नई दिल्ली। जरा सोचिए अगर विज्ञान नहीं होता तो क्या होता, ये सोचना थोड़ा असंभव है। क्योंकि हम जन्म के साथ ही साइंस की दुनिया में एंट्री कर चुके होते हैं। साइंस और टेक्नोलॉजी के कारण ही आज हमारी जिंदगी इतनी आसान और सुविधाजनक बनी है। आज के युग में साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि हर काम में अपना योगदान दे रही है। ब्रिटन के डॉक्टरों ने साइंस की मदद से एक साख किस्म की मशीन बनाई जिसे मृत दिल में लगाया जाता है। जिसके बाद वह फिर से धड़कना शुरू कर देता है।
ट्रांसप्लांट के बाद बच्चे सुरक्षित
डॉक्टरों ने इस तकनीक के इस्तेमाल से मृत हो चुके कुछ लोगों के दिलों को 6 बच्चों में ट्रांसप्लांट किया और अब सभी बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ हैं। मालूम हो कि पहले ब्रेन डेड घोषित हो चुके व्यक्तियों के हार्ट को ही ट्रांसप्लांट किया जाता था। क्योंकि उनका हार्ट पूरू तरीके से सुरक्षित रहता है। लेकिन अब ब्रिटेन के डॉक्टरों ने जिस खास मशीन का इस्तेमाल किया है उससे मेडिकल साइंस में एक नई क्रांति की उम्मीद है।
इस उपलब्धि को हासिल करने वाली पहली टीम बनी
केंब्रिजशायर के रॉयल पेपवर्थ अस्पताल के डॉक्टरों ने हार्ट ट्रांसप्लांट की नई तकनीक से 6 बच्चों को जिंदगी दी है। इस उपलब्धि के बाद यह दुनिया की पहली टीम बन गई है जिन्होंने मृत दिलों को धड़काने में सफलता हासिल की है। ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस के ऑर्गन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांटेशन विभाग के डायरेक्टर डॉ. डॉन फोर्सिथ ने कहा कि ‘हमारी यह तकनीक सिर्फ ब्रिटेने ही नहीं पूरी दनिया के लिए मील का पत्थर साबित होगी’।
अब ट्रांसप्लांट के लिए लोगों को इंतजार नहीं करना पड़ेगा
बतादें कि इस तकनीक के माध्यम से 12 से लेकर 16 साल के 6 बच्चों को नया जीवन दिया गया है। इन बच्चों को जल्द से जल्द हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। ये पिछले तीन साल से किसी ब्रेन डेट डोनर का इंतजार कर रहे थे। लेकिन नई तकनीक की सहायता से इन लोगों में मृत हो चुके व्यक्ति के हार्ट को ट्रांसप्लांट किया गया। जो सफल रहा है। अब ज्यादा से ज्यादा लोग अपना हार्ट डोनेट कर सकते हैं। क्योंकि पहले इन डेड हो चुके हार्ट को ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता था। लेकिन अब इसे भी लगाया जा सकता है। साथ ही अब लोगों को ट्रांसप्लांट के लिए लंबे समय तक इंतजार भी नहीं करना पड़ेगा।
ऑर्गन केयर सिस्टम से मृत दिल को किया जाएगा जिंदा
मालूम हो कि ब्रिटेन के डॉक्टरों ने ‘ऑर्गन केयर सिस्टम’ मशीन बनाई है। जिसमें मृत्यु की पुष्टि होने के बाद डोनर के दिल को तुरंत निकालकर रखा जाता है। यहां इसे 12 घंटों तक रखा जाता है और जांच किया जाता है। इसके बाद इसे ट्रांसप्लांट किया जाता है। इन 12 घंटों के जांच में डोनर के दिल को जिस शरीर में लगाना है, उसके शरीर के आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन, पोषक तत्व और उसके ग्रुप का ब्लड इस मशीन में प्रवाहित किया जाता है। जब सबकुछ अच्छा रहता है, तब जाकर इसे ट्रांसप्लांट किया जाता है।