के करोल बाग में रहनेवाली 90-वर्षीय स्वर्णकांता जोशी की आंखें नम हो गईं।आज़ादी के 75 वर्ष बाद पाकिस्तान में अपने पुश्तैनी घर को याद करते हुए उन्होंने कहा, 'सबकुछ तो वहीं रह गया और जो हाथ लगा वह लेकर हम यहां आ गए।'भारत इस साल आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है…तो वहीं, अपने पैतृक आवासों को छोड़कर आए लोगों में आज भी अपने मूल घरों को देखने की एक आस बची है।देश के बंटवारे के समय जोशी का परिवार पाकिस्तान के मुल्तान, डेरा इस्माइल खान (खैबर पख्तूनख्वा) इलाके में रहता था। जोशी उस समय करीब 16 वर्ष की थीं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, 'हमारे घर में अमरूद और आम के पेड़ थे। हम बच्चे अपने साथियों के साथ फलों का लुत्फ उठाते थे।’’ जोशी की तरह कुंदनलाल शर्मा भी उसी इलाके में रहते थे।

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अब दिल्ली के करोल बाग में रह रहे 85-वर्षीय शर्मा ने कहा, ‘‘ हम उस तरफ कभी भी नहीं जाना चाहते जिसने हमारा सब कुछ छीन लिया और हमें बांट दिया।’’उस समय करीब दस वर्ष के रहे शर्मा ने कहा, ‘‘14-15 अगस्त कीदरमियानी रात को मैंने किसी तरह दौड़ते हुए ट्रेन पकड़ी। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि कुछ लोग सभी का नाम पूछ रहे थे। विशेष वर्ग का होने के कारण उनका सिर तलवार के जरिए धड़ से अलग किया जा रहा था। कितनी ही औरतें अपनी आबरू बचाने के लिए ट्रेन से कूद गईं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं जान बचाने के लिए ट्रेन की सीट के नीचे छिप गया और अपने ऊपर कुछ लाशों को रखकर सांस रोके रखी। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तानी सुरक्षाबल या आम लोग (उपद्रवी) यह देखने के लिए अपनी बंदूकों पर लगे चाकू से उन लाशों को गोद रहे थे कि कहीं कोई जिन्दा तो नहीं।’’

बंटवारे के बाद विस्थापित हुए लाखों लोगों की ऐसी ही कहानियां हैं।स्वर्णकांता जोशी ने कहा, ‘‘ डेरा इस्माइल खान पठानों का इलाका था। सिंध दरिया के उस पार मुल्तान, सूजाबाद था। हमें अगस्त में कहा गया कि अगर तुम यहां से नहीं निकलोगे तो दरिया पार नहीं करने देंगे। इसलिए हमने कुछ दिन पहले ही घरछोड़ दिया था।’’वहीं, अपने जन्मस्थान को छोड़कर भारत आने की अपनी यात्रा के बारे में जोशी की बचपन की सहेली रानी पराशर ने कहा, ‘‘सूजाबाद में हमें कहा गया कि बिना सिले कपड़े नहीं ले जा सकते। मेरे चाचा ने सभी के लिए जल्द सारे कपड़े सिल दिए। हमें हिदायत दी गई कि गहने और सोना लेकर नहीं जा सकते। लोगों ने पकौड़ों जैसी भोजन वस्तुओं और कपड़ों में गहने व सोना छिपाया तथा साथ ले आए।’’

उन्होंने कहा, 'मुझे आज भी उन दिनों को याद कर रोना आता है और हंसी भी कि हम ऐसे भागे जैसे ‘काला चोर’...।’’पराशर ने कहा, ‘‘मेरे पिताजी जनसंघ में थे। उनकी सेना के जवानों से दोस्ती थी। सूजाबाद से आठ बैलगाड़ियां भारत आई थीं। हमें उन्होंने रोहतक में उतारा और रोहतक से हम पैदल आगरा तक आए तथा कुछ दिन वहीं रहे।’’उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘उस समय बहुत मारकाट, लूटपाट हुई। हर रोज़ किसी न किसी घर से आग की लपटें दूर तक दिखती थीं। मेरे पिताजी के पास बंदूक और तलवार थी, जिसे उन्होंने मम्मी को चलाना सिखाया हुआ था। उन्हें हिदायत थी कि जब हम घर न हों, तो जो भी आए उसे यह दिखा देना।’’शर्मा ने कहा, ‘‘मेरे पिता जी पश्तो/पठानी बोली बोलते थे।

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उन्होंने सिखाया था कि वे आएंगे तो कहेंगे कि- तरे माछे (नमस्कार), तो तुम कहना कि ख्वार माछे (आपको भीनमस्कार)। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, पूरी बोली तो नहीं आती थी लेकिन उनको जवाब देने के लिए कुछ चीजें हमें सिखाई गई थीं।’’कुंदनलाल के बेटे मनोज ने कहा, ‘‘इन अनोखी कहानियों को सुनकर हमारा भी मन करता है कि उन दिनों को दोबारा जीया जाना ज़रूरी है, लेकिन नफरत के इस दौर में अब वो पुरानी बात नहीं रही।’’शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे पाकिस्तान में मक्खन मलाइयों के दिन याद आते हैं। बचपन तो बचपन था। मैंने चार क्लास पढ़ाई की थी।

पांचवीं में गए कुछ ही महीने बीते थे कि देश का बंटवारा हो गया।’’अपना बचपन याद करते हुए जोशी और पराशर भावुक हो गईं।उन्होंने कहा, ‘‘अभी भी दिल करता है कि कोई एक बार हमें पाकिस्तान लेजाए। काश हम वहां (पाकिस्तान) जाकर अपना घर देख पाते। अपनी उन गलियों को देखते जिनमें हम पैदा हुए थे। हम अपने मकान को देखते। वहां हमारा गाय-भैंसों का काम था। पर अब सबकुछ यहीं है…कौन लेकर जाएगा।’’

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