Haldi Ghati War: हल्दी घाटी एक ऐसा युद्ध क्षेत्र है जहां मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच भीषण संग्राम हुआ था।
इस युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप का बड़ा सहयोगी माना जाने वाला उनका घोड़ा ‘चेतक’ भी हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है।
Haldi Ghati War: 448 साल पहले यहां छलांग लगाकर चेतक ने बचाई थी महाराणा प्रताप की जान, जानें कहां बनी है समाधि#HaldiGhatiWar #HaldiGhati #MaharanaPratap
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ऐसा कहा जाता है कि चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था। हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना से अपने स्वामी महाराणा प्रताप की जान की रक्षा के लिए चेतक 22 फीट चौड़े नाले से कूद गया था।
चेतक ने लंबी छलांग लगाकर अपने स्वामी महाराणा प्रताप की जान बचाई थी।
क्यों कहा जाता है इसे हल्दी घाटी
इस घाटी का नाम ‘हल्दी घाटी’ इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली होती है। इसे राती घाटी भी कहते हैं।
हल्दी घाटी अरावली पर्वतमाला में खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य एक पहाड़ी दर्रा है।
कब हुआ था हल्दी घाटी का युद्ध
आज से करीब 448 साल पहले 18 जून 1576 को मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप की सेना और आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच हल्दी घाटी का युद्ध हुआ था।
हल्दीघाटी एक अरावली पर्वत श्रृंखला से गुजरने वाला दर्रा (दो पहाड़ो के बीच की जगह) है जो राजस्थान में उदयपुर से करीब 40 किमी दूर है, इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, इसलिए प्रचलित नाम हल्दीघाटी पड़ा।
यह राजस्थान में राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है। हल्दी घाटी युद्ध की शुरुआत उस वक्त से हुई जब अकबर राजपूती क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करके अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाने की योजना बना रहा था।
चेतक के चेहरे पर रहता था हाथी का मुखौटा
महाराणा प्रताप के चेतक घोड़े की सबसे खास बात यह थी कि प्रताप ने उसके चेहरे पर एक हाथी का मुखौटा लगा रखा था।
जिससे युद्ध मैदान में दुश्मनों के हाथियों को कंफ्यूज किया जा सके और दुश्मन के हाथी घोड़े को हाथी समझ लेते थे। चेतक घोड़ा होते हुए भी युद्ध में कई हाथियों को मार गिराता था।
युद्ध में घायल हुआ चेतक
एक बार युद्ध में चेतक उछलकर दुश्मन के हाथी के मस्तक पर चढ़ गया था, हालांकि हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड में बंधी तलवार से कट गया।
अपना एक पैर कटे होने के बावजूद चेतक ने महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए बिना रुके 5 किलोमीटर तक दौड़ाता रहा।
हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक की भूमिका सिर्फ़ एक योद्धा घोड़े की नही थी, बल्कि वह महाराणा प्रताप का दोस्त और अद्वितीय सहयोगी था।
उसकी अतुलनीय स्वामिभक्ति कि वजह से ही चेतक को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ घोड़े का दर्ज़ा दिया गया है।
कहां बनी है वीर चेतक की समाधि
हल्दी घाटी के युद्ध में 22 फीट चौड़े नाले पर छलांग लगाकर चेतक ने महाराणा प्रताप की जान तो बचा ली थी पर इस छलांग के बाद चेतक गंभीर रूप से घायल हो गया था और इसके बाद वह कभी खड़ा नहीं हो पाया था।
चेतक ने खोड़ी ईमली नामक जगह पर अपने प्राण दे दिए। महाराणा प्रताप ने अपने प्रिय घोड़े चेतक को अपने भाई शक्तिसिंह की मदद से बलीचा में दफनाते हुए यहां शिव मंदिर की स्थापना की, जो आज भी चेतक समाधि के पास स्थित हैं।
चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।
कैसे पहुंचे हल्दी घाटी
हल्दी घाटी पहुंचने के तीन रास्ते हैं।
हवाई मार्ग से: अगर आप हवाई मार्ग से हल्दी घाटी पहुंचना चाहते हैं तो हल्दी घाटी के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर में है जो हल्दी घाटी से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है।
उदयपुर से हल्दीघाटी के लिए आपको सीधी बसें और कैब मिल जाएंगी।
रेल द्वारा: अगर आप रेल द्वारा हल्दी घाटी पहुंचना चाहते हैं, तो हल्दी घाटी पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका उदयपुर के लिए सीधी ट्रेन लेना है।
उसके बाद, आपको हल्दी घाटी के लिए बस या टैक्सी लेनी होगी।
सड़क मार्ग से: पहाड़ी दर्रे के कारण हल्दीघाटी का स्थान सड़क मार्ग से अन्य शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
इस प्रकार, आप सड़क मार्ग से आसानी से हल्दीघाटी की यात्रा कर सकते हैं।