Independence Day: 15 अगस्त 1947 को पूरे देश में जश्न का माहौल था। देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिल चुकी थी। हर तरफ तिरंगा झंडा लहरा रहा था, लेकिन उस दिन भी भोपाल आजाद नहीं हुआ था। भोपाल भारत का हिस्सा नहीं बना था। भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भोपाल के भारत में विलय के लिए सहमति नहीं दी थी।
हालांकि आजादी के दिन का महत्व कायम रखने के लिए नवाब हमीदुल्ला खां ने जुमेराती गेट पर GPO ऑफिस में आजादी का जश्न मनाने की इजाजत दी थी। ये भोपाल की इकलौती ऐसी बिल्डिंग थी जहां सिर्फ 15 मिनट के लिए तिरंगा फहराया गया था। भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने मोहम्मद अली जिन्ना को पत्र लिखा था।
नवाब हमीदुल्ला खान ने मोहम्मद अली जिन्ना को लिखा था पत्र
भोपाल रियासत के भविष्य पर सलाह चाहते थे नवाब
पत्र में भोपाल के नवाब ने लिखा कि मैं इस बार दिल्ली केवल आपसे चर्चा करने तथा अपने पुराने एवं सम्मानित मित्र के रूप में अपने भविष्य तथा भोपाल रियासत के भविष्य के बारे में आपकी सलाह लेने के उद्देश्य से आया हूँ। आप आज भारत के सबसे व्यस्त व्यक्ति हैं, इसलिए आपको निजी मामलों या अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण मामलों में परेशान करना शर्म की बात है। इसलिए, मैं बहुत संक्षिप्त रहूँगा और केवल उन समस्याओं के पर ही बात करूँगा जिन पर अगले कुछ दिनों में मुझे महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि आपको यह पत्र लिखने का मेरा उद्देश्य कोई व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करना या पाकिस्तान के प्रमुख के रूप में, मेरी रियासत या मेरे व्यक्तिगत मामलों के संबंध में आपको किसी भी उलझनपूर्ण स्थिति में डालने के लिए कहना नहीं है। मेरा उद्देश्य केवल मार्गदर्शन प्राप्त करना है।
भोपाल के नवाब ने खुद को बताया पाकिस्तान का कट्टर समर्थक
भोपाल के नवाब ने लिखा था कि पिछले आठ-दस वर्षों से मैं विनम्रतापूर्वक पाकिस्तान का कट्टर समर्थक और भारत में मुस्लिम हितों और मुस्लिम लीग का एक वफ़ादार और समर्पित मित्र रहा हूँ। हाल के वर्षों में मैंने पाकिस्तान की स्थापना सुनिश्चित करने में अपना विनम योगदान देने का बीड़ा उठाया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि भारतीय रियासतों की ओर से ऐसा कुछ भी न किया जाए जिससे भारत में एक अलग मुस्लिम राज्य के निर्माण में गंभीर बाधा उत्पन्न हो। बिना अपनी तारीफ़ किए निवेदन है कि मैं इस प्रयास में 29 मार्च को सफल हुआ जब दिन-रात पसीने की कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप अधिकांश हिंदू रियासतों 93 में से केवल 12 ही प्रतिनिधि पिछले अप्रैल में संविधान सभा में शामिल हुए। जहां तक भारतीय भारत का संबंध था, कार्य पूरा हो गया था, लेकिन विद्रोह शुरू हो गया। 3 जून को पाकिस्तान का निर्माण हुआ और जहां तक रियासतों का संबंध था, मुझे इसमें कोई और रुचि नहीं थी। मैं अप्रैल में ही चांसलर पद से इस्तीफा दे देता, और पद भी छोड़ देता, लेकिन कुछ सम्मानित मित्रों ने मुझे जल्दबाजी न करने की सलाह दी। 4 जून को पाकिस्तान की स्थापना होते ही मैंने आपकी सहमति से चांसलर पद से इस्तीफा दे दिया।
‘भोपाल रियासत हिंदू भारत के बीच अकेली पड़ गई’
भोपाल के नवाब ने लिखा आगे लिखा कि तब से मैंने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में भोपाल सहित मुस्लिम राज्यों की स्वतंत्रता को बनाए रखने और सुरक्षित रखने की कोशिश की है। उस काम में मुझे हिंदू रियासतों से कोई समर्थन नहीं मिला। मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी। सांप्रदायिकता हिंदू राजाओं के दिमाग में प्रतिशोध के साथ प्रवेश कर गई थी। उन्होंने मुझ पर शक किया और मुझ पर कोई भरोसा नहीं दिखाया। एक हिंदू राजा कहीं अधिक उपयोगी होता, लेकिन उनमें से कोई भी ऐसा नहीं था जो पाकिस्तान के हितों की देखभाल कर सके और हमारा एकमात्र मित्र (सर सी.पी.) भी अब अलग हो गया है। भोपाल रियासत हिंदू भारत के बीच 80% हिंदू बहुमत के साथ अकेली पड़ गई हैं, मेरे निजी दुश्मनों के साथ-साथ इस्लाम के दुश्मनों से भोपाल घिरा हुआ है। पाकिस्तान के पास हमारी मदद करने का कोई साधन नहीं है। आपने कल रात मुझे यह स्पष्ट कर ठीक ही किया।
