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छत्‍तीसगढ़ में होली पर्व के विविध रंग: अबूझमाड़ में खुशहाली के लिए अंगार पर चले ग्रामीण, जानें बस्‍तर की खास परंपराएं

Tradition Holi Festival: छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में होलिका दहन की कई अनूठी और प्राचीन परंपराएं देखने को मिलती हैं। यहां के अलग-अलग इलाकों में होलिका दहन के तरीके और रीति-रिवाज अद्वितीय हैं, जो सदियों से चले आ रहे हैं।

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Sanjeet Kumar
Tradition Holi Festival

Tradition Holi Festival

हाइलाइट्स 

देवी-देवताओं को प्रसन्‍न पर करने अंगार पर चले लोग 

बस्‍तर राज परिवार ने निभाई 615 साल पुरानी परंपरा 

दंतेवाड़ा में पत्‍तों से होलिका दहन की अनूठी परंपरा

Tradition Holi Festival: छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में होलिका दहन की कई अनूठी और प्राचीन परंपराएं देखने को मिलती हैं। यहां के अलग-अलग इलाकों में होलिका दहन के तरीके और रीति-रिवाज अद्वितीय हैं, जो सदियों से चले आ रहे हैं।

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अबूझमाड़ के एरपुंड गांव में होलिका दहन (Tradition Holi Festival) के बाद ग्रामीण आग पर चलते हैं। इस गांव को अबूझमाड़ का प्रवेश द्वार माना जाता है। यहां के ग्रामीणों का मानना है कि इस प्रथा से ग्राम देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और क्षेत्र में खुशहाली आती है। होलिका दहन के बाद ने देव विग्रह को लेकर पहले अंगार पर चलकर परंपरा का निर्वहन किया, उसके बाद गांव के अन्य लोगों ने भी यही किया।

पांच से छह पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा

[caption id="attachment_776175" align="alignnone" width="616"]Bastar Tradition Holi Festival अबूझमाड़ में होली पर्व पर अनूठी परंपरा[/caption]

अबूझमाड़ के एरपुंड गांव में यह परंपरा (Tradition Holi Festival) काफी पुरानी है। पुजारी के अनुसार, यह प्रथा पिछले 5-6 पीढ़ियों से चली आ रही है। ग्रामीणों का मानना है कि मावली माता की कृपा से अंगार पर चलने के बाद भी किसी का पैर नहीं जलता।

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माड़पाल में 615 साल पुरानी परंपरा

[caption id="attachment_776177" align="alignnone" width="616"]Bastar Rajpariwar Holi बस्‍तर में राज परिवार ने किया होलिका दहन (फाइल फोटो)[/caption]

माड़पाल में बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने होलिका दहन कर 615 साल पुरानी परंपरा (Tradition Holi Festival) को निभाया। कहा जाता है कि बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव ने पुरी से लौटते समय माड़पाल में होलिका दहन की शुरुआत की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। इस बार भी कमलचंद भंजदेव रथ पर सवार होकर माड़पाल पहुंचे और होलिका दहन किया।

दंतेवाड़ा में ताड़ के पत्तों से होलिका दहन

[caption id="attachment_776178" align="alignnone" width="611"]Dantewada Holi दंतेवाड़ा में अनूठी होली की परंपरा (फाइल फोटो)[/caption]

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दंतेवाड़ा में ताड़ के पत्तों से होलिका दहन की अनूठी परंपरा (Tradition Holi Festival) है। बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के मंदिर में यह रस्म पूरे विधि-विधान से निभाई जाती है। ताड़ के पत्तों को पहले दंतेश्वरी सरोवर में धोया जाता है, फिर पूजा करके होलिका दहन किया जाता है। यह परंपरा भी सदियों से चली आ रही है।

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जगदलपुर में जोड़ा होली का महत्व

[caption id="attachment_776179" align="alignnone" width="619"]Jagdalpur Holi जगदलपुर में होलिका दहन (फाइल फोटो)[/caption]

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जगदलपुर शहर में मां मावली मंदिर (Tradition Holi Festival) के सामने जोड़ा होली जलाई जाती है। इसमें दो अलग-अलग होलिका दहन किए जाते हैं। एक मावली माता को समर्पित होती है, जबकि दूसरी भगवान जगन्नाथ को। यह परंपरा भी बस्तर की संस्कृति का अहम हिस्सा है।

गीदम में 70 साल पुरानी परंपरा

दंतेवाड़ा जिले के गीदम में पुराने बस स्टैंड के पास शिव मंदिर के सामने पिछले 70 सालों से होलिका (Tradition Holi Festival) दहन की जा रही है। इस साल भी यहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। होलिका दहन के बाद फाग गीत गाए गए और DJ की धुन पर लोगों ने ठुमके लगाए।

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Holi festival tradition Bastar Abujhmad Holi
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