आज पूरे देश में होती का त्यौहार मनाया जा रहा है। देश के अलग-अलग जगहों पर अलग अलग तरीकों से होली मनाई जाती है। होली आज से ही नहीं बल्कि मुगलकाल से ही मनाई जाती है। कई बार कुछ लोग होली के त्यौहार को धर्म एंगल देकर इसे मनाने से मना करते हैं लेकिन मुगल काल के समय भी कई मुगल शासक इसे मनाते थे।
होली के इस त्यौहार को गंगा जमुनी तहजीब के रूप में भी मनाया जाता है। इसे हर जाति, धर्म के लोग मनाते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 13वीं शताब्दी में आमिर खुसरो (1253-1325) ने होली को लेकर कुछ पंक्तियां भी लिखी थी जो उस समय होली के उत्साह के बारे में बताती हैं। आमिर खुसरो ने लिखा था कि खेलूंगी होगी, खाजा घर आए, धन-धन भाग हमारे सजनी, खाजा आए आंगन मेरे…। इसके साथ ही मुगल शासक अकबर ने भी होली को खूब प्रोत्साहित किया था। उनके शासन में सभी धर्म के त्यौहार उत्साह से मनाए जाते थे। रिपोर्ट में यह बताया जाता है कि औरंगजेब के शासन को छोड़ दे तो लगभग सभी मुगल शासनकाल में होली के त्यौहार को धूम-धाम से मनाया जाता था।
मुगल काल में कैसे मनती थी होली?
होली ईद के तरह ही लाल किले में मनाई जाती थी। उस समय होली को ईद-ए-गुलाबी या फिर आब-ए-पाशी कहा जाता था। लाल किले के पीछे यमुना किनारे कई सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते थे। यहीं नहीं इसके साथ ही इस दिन अगर कोई भी राजा-रानी की एक्टिंग करता था तो कोई भी बुरा नहीं मानता था। रानियां भी होली का आनंद लेती थीं। बहादुर शाह जफर का होरियां बहुत ही मशहूर था। रात के समय लाल किले में जश्न भी मनाया जाता था।