MP Teacher Recruitment Issue: मध्यप्रदेश की भर्तियों में आरक्षण विवाद (Reservation Dispute) खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान उम्मीदवारों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अहम फैसला सुनाया।
इधर इसी आरक्षण को लेकर एमपी हाईकोर्ट (MP High Court Order) ने शिक्षक भर्ती से जुड़े एक मामले में सरकार से जवाब मांग लिया है।
पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला जान लीजिए
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की चयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में शामिल करने का फैसला सुना दिया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाई कोर्ट के दो डिवीजन बेंच के परस्पर विरोधाभासी फैसले का पटाक्षेप कर दिया।
प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को शामिल नहीं किए जाने से सम्बंधित डिवीजन बेंच क्रमांक-दो के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया।
ये फैसला इसलिए महत्वपूर्ण
मध्यप्रदेश में आरक्षण के मामले में भर्ती नियम एमपीपीएससी के ही फॉलो किये जाते रहे हैं।
मतलब ये कि यदि कोई नियम एमपीपीएससी पर लागू होता है तो आरक्षण के मामले में कर्मचारी चयन मंडल भी उसे अन्य भर्तियों पर लागू करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सामान्य शब्दों में कहें तो यदि कोई आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अंतिम अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवार से ज्यादा नंबर लाता है तो उसे अनारक्षित वर्ग में ही शामिल किया जाएगा।
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शिक्षक भर्ती से जुड़े इस मामले की सुनवाई
उच्च माध्यमिक शिक्षक यानी वर्ग 1 की भर्ती (MP Teacher Bharti Controversy) में आरक्षण से जुड़े एक मामले की जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस विवेक अग्रवाल की सिंगल बेंच में सुनवाई चल रही है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अंतिम चयनित अनारक्षित से अधिक अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को अनारक्षित में चयन करने जैसी अनियमितता की गई।
सभी अनारक्षित पदों पर नियुक्ति से पूर्व आरक्षित पदों पर नियुक्ति का मनमाना रवैया सीधे तौर पर आरक्षण के उल्लंघन की परिधि में आता है।
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आरक्षित वर्ग में चयन करना आरक्षण कानून का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा कि नियमानुसार मेरिट के आधार पर अनारक्षित में नियुक्ति के बाद आरक्षित वर्ग में चयन करना आरक्षण कानून (MP Teacher Recruitment Issue) का सरासर उल्लंघन है।
मेरिटोरियस अभ्यार्थियों की आरक्षित वर्ग में नियुक्ति न किए जाने पर जवाब मांगा जाना चाहिए। कुल मिलाकर विभिन्न विषयों के शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण अधिनियम व प्रक्रियात्मक कानून का खुला उल्लंघन किया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने हिंदी, राजनीति विज्ञान, संस्कृति और भूगोल विषयों के चयन से वंचित होने पर हाई कोर्ट की शरण ली है।
हाईकोर्ट ने 4 सप्ताह में सरकार से मांगा जवाब
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता मंदसौर, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, पन्ना, सिवनी, रीवा, राजगढ़, शिवपुरी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह, विदिशा, शाजापुर, देवास, टीकमगढ़, रतलाम बड़वानी, छतरपुर, खंडवा, खरगौन, बुरहानपुर, मंडला, डिंडोरी, बैतूल, धार, भोपाल, दतिया, नीमच, रायसेन जिलों के निवासी अभ्यार्थियों की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह, पुष्पेंद्र कुमार शाह, रूप सिंह मरावी व डा.प्रतीक्षा सिंह ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती परीक्षा-2018 की प्रक्रिया बारम्बार काउंसिलिंग के कारण विवादास्पद हो गई है। जिस पर हाईकोर्ट ने लोक शिक्षण संचालनालय सहित अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
इधर पदवृद्धि की मांग कर रहे उम्मीदवार
वर्ग 1 शिक्षक भर्ती 2023 को लेकर उम्मीदवार लगातार पदवृद्धि की मांग कर रहे हैं।
उम्मीदवारों का कहना है कि विभाग रिक्त पद होने के बावजूद इतने कम पदों पर भर्ती कर रहा है कि विषयवार मैरिट उम्मीदवारों की भी नियुक्ति मुश्किल है।
प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिर रहा है, ऐसे में सरकार का ये दायित्व है कि वह सबसे पहले शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति कर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करे।