Hal Shashti 2023: हर साल भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाने वाला व्रत आज रखा जा रहा है। माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए हल षष्ठी व्रत रख रही हैं। यदि आप निसंतान हैं और पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखती हैं तो लोक परंपरा के अनुसार इस दिन एक खास पौधे में गांठ लगाने से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है। (Hal Shashti 2023 Totke)
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी रखा जाता है। आज मंगलवार 5 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का भी जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है।
हल षष्ठी व्रत का महत्व (Hal Shashti 2023 significance)
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हल षष्ठी व्रत रखने से जीवन की सभी दुख-बाधाएं दूर होती हैं और बलराम जी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पंडित राम गोविंद शास्त्री से जानते हैं हल षष्ठी जयंती का शुभ मुहूर्त, पूजाविधि और महत्व।
कब है हल षष्ठी? (When is Hal Shashti 2023 )
भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 4 सिंतबर को रात 9:32 मिनट से शुरू हो चुकी है, जो आज 5 सिंतबर की रात 8:32 तक रहेगी। यानि उदया तिथि में 5 सितंबर को आज ही है। ये व्रत दोपहरिया व्रत कहलाता है। यानि इस व्रत को दोपहर में किया जाता है।
हल षष्ठी व्रत की पूजा विधि (Hal Shashti Puja Vidhi)
सुबह सूर्योदय से पहले उठ कर स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।
इसके बाद पूजा का संकल्प लेकर पूजा स्थल पर चौक बनाएं। इस पर लकड़ी का पाटा रखकर उस पर पूजा लगाएं। पूजन में कांस, बेरी का पत्ता और छेवले की डाली रखें। इसके नीचे शिवलिंग रखें। यदि शिवलिंग न हो तो माता पार्वती और भगवान शिव की फोटो रखी जा सकती है।
इसके बिना अधूरी है हल षष्टी का पूजन
पंडित रामगोविंद शास्त्री के अनुसार हल षष्ठी के पूजन में सात प्रकार के धान चढ़ाए जाते हैं। जिसमें मक्का, ज्वार, चना, महुआ, धान, गेंहू, महुआ, भाड़ का भूजैना (चूल्हें में भुना हुआ) का उपयोग पूजा में किया जाना चाहिए।
इस खास चीज से खुलता है हल षष्ठी का व्रत
पंडित के अनुसार इस दिन को बलराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस दिन हल से जुती हुई चीजों का सेवन वर्जित माना गया है। इसलिए व्रत में हमेशा पसाई के चावल जो लाल रंग के होते हैं, उनका सेवन किया जाता है। इसके अलावा मोरधन के चावल भी इस व्रत में उपयोग किए जातते हैं।
हलषष्ठी व्रत में उपयोग होता है भैंस का दूध
इस व्रत में गाय के दूध का उपयोग नहीं किया जाता। गौ माता हमारे हिन्दू धर्म में पूजनीय है। पर चूंकि इस व्रत में खेतों में हल से जुती चीजों का उपयोग वर्जित है। हल के लिए बैल का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस व्रत में भैंस के दूध का सेवन किया जाता है।के
हल षष्टी पर पुत्र प्राप्ति के लिए टोटका और उपाय
हमारे हिन्दू धर्म में कई कामों के लिए टोटके या उपाय अपनाए जाते हैं। इसी तरह पुत्र प्राप्ति के लिए भी एक टोटका जानकारों द्वारा बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हल षष्ठी के दिन यदि कांस को पौधा (जिसमें सफेद रंग का रुई जैसा फूल लगा होता है) इसी पौधे को मोड़ कर इसकी एक गांठ हल षष्ठी के दिन बांध कर भगवान भोले नाथ और हल षष्ठी मैया से पुत्र प्राप्ति की कामना की जाए तो उसकी मुराद जरूर पूरी होती है।
घर में उगी ये चीजें की जा सकती हैं उपयोग
ऐसा मानते हैं कि हल की जुती चीजें उपयोग न कर पाएं तो घर के गार्डन में उगी मिर्ची का उपयोग भोजन के लिए किया जा सकता है।
बलराम जयंती का महत्व
हिंदू धर्म में बलराम जयंती का बड़ा महत्व है। इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म है। बलराम जी को शेष नाग का अवतार माना जाता है। भगवान बलराम को हल बहुत प्रिय है। यही कारण है कि इस दिन हल की पूजा की जाती है इसलिए इस त्योहार को हल षष्ठी भी कहा जाता है। पूजा के बाद हल का खेतों में प्रयोग करना बेहद शुभ माना जाता है। साथ ही धार्मिक मान्यता है कि हल षष्ठी का व्रत करने से संतान के सारे कष्ट दूर होते हैं और आयु लंबी होती है।
हल षष्ठी की व्रत कथा
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। ये रही हल षष्ठी की व्रतकथा। प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।
यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।
उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।
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