हाइलाइट्स
- रविवार की छुट्टी सिर्फ परंपरा नहीं, मजदूरों की जीत की कहानी
- हेनरी फोर्ड ने दिया वीकेंड का तोहफा, फैली दुनिया भर में परंपरा
- आज भी कई देशों में रविवार को कामकाज, छुट्टी का नहीं नियम
Why Holiday On Sunday: सप्ताह का सबसे खास दिन होता है रविवार। इस दिन का इंतजार लगभग हर कामकाजी शख्स करता है। शनिवार की रात से ही लोग योजनाएं बनाने लगते हैं कि रविवार को क्या करेंगे, कहां जाएंगे और कैसे सुकून भरा समय बिताएंगे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर रविवार को ही छुट्टी क्यों तय की गई? यह परंपरा कब शुरू हुई और कैसे धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों में रविवार को आराम का दिन माना जाने लगा।
दिलचस्प यह भी है कि अभी भी दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां रविवार की छुट्टी नहीं होती। यह पूरी कहानी सिर्फ परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी नहीं है बल्कि इसमें मजदूरों के संघर्ष और औद्योगिक क्रांति का भी रिश्ता है।
संडे छुट्टी का धार्मिक कनेक्शन
इतिहासकार बताते हैं कि रविवार की छुट्टी का ख्याल सबसे पहले धर्मों की परंपराओं से आया। ईसाई धर्म में रविवार को खास महत्व दिया जाता है। यह माना जाता है कि ईसा मसीह को शुक्रवार को क्रूस पर चढ़ाया गया और रविवार को वे दोबारा जीवित हुए।
इसी वजह से ईसाई समुदाय रविवार को प्रार्थना और विश्राम का दिन मानने लगा। वहीं मुस्लिम समाज में शुक्रवार को जुमे की नमाज की अहमियत है और इस्लामिक देशों में शुक्रवार का दिन आराम और इबादत के लिए चुना गया। यहूदी परंपरा के अनुसार शनिवार को सब्बाथ डे कहा जाता है, जब लोग काम छोड़कर परिवार और ईश्वर के साथ समय बिताते हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि ईसाई धर्म की मान्यता इसलिए भी दुनियाभर में अपनाई गई क्योंकि पहले वैश्विक स्तर पर उनका सबसे अधिक दबदबा था।
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19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति (industrial revolution) ने समाज और कामकाजी जीवन को पूरी तरह बदल दिया। खेती करने वाले किसान जब फैक्ट्रियों में काम करने लगे तो उन्हें 12 से 13 घंटे तक मशीनों के बीच खपना पड़ता था। सप्ताह के सातों दिन काम करने का दबाव उन पर डाला जाता और उन्हें परिवार या व्यक्तिगत जीवन के लिए कोई समय नहीं मिलता।
फिर क्या था? मजदूरों ने इसका विरोध करना शुरू किया। वे चाहते थे कि उन्हें भी आराम करने और अपने खेतों व घर पर काम करने के लिए वक्त मिले। धीरे-धीरे यह नाखुशी आंदोलनों में तब्दील हुई। मजदूर सड़कों पर उतर आए और एक होकर हड़ताल करने लगे।
इन हड़तालों में कई बार पुलिस और मजदूरों के बीच झड़पें हुईं। यहां तक कि कई मजदूरों की जान तक गई। इस संघर्ष के बाद धीरे-धीरे फैक्ट्री मालिकों को समझ आने लगा कि कर्मचारियों को थोड़ा आराम देना ही बेहतर है।
हेनरी फोर्ड ने की वीकेंड की शुरूआत
साल 1938 में अमेरिकी दिग्गज बिजनेसमैन हेनरी फोर्ड ने अपने कर्मचारियों को शनिवार और रविवार दोनों दिन छुट्टी देना शुरू किया। फोर्ड का तर्क था कि जब उनके कर्मचारी कार बनाते हैं तो वही उनके सबसे बड़े ग्राहक भी हो सकते हैं। अगर वे पूरे सप्ताह काम में व्यस्त रहेंगे तो कभी कार चलाने और उसका आनंद लेने का समय ही नहीं मिलेगा। इस सोच ने दो दिन के वीकेंड की शुरुआत कर दी और जल्द ही यह व्यवस्था अमेरिका समेत अन्य देशों में भी अपनाई जाने लगी।
अब भारत में रविवार छुट्टी की कहानी जान लेते हैं
भारत में रविवार की छुट्टी का इतिहास अंग्रेजी शासन से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि 1843 में अंग्रेज गवर्नर जनरल ने रविवार को अवकाश देने की शुरुआत की। 1844 में इसे स्कूल और कॉलेजों में भी लागू कर दिया गया।