भोपाल के भारत में विलय के पक्ष में नहीं थे नवाब हमीदुल्ला खान
पत्र में लिखा कि मैं स्वयं राज्यों द्वारा पाकिस्तान को उनकी ओर से संघर्ष में खींचने के किसी भी प्रयास का पक्ष नहीं लूंगा। आपसे नैतिक समर्थन से अधिक कुछ भी उम्मीद करना गलत होगा। हमारी स्थिति ऐसी है कि हमें मजबूर किया जाएगा और धमकाया जाएगा। हमें सभी आवश्यक आपूर्तियों, कोयला, लोहा, मिट्टी का तेल, पेट्रोल, मशीनरी, हवाई सेवाएँ, हथियार और गोला-बारूद आदि से वंचित कर दिया जाएगा। अगर हम बाहर रहे तो वे हमें कोई स्थायी व्यवस्था नहीं देने की धमकी दे रहे हैं। स्थिति ऐसी ही हैं।
यह डर या डर का सवाल नहीं हैं। मैं खड़े होने के लिए तैयार हूँ, लेकिन यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि हमारा अंतिम उद्देश्य क्या होगा, और पाकिस्तान हमारी कितनी मदद कर पाएगा और हमारा साथ दे पाएगा ? पाकिस्तान के साथ हमारी संधियों, विलय या अन्य समझौतों की शर्तें क्या होंगी और उनका क्रियान्वयन कैसे होगा ?
मैं किसी भी हालत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके हिंदुस्तान में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हूँ । अगर ऐसा करना ही है तो यह मेरे उत्तराधिकारियों द्वारा ही किया जाएगा।
पाकिस्तान की सेवा करना चाहते थे नवाब
भोपाल के नवाब ने पत्र में लिखा कि मेरी निजी इच्छा है कि मैं अपनी राजगद्दी छोड़ इस्लाम की सेवा करूँ। मैं एक गरीब आदमी हूँ, क्योंकि मैंने अपने लोगों की कीमत पर इतनी दौलत नहीं जमा की हैं, बल्कि इसलिए कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक मैं इस्लाम और पाकिस्तान की सेवा कर सकूँ और अगर मुझे इजाज़त और विशेषाधिकार मिले तो आपकी मदद और समर्थन कर सकूँ। मैं किसी भी हैसियत से पाकिस्तान की सेवा करने को तैयार हूँ। इसलिए, मैं जानना चाहूँगा कि कैसे मुझे आपके द्वारा नियोजित किया जाना चाहिए और किस हैसियत से ? अगर आपको मेरी कोई ज़रूरत नहीं है, या पाकिस्तान में मेरी मौजूदगी और आपके साथ मेरा जुड़ाव आपके लिए ज़रा भी उलझनपूर्ण स्थिति पैदा करता है, तो मैं यह भी अभी जानना चाहूँगा।
मुझे पता है कि आपने मुझसे इस बारे में कई बार बात की है। आपने यह भी कहा है कि आप पाकिस्तान में मेरा स्वागत करेंगे, लेकिन हमने हमेशा सामान्य बातें की हैं। अब जबकि अगले कुछ दिनों में मेरे भाग्य का फैसला होना है, मैं इस मामले में आपसे कुछ विशिष्ट संकेत प्राप्त करना चाहूँगा। मैं यह इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि पाकिस्तान के लिए कुछ भी मूल्यवान होने के लिए मुझे आपका समर्थन, सद्भावना और विश्वास प्राप्त होना चाहिए। आपके प्रति मेरी निष्ठा और आपके प्रति मेरे सम्मान, आदर, स्नेह और प्रशंसा की कोई सीमा नहीं हैं। मैं आपको कभी धोखा नहीं दूँगा या आपको निराश नहीं करूँगा | अगर मैं आपके काम आ सकूँ, तो मैं इसे सम्मान और सौभाग्य समझँगा | मुझे नहीं लगता कि मुझे इस मामले में और कुछ कहने की ज़रूरत हैं। अगर पाकिस्तान में मेरी ज़रूरत नहीं है, तो मुझे भारत छोड़कर कहीं और रहने की तैयारी कर लेनी चाहिए।
आपका अत्यंत शुभेच्छु,
हमीदुल्ला
भारत का हिस्सा कब बना भोपाल
भोपाल रियासत का भारत संघ में विलय 1 जून 1949 को हुआ था। उस समय भोपाल एक स्वतंत्र रियासत थी, जिस पर नवाब हमीदुल्ला खान का शासन था। नवाब पहले भारत में शामिल होने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन जनता के आंदोलन और राजनीतिक दबाव के बाद उन्होंने विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए और भोपाल भारत का हिस्सा बन गया।