Independence Day 2025: आज 15 अगस्त है…आजादी का पर्व, गर्व का दिन और भारत का 79वां स्वतंत्रता दिवस। आज हम सभी तिरंगे को सलाम करते हैं, लेकिन एक शख्सियत ऐसे भी हैं जो सालों से इस तिरंगे को अपने हाथों से गढ़ते आ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं ‘फ्लैग अंकल’ की। ये वो इंसान हैं जिन्होंने धर्म, जात-पात सबको किनारे रखकर सिर्फ देश को अपना धर्म माना।
आज, जब पूरा देश तिरंगे में लिपटा है, फ्लैग अंकल के हाथ फिर व्यस्त हैं। नए झंडे सीने में, ताकि हर घर, हर गली, हर छत पर भारत की आन-बान-शान लहरा सके।
71 साल के अब्दुल गफ्फार, हर साल 1.5 लाख झंडे करते हैं तैयार, पीएम मोदी ने दिया तिरंगा अंकल नाम#TirangaUncle #AbdulGaffar #FlagMakerOfIndia #Deshbhakti #IndependenceDay2025 pic.twitter.com/sd1Amr7BDt
— Bansal News Digital (@BansalNews_) August 14, 2025
कहां से करते हैं काम
अब्दुल गफ्फार की दिल्ली के भीड़भाड़ वाले सदर बाजार में एक छोटी-सी दुकान है। लेकिन उनका नाम और काम पूरे देश में जाना जाता है। 71 वर्षीय अब्दुल गफ्फार को लोग प्यार से भारत के ‘फ्लैग अंकल’ कहते हैं। गफ्फार पिछले लगभग 60 साल से भारतीय तिरंगा बना रहे हैं और हर साल 1.5 लाख से ज्यादा झंडे तैयार करते हैं।
गफ्फार का कहना है, ‘मैं यह काम अपने देश के लिए करता हूं। तिरंगा हमारे गर्व और एकता का प्रतीक है।’ उनकी दुकान पर छोटे-बड़े हर आकार के झंडे बनते हैं। 24×36, 20×30, 12×18 से लेकर 40×60 फुट तक के ‘फ्लैग तैयार किए जाते हैं।
कहां से शुरू हुआ तिरंगा सफर
अब्दुल गफ्फार महज 15 साल के थे, जब उन्होंने अपने पिता और दादा से झंडा बनाना सीखा। उनके परिवार की दो पीढ़ियां पहले से ही इस काम में थीं। वह बताते हैं कि पहले झंडा बनाने का काम हाथ से होता था और कपड़ा भी आसानी से नहीं मिलता था, लेकिन आज मशीनें हैं और कपड़े की कमी नहीं, फिर भी असली मेहनत और धैर्य की ज़रूरत वही है।
गफ्फार ने आपातकाल (Emergency) से लेकर आज तक भारत के राजनीतिक और सामाजिक माहौल में आए कई बदलाव देखे हैं। लेकिन उनके लिए तिरंगा सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि देश की आत्मा है।
मुनाफा नहीं, देशभक्ति पहले
दिलचस्प बात तो यह है कि गफ्फार का कारोबार लगभग ‘न मुनाफ़ा, न घाटा’ के सिद्धांत पर चलता है। वह भारत का राष्ट्रीय ध्वज बेचकर कोई लाभ नहीं कमाते। उनका कहना है, जब बात भारत के झंडे की आती है, मैं कोई शुल्क नहीं लेता। मैं इसे सिर्फ अपने देश के सम्मान के लिए बनाता हूं।
हालांकि, आजीविका के लिए वे अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के झंडे भी बनाते हैं। बड़े झंडे (40 से 60 फुट) की कीमत लगभग 60,000 रुपए होती है, जिसमें से 55,000 रुपये लागत में चले जाते हैं। वह न्यूनतम लाभ पर ही काम करते हैं।
हर साल मुफ्त में तिरंगा वितरण
हर 15 अगस्त को गफ्फार और उनकी टीम लोगों को मुफ्त में तिरंगा बांटते हैं। यह परंपरा उन्होंने कई साल पहले शुरू की थी और तब से यह बिना रुके जारी है। उनका मानना है कि यह उनका देश के प्रति योगदान है। बकरीद जैसे त्योहार पर भी वह तिरंगे बनाने का काम रोकते नहीं हैं, ताकि स्वतंत्रता दिवस से पहले ज़्यादा से ज़्यादा लोग झंडा खरीद या प्राप्त कर सकें।
‘हर घर तिरंगा’ अभियान से बढ़ी मांग
पिछले कुछ सालों में सरकार के ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के बाद झंडों की मांग कई गुना बढ़ गई है। गफ्फार और उनकी टीम दिन-रात मेहनत करके हर ऑर्डर पूरा करने की कोशिश करते हैं। सिर्फ सदर बाज़ार में ही उन्हें लाखों झंडों के ऑर्डर मिल जाते हैं, जिन्हें वे स्थानीय और बाहर के बाज़ारों में सप्लाई करते हैं।
लोगों को जोड़ने का ज़रिया
गफ्फार कहते हैं, ‘लोग हिंदू-मुस्लिम के नाम पर लड़ते हैं, लेकिन मैं मानता हूं कि हम पहले इंसान और भारतीय हैं, उसके बाद कोई धर्म आता है। तिरंगा हमें एक धागे में बांधता है।’ उनका मानना है कि झंडा बनाना सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि लोगों को एकता, गर्व और देशभक्ति के धागे में पिरोने का माध्यम है। बड़े झंडे बनाने में कई दिन लगते हैं और इसमें बारीकी और धैर्य की आवश्यकता होती है।
तिरंगा का सम्मान
अब्दुल गफ्फार का जीवन इस बात का उदाहरण है कि देशभक्ति का मतलब सिर्फ बड़े-बड़े शब्दों में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के छोटे-छोटे कामों में भी छिपा है। उन्होंने अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा तिरंगा बनाने और बांटने में लगाया है। उनकी दुकान सिर्फ एक कारोबारी जगह नहीं, बल्कि एक देशभक्ति का केंद्र है, जहां हर धागा तिरंगे के सम्मान को बुनता है। जैसे-जैसे 15 अगस्त पास आता है, सदर बाज़ार में गफ्फार की दुकान पर रौनक और भी बढ़ जाती है। यहां से निकलने वाला हर तिरंगा देश की एकता, प्रेम और गर्व का संदेश लेकर जाता है।
PM मोदी से मिला खिताब
अब्दुल गफ्फार अंसारी पिछले 50 सालों से तिरंगा बनाने का काम कर रहे हैं। देशभक्ति की इस अनोखी सेवा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘भारत के झंडा अंकल’ का सम्मान दिया। ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के दौरान उन्होंने एक ही दिन में 1.5 लाख तिरंगे तैयार करके इतिहास रच दिया, मानो वे सचमुच एक-एक सिलाई से राष्ट्र को जोड़ रहे हों।
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