हालांकि भारत में मजदूरों की लड़ाई भी इस बदलाव का अहम हिस्सा रही। 1857 में मजदूर नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने अंग्रेज हुकूमत के सामने साप्ताहिक छुट्टी की मांग रखी। उनका कहना था कि लगातार सात दिन काम करने के बाद मजदूरों को थकान मिटाने और अपने जीवन के लिए समय निकालने का मौका मिलना चाहिए। लंबे संघर्ष और कोशिशों के बाद 10 जून 1890 को ब्रिटिश शासन ने रविवार को छुट्टी घोषित कर दी।
धार्मिक नजरिए से संडे है खास
रविवार की छुट्टी को लेकर धार्मिक मान्यताओं का भी बड़ा योगदान रहा है। ईसाई धर्म के मुताबिक ईश्वर ने छह दिन में दुनिया का निर्माण किया और सातवें दिन यानी रविवार को आराम किया। यही वजह है कि रविवार को आराम का दिन मानने की परंपरा ईसाई देशों से शुरू हुई।
भारत में इसे अपनाए जाने की एक वजह यह भी थी कि अंग्रेज यहां पर हुकूमत कर रहे थे और अपनी धार्मिक परंपराओं को प्रशासनिक ढांचे में शामिल करते थे। इसके अलावा हिंदू धर्म में भी रविवार सूर्य देव का दिन माना जाता है। सूर्य को ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत माना गया है, जो जीवन का आधार है। इसी वजह से रविवार को धार्मिक नजरिए से भी विशेष महत्व प्राप्त है।
जब कॉन्स्टैंटाइन ने दिया आदेश
इतिहासकार बताते हैं कि 7 मार्च 321 को रोम के पहले ईसाई सम्राट कॉन्स्टैंटाइन ने आदेश दिया था कि रविवार को रोमन साम्राज्य में अवकाश रहेगा। यह आदेश ईसाई परंपराओं को बढ़ावा देने के लिए दिया गया था और बाद में यह परंपरा अन्य देशों तक फैल गई। 1986 में अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संस्था (International Organization for Standardization) यानी ISO ने भी रविवार को सप्ताह का आखिरी दिन मानकर इसे अवकाश के तौर पर मान्यता दी। इस तरह रविवार को अवकाश की वैश्विक मान्यता मिली।
आज भी कई देशों में नहीं होती रविवार की छुट्टी
भले ही अधिकतर देशों में रविवार आराम और छुट्टी का दिन माना जाता है, लेकिन आज भी दुनिया में कई ऐसे देश हैं, जहां रविवार को छुट्टी वाले दिन की तरह नहीं देखा जाता है। इनमें ज्यादातर मुस्लिम देश शामिल हैं, जैसे ईरान, बहरीन, इराक, यमन, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, इजराइल, लीबिया, सीरिया, मालदीव, सूडान, मलेशिया, सऊदी अरब, ओमान, कतर, फिलिस्तीन, मिस्र, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और अल्जीरिया।
इन देशों में शुक्रवार का दिन सबसे अहम होता है, क्योंकि इस्लाम में जुमे की नमाज का खास महत्व है। शुक्रवार को लोग काम से आराम लेकर नमाज और धार्मिक गतिविधियों में शामिल होते हैं। इसलिए वहां रविवार को छुट्टी देने की परंपरा कभी स्थापित नहीं हो सकी।
भारत में रविवार की छुट्टी अब जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है। स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तर, बैंक और ज्यादातर निजी संस्थान इस दिन बंद रहते हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों जैसे मीडिया, अस्पताल, पुलिस और आपात सेवाओं में रविवार को भी काम करना पड़ता है। लेकिन आम जनता के लिए रविवार आज भी आराम, पूजा, परिवार और सामाजिक गतिविधियों का दिन है।
FAQ
Q. रविवार की छुट्टी की शुरुआत कब और कैसे हुई?
रविवार की छुट्टी की शुरुआत 321 ईस्वी में रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने की थी। बाद में औद्योगिक क्रांति और मजदूर आंदोलनों के चलते इसे दुनिया भर में मान्यता मिली।
Q. भारत में रविवार की छुट्टी कब लागू हुई?
भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान रविवार की छुट्टी लागू की गई। शुरुआत में यह मिलों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों को दी गई थी, ताकि उन्हें आराम मिल सके।
Q. क्या हर देश में रविवार की छुट्टी होती है?
नहीं, हर देश में रविवार की छुट्टी नहीं होती। कई मुस्लिम देशों में शुक्रवार को अवकाश होता है, जबकि कुछ देशों में रविवार को भी सामान्य कार्यदिवस माना जाता है।
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