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Holashtak and Malmas 2025: होलाष्टक समाप्त होते ही लग जाएगा मलमास, 7 मार्च से 14 अप्रैल तक शुभ कार्य वर्जित

Holashtak and Malmas 2025: होलाष्टक और मलमास दोनों ही हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखते हैं। इन अवधियों के दौरान मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि पर रोक लग जाती है। इस बार होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होकर 13 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा। इसके तुरंत बाद 14 मार्च से मलमास शुरू होगा, जो 14 अप्रैल तक चलेगा। इस प्रकार, लगभग सवा महीने तक मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

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Ashi sharma
Holashtak and Malmas 2025

Holashtak and Malmas 2025

Holashtak and Malmas 2025: होलाष्टक और मलमास दोनों ही हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखते हैं। इन अवधियों के दौरान मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि पर रोक लग जाती है। इस बार होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होकर 13 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा। इसके तुरंत बाद 14 मार्च से मलमास शुरू होगा, जो 14 अप्रैल तक चलेगा। इस प्रकार, लगभग सवा महीने तक मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

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क्या है होलाष्टक और क्या है इसका महत्व

होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। इस बार होलाष्टक 7 मार्च से 13 मार्च तक रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। यह अवधि होलिका दहन की तैयारी और साधना के लिए विशेष मानी जाती है।

7 मार्च को शुक्रवार के दिन मृगशिरा नक्षत्र और वृषभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में होलाष्टक का आरंभ होगा। 13 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के साथ होलाष्टक का समापन हो जाएगा।

क्या है मलमास और क्या इसका प्रभाव

होलाष्टक के खत्म होते ही 14 मार्च से मलमास शुरू हो जाएगा। मलमास तब माना जाता है जब सूर्य मीन राशि में प्रवेश करता है। इस बार सूर्य का मीन राशि में प्रवेश 14 मार्च को होगा, जिसके कारण मलमास की शुरुआत होगी। मलमास में भी मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

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मलमास 14 अप्रैल तक चलेगा और इस दौरान विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, गृह आरंभ जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाएंगे। 15 अप्रैल को मलमास समाप्त होने के बाद ही इन कार्यों की अनुमति होगी।

होलाष्टक और मलमास में क्यों नहीं होते मांगलिक कार्य?

होलाष्टक और मलमास दोनों ही अवधियों को अशुभ माना जाता है। होलाष्टक के दौरान होलिका दहन की तैयारी और साधना पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसके कारण मांगलिक कार्यों को टाल दिया जाता है। वहीं, मलमास को अतिरिक्त मास माना जाता है, जो हर तीन साल में एक बार आता है। इस अवधि में शुभ कार्य करने से बचा जाता है क्योंकि इसे अशुभ और असंतुलित समय माना जाता है।

होलाष्टक में साधना का महत्व

होलाष्टक की आठ रात्रियों को तंत्र, मंत्र और यंत्र साधना के लिए विशेष माना जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, इन रात्रियों में साधक विशिष्ट साधनाएं करते हैं। होलिका दहन की रात्रि को आठ दिवसीय साधना का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन साधना का क्रम पूर्ण होता है।

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होलाष्टक की रात्रियों में सिद्ध रात्रि, कालरात्रि और मोह रात्रि जैसी विशेष रात्रियों का भी उल्लेख मिलता है। इन रात्रियों में साधना करने से साधक को विशेष फल प्राप्त होता है।

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