Haldwani Land Encroachment : इस वक्त की बड़ी खबर हल्द्वानी से सामने आ रही है जहां पर जमीन पर अतिक्रमण करने का मामला अभी तेज हो गया जिसमें हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने टालते हुए सुनवाई के तहत फैसला सुनाया है।उच्चतम न्यायालय ने साथ ही रेलवे तथा उत्तराखंड सरकार से हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब मांगा।
सुनवाई के बाद जज ने क्या कहा
यहां पर . सुनवाई करते हुए जज ने कहा, “हम रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं. वहां और अधिक कब्जे पर रोक लगे. फिलहाल हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा रहे हैं.”सुनवाई करते हुए जस्टिस कौल ने पूछा कि उत्तराखंड सरकार के वकील कौन हैं? कितनी जमीन रेलवे की है, कितनी राज्य की? क्या वहां रह रहे लोगों का दावा लंबित है? जज ने आगे कहा, “इनका दावा है कि बरसों से रह रहे हैं. यह ठीक है कि उस जगह को विकसित किया जाना है, लेकिन उनका पुनर्वास होना चाहिए.”आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, अब उस जमीन पर किसी तरह का कोई कंस्ट्रक्शन और डेवलपमेंट नहीं होगा। हमने इस पूरी प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है। हमने हाईकोर्ट के आदेश को रोका है।
अगली सुनवाई 7 फरवरी को
आपको बताते चलें कि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, इसकी सुनवाई आगे 7 फरवरी को होगी जिसमें उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे को गिराने का आदेश दिया था। वहां करीब 4 हजार से ज्यादा परिवार रहते हैं। वही इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी ने कहा कि,वो रेलवे की जमीन है। रेलवे विभाग का हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में मुकदमा चल रहा था। हमने पहले ही कहा है कि जो भी कोर्ट का आदेश होगा, हम उसके अनुसार आगे की कार्रवाई करेंगे।
जानिए क्या है रेलवे का दावा
रेलवे के मुताबिक, उसकी 29 एकड़ से अधिक भूमि पर 4,365 अतिक्रमण हैं। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक ‘‘मानवीय मुद्दा’’ है और कोई यथोचित समाधान निकालने की जरूरत है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई सात फरवरी को नियत कर दी।उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को एक सप्ताह का अग्रिम नोटिस जारी कर हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था।
हल्द्वानी निवासियों में SC में याचिका की जारी
इस पर विरोध जताते हुए हल्द्वानी के कुछ निवासियों ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। निवासियों ने अपनी याचिका में दलील दी कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद विवादित आदेश पारित करने में गंभीर भूल की है कि याचिकाकर्ताओं सहित निवासियों को लेकर कुछ कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है।बनभूलपुरा में रेलवे की कथित तौर पर अतिक्रमित 29 एकड़ से अधिक जमीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, कारोबारी प्रतिष्ठान और आवास हैं। शहर में रेलवे स्टेशन के निकट इस क्षेत्र के रहने वाले एक अन्य निवासी ने कहा, ‘‘हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। हमारे पास दस्तावेज हैं। बनभूलपुरा, शेष हल्द्वानी की तरह ‘नजूल’ भूमि पर स्थित है। अगर आप हमें हटाते हैं, तो आपको पूरे हल्द्वानी को हटाना होगा। हमारे साथ यह भेदभाव क्यों?’’ इससे पहले स्थानीय लोगों ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी याचिकाओं पर सुनवाई से पहले यहां एक मस्जिद के सामने धरना दिया और नमाज अदा की।
जानें क्या है अब तक का मामला
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से ‘अतिक्रमण’ हटाने और इसे खाली करने के लिए स्थानीय लोगों को एक सप्ताह का नोटिस देने का निर्देश दिया था। बृहस्पतिवार की सुबह इसके खिलाफ धरना देने वालों में बड़ी संख्या में महिलाएं एवं बच्चे शामिल थे। स्थानीय लोगों ने दावा किया कि उनके पास दस्तावेज हैं जो यह साबित करता है कि इलाके में उनका घर वैध है। स्थानीय वरिष्ठ निवासी अहमद अली ने कहा, ‘‘पूरी दुनिया के मुसलमान शीर्ष अदालत की तरफ उम्मीद से देख रहे हैं। लोग यहां 100 से अधिक सालों से रहते आ रहे हैं। उनके पास साक्ष्य एवं दस्तावेज हैं। हमें उम्मीद है कि शीर्ष अदालत न्याय करेगी और ऐसा आदेश देगी जो हमारे अनुकूल होगा।’’ एक अन्य निवासी नईम ने दावा किया कि उनके पूर्वज पिछले 200 सालों से यहां रहते आ रहे हैं। जिले के मंगलौर से कांग्रेस के पूर्व विधायक और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव काजी निजामुद्दीन ने कहा, ‘‘इलाके में दो इंटर कॉलेज, विद्यालय, अस्पताल, पानी टंकी और 1970 में बिछाई गयी सीवर लाइन भी है। यहां एक मंदिर और एक मस्जिद भी है