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Halshashthi 2024 Katha: हलषष्ठी व्रत में क्यों नहीं करना चाहिए गाय के दूध का सेवन, पौराणिक कथा से जुड़ा है कारण

Halshashthi 2024 Katha: हलषष्ठी व्रत में क्यों नहीं करना चाहिए गाय के दूध का सेवन, पौराणिक कथा से जुड़ा है कारण Halshashthi 2024 Katha Why cow's milk should not be consumed during Halshasthi fast, know whats the reason niyam august vrat tyohar hindi news pds

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Preeti Dwivedi
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Halshashthi 2024 Vrat Katha in Hindi News: संतान की दीर्घायु और पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाने वाला व्रत हलषष्ठी इस साल 25 अगस्त को रखा जाएगा। इस दिन को बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है।

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अगर आप भी इस व्रत को करने जा रहे हैं तो आपको बता दें इस व्रत को लेकर कहा जाता है कि इसमें हल (Hal ke juti cheez kyon nahi karte upyog) से जुती चीजें और गाय के दूध का सेवन (Cow's Milk on Halshashthi Vrat) नहीं करना चाहिए। तो चलिए जानते हैं आखिर इसके पीछे की वजह क्या है।

हल षष्ठी की व्रत कथा

कथा के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shrina) के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था।

प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी, तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

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[caption id="attachment_627630" align="alignnone" width="458"]Halshashthi vrat bhog thali Halshashthi vrat bhog thali[/caption]

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी। लेकिन कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

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उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।

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कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी, कि यह सब उसके पाप की सजा है।

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वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता, तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची, तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।

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