अलेक्जेंडर ईस्टन / मनोविज्ञान के प्रोफेसर / डरहम विश्वविद्यालय डरहम। यादें हमारे जहन का वह खास हिस्सा हैं, जो हमें बताती हैं कि हम कौन हैं। यह तो हम सभी जानते हैं कि जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, चीजों को याद रखना मुश्किल होता जाता है। आप अकसर यह भूल जाते हैं कि आप एक कमरे में क्यों आए, किसी विशेष पारिवारिक कार्यक्रम के विवरण को याद न रख पाने से लेकर कुछ परिचित नामों को भूल जाने तक।चीजों को भूलना बुढ़ापे को परिभाषित करने का एक तरीका भी हो सकता है। बहुत से लोग याद रहने वाली चीजों को जब भूलने लगते हैं तो अकसर कहते हैं, ‘‘हे भगवान, बुढ़ापा आ गया है’’।जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं यह विस्मृति प्रदर्शित करना आसान होता है लेकिन समझाना कठिन होता है।
हमारी यादें तो अच्छी रहती हैं
एक स्पष्ट व्याख्या यह हो सकती है कि चीजों को याद रखना मुश्किल हो जाता है क्योंकि मस्तिष्क में कुछ परिवर्तन हो रहा है जिससे सूचनाओं को संग्रहीत करना अधिक कठिन हो जाता है।लेकिन हाल ही में जर्नल ट्रेंड्स इन कॉग्निटिव साइंसेज में प्रकाशित एक पेपर ने इस घटना के लिए एक वैकल्पिक स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया है: कि हमारी यादें तो अच्छी रहती हैं, लेकिन उम्र बढ़ने पर वह अव्यवस्थित हो जाती हैं।सबसे पहले, यह समझना महत्वपूर्ण है कि स्मृति गुजरते जीवन की हर बात की सटीक रिकॉर्डिंग नहीं है।सोचिए अगर आपको हर दिन के हर घंटे के हर मिनट का हर एक विवरण याद हो।
अपने जहन में संजो लेते हैं
यह भारी होगा, और आपके द्वारा याद की गई अधिकांश जानकारी काफी हद तक व्यर्थ होगी।यदि आप याद कर रहे हैं कि आपने आज सुबह नाश्ते में क्या खाया था, तो उससे कहीं अधिक प्रासंगिक यह याद रखना है कि आपने खिड़की से बाहर झांकते हुए किस आकार का बादल देखा। या फिर खाने के दौरान आपने कितनी बार पलकें झपकाईं? इसके बजाय, हम अपने पर्यावरण के विभिन्न हिस्सों को अपने जहन में संजो लेते हैं। कहने का मतलब यह है कि हम अपने अनुभव के जिस हिस्से पर अधिक ध्यान देते हैं वह हमारी स्मृति को आकार देता है।इस नए अध्ययन के लेखकों ने इस विषय पर कई सबूतों की समीक्षा की।
एक स्वाभाविक परिणाम लगता है
वे सुझाव देते हैं कि यादों को संग्रहीत करने में कठिनाई के बजाय, जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, कम प्रासंगिक चीजों पर भी ध्यान देने लगते हैं, जिसका अर्थ है कि हम अपनी स्मृति में बहुत अधिक जानकारी डालने लगते हैं। यह ऐसा कुछ नहीं है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है – यह सिर्फ उम्र बढ़ने का एक स्वाभाविक परिणाम लगता है।बहुत अधिक जानकारी पर ध्यान केंद्रित करने से हमें इसे याद रखने में परेशानी क्यों होती है? इसे कुछ ऐसा सोचें कि जैसे आप हर दिन किसी काम को एक ही तरह से करते हैं, मसलन अपने दाँत ब्रश करना।
वह आपस में गड्डमड्ड नहीं हो पाती हैं
आपको शायद याद होगा कि आपने आज सुबह ब्रश किया था या नहीं, लेकिन क्या आप वास्तव में यह याद कर सकते हैं कि आज सुबह आपके अपने दांतों को ब्रश करने के समय और कल उन्हें ब्रश करने के समय के बीच कितना अंतर था? या उससे एक दिन पहले? अपने दाँत ब्रश करने जैसी स्थितियों को व्यक्तिगत घटनाओं के रूप में याद रखना कठिन होता है क्योंकि उनमें बहुत कुछ समान होता है। इसलिए उनसे भ्रमित होना आसान है। घटनाएँ जो एक दूसरे से भिन्न होती हैं वे अधिक यादगार होती हैं। उनसे मिलती जुलती घटनाएं जितनी कम होती हैं, उन्हें याद रखने की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होती है क्योंकि वह आपस में गड्डमड्ड नहीं हो पाती हैं।
भ्रमित होने की संभावना बहुत कम है
उदाहरण के लिए, यह याद रखना आसान है कि जब आप कुत्ते को टहलाने के लिए ले गए तो क्या हुआ और जब आप अलग से तैरने गए तो क्या हुआ। उनके भ्रमित होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि वे एक दूसरे से एकदम अलग हैं।इसलिए, यदि वृद्ध लोग अपनी यादों में अपने अनुभवों को संजोने पर कम ध्यान केंद्रित करेंगे, तो उनकी यादें उन सूचनाओं के साथ ‘‘अव्यवस्थित’’ हो जाएंगी जो मायने नहीं रखती हैं। इस अव्यवस्था का मतलब है कि एक मेमोरी से दूसरी मेमोरी की जानकारी के साथ ओवरलैप होने की अधिक संभावना होगी। बदले में इसका मतलब है कि यादों के एक-दूसरे के साथ भ्रमित होने की अधिक संभावना होगी, जिससे यह याद रखना कठिन हो जाएगा कि क्या हुआ था।