Rain Gauge : इन दिनों देशभर के कई हिस्सों में भारी बारिश का दौर जारी है। कई राज्यों में तो बारिश कहर बनकर टूटी है तो कई जगाहों पर बारिश ही नहीं हुई। बारिश के चलते बाढ़, जलभराव की खबरे सामने आती है रही है। इन्हीं खबरों के बीच हमारे मन में एक सवाल पैदा होता है कि आखिर बारिश को कैसे मापा जाता है और बारिश को मापने के क्या क्या यंत्र होते है। न्यूज़ चौनल या न्यूज़ पेपर में आप पड़ते होंगे की आज इतने डड या सेंटीमीटर बारिश हुई, और ये बातें हमे मानसून के मौसम में काफी सुनने को मिलती है। तो आइए बताते है कि कैसे मापी जाती है बारिश
बारिश को कैसे मापा जाता है?
आपको बता दे की बारिश को मापने के लिए एक खास तरह के यंत्र या उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे वर्षा मापी यंत्र या रेन गॉग कहा जाता है। इस यंत्र को ऐसी जगह लगाया जाता है जहाँ आसपास पेड़ पौधे या दीवार न हो मतलब इन्हें खुले स्थान पर लगाया जाता है जिससे की बारिश का पानी सीधे इस यंत्र में जाये। ये यन्त्र एक सिलेंडर जैसा होता है और इसका जो ऊपरी हिस्सा होता है उनमें एक कीप लगी होती है या फिर इस यंत्र का जो ऊपरी हिस्सा होता है वो कीप के जैसा होता है। इस कीप में बारिश का पानी जाता है और इस यंत्र के नीचे लगे बोतल जैसे पात्र में इकठ्ठा हो जाता है। जिसे बाद में मापक के जरिये माप किया जाता है, इस काम में करीब 10 मिनट का समय लगता है।
कैसे लिया जाता है माप?
जब भी वर्षा की मापना होता है तो इस यंत्र के बाहरी सिलेंडर को खोलकर बोतल में इकठ्ठे हुए पानी को एक बीकर में डाल जाता है ये बीकर कांच का बना होता है और साथ ही इस बीकर में मिलीमीटर के नंबर प्रिंट होते हैं और जितने मिलीमीटर पानी इस बीकर में आता है यही बारिश की माप मानी जाती है। आपको बता दे की जितना ज्यादा बारिश का माप मिलीमीटर में आता है या जितने ज्यादा मिलीमीटर होते है बारिश भी उतनी ही ज्यादा हुई होती है?
कितनी बार लिया जाता है माप?
आमतौर पर बारिश का माप दिन में एक बार लिया जाता है, लेकिन मानसून के समय बारिश का माप दिन में दो बार लिया जाता है, पहला सुबह 8 बजे और फिर शाम को 5 बजे। कुछ स्थानों पर मौसम विशेषज्ञ रडार द्वारा भी बारिश की माप करते हैं. रडार द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली रेडियो तरंगे पानी की बूंदों द्वारा रिफलेक्ट होती हैं। ये रिफलेक्शन लहरों के तौर पर कंप्युटर पर नजर आता रहता है। इन बिंदुओं की चमक द्वारा बारिश की मात्रा और सघनता का पता चल जाता है।
आपको यह भी बता दें कि वह स्थान जहां औसत बारिश 254 मिलीमीटर से कम होती है तो उस जगह को रेगिस्तान कहा जाता है। वही जहां 10 से 20 इंच बारिश वो भी हर साल होती है ऐसी जगाहों पर हरियाली रहती हैं। वही खेती के लिए 20 इंच बारिश की आवश्यकता होती है।