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Hindu Nav Varsh: चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, नववर्ष का उत्सव

Hindu Nav Varsh: अभिनंदन: नव-संवत्सर, हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है।

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Rahul Garhwal
Hindu Nav Varsh 2025 suyash mishra

अभिनंदन: नव-संवत्सर

Hindu Nav Varsh: यूरोपीय सभ्यता के वर्चस्व के कारण विश्वभर में 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है। भारत में भी अधिकांश लोग अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नववर्ष 1 जनवरी को ही मनाते हैं किन्तु हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है। यह दिवस बहुसंख्यक हिन्दू समाज के लिए अत्यंत विशिष्ट है क्योंकि इस तिथि से ही नया पंचांग प्रारंभ होता है और वर्ष भर के पर्व, उत्सव एवं अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं।

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हिंदू समाज के लिए नववर्ष प्रारंभ

भारत में सांस्कृतिक विविधता के कारण अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवी सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि। इस वर्ष 1 जनवरी को राष्ट्रीय शक संवत 1946, विक्रम संवत 2081 वीरनिर्वाण संवत 2551, बंग संवत 1431, हिजरी सन 1446 थी, किन्तु 30 मार्च 2025 को चैत्र मास प्रारंभ होते ही शक संवत 1947 और विक्रम संवत 2082 हो रहे हैं। इस प्रकार हिन्दु समाज के लिए नववर्ष प्रारंभ हो रहा है।

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विक्रमादित्य के विजयी होने पर विक्रम संवत पंचांग

भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है। सनातन धर्मावलम्बियों के समस्त कार्यक्रम जैसे विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ कार्य विक्रम संवत के अनुसार ही होते हैं। विक्रम संवत का आरंभ 82 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ। भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रुप में जाना जाता है। विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शकों का शासन हुआ करता था। वे लोग अत्यंत क्रूर थे और प्रजा को सदा कष्ट दिया करते थे। विक्रमादित्य ने उज्जैन को शकों के कठोर शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता का भयमुक्त कर दिया।

स्पष्ट है कि विक्रमादित्य के विजयी होने की स्मृति में आज से 2082 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया। भारतीय शासन ने शक संवत कैलेंडर (भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर) को भारतीय राष्ट्रीय पंचांग के रूप में 22 मार्च 1957 (चैत्र 1, 1879) को अपनाया था। यह शालिवाहन शक कैलेंडर के नाम से भी प्रचलित है। यह कैलेंडर चंद्र गणना आधारित है और इसकी तिथियां ग्रेगोरियन कैलेंडर की डेट के अनुरूप हैं।

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ऋतु परिवर्तन के साथ हिंदू नववर्ष प्रारंभ

summer

भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होता है। चैत्र माह में शीत ऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष आता है। यह दिवस भारतीय इतिहास में अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है। पुराण-ग्रन्थों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही त्रिदेवों में से एक ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी। इसलिए हिन्दू समाज भारतीय नववर्ष का पहला दिन अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हैं। इस तिथि को कुछ ऐसे अन्य कार्य भी सम्पन्न हुए हैं जिनसे यह दिवस और भी विशेष हो गया है जैसे श्री राम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की साधना हेतु चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल की जंयती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिन आदि। इन सभी विशेष कारणों से भी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन विशेष बन जाता है।

अपने नववर्ष को पहचानें

यह विडंबना ही है कि हमारे समाज में जितनी धूमधाम से विदेशी नववर्ष एक जनवरी का उत्सव नगरों-महानगरों में मनाया जाता है। उसका शतांश हर्ष भी इस पावन-पर्व पर दिखाई नहीं देता। बहुत से लोग तो इस पर्व के महत्व से भी अनभिज्ञ हैं। आश्चर्य का विषय है कि हम परायी परंपराओं के अन्धानुकरण में तो रुचि लेते हैं किन्तु अपनी विरासत से अनजान हैं। हमें अपने पंचांग की तिथियां, नक्षत्र, पक्ष , संवत आदि प्रायः विस्मृत हो रहे हैं। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हैं। इसे बदलना होगा। आइए, अपने नववर्ष को पहचानें, उसका स्वागत करें और परस्पर बधाई देकर इस उत्सव को सार्थक बनाएं।

( लेखक सुयश मिश्रा युवा पत्रकार और टिप्पणीकार हैं )

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