ग्वालियर। MP News: मध्य प्रदेश में झाबुआ-धार के अलावा अब ग्वालियर जिले की पहचान भी कड़कनाथ मुर्गे के रूप में हो गई है। इस बार सर्दी के सीजन में इसकी डिमांड इतनी अधिक बढ़ गई है कि इसे पूरा करने में करीब तीन माह का समय लगेगा।
कड़कनाथ की मांग ग्वालियर(MP News) ही नहीं बल्कि यूपी, राजस्थान,दिल्ली, हरियाणा से लगभग 8 हजार कड़कनाथ मुर्गों के अलावा उसके चूजे और अंडों की भी डिमांड आ चुकी है। ग्वालियर के कृषि विज्ञान केंद्र मध्य प्रदेश का दूसरा कड़कनाथ हैचरी केंद्र है, यहां अंडे से चूजे तैयार होते हैं।
डिमांड पूरी करने में लगेंगे 3 माह
हैचरी सेंटर में मुर्गी के अंडे देने के बाद उसे 15 दिन तक मशीन में रखा जाता है। इसके बाद अंडे से चूजे बाहर आ जाता हैं। जिसे कुछ दिन के अंतराल में दो वैक्सीन लगाई जाती हैं और इसके बाद चूजे बिकने के लिए तैयार हो जाता हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र में हर साल 50 हजार कड़कनाथ के मुर्गा-मुर्गी से चूजे तैयार किए जाते हैं। यह केंद्र वर्ष 2016 से कड़कनाथ(MP News) का उत्पादन कर रहा है। यहां एक कड़कनाथ की कीमत 700 रुपय है। वहीं एक चूजे की कीमत 90 रुपय और एक अंडे की कीमत 20 रुपय है।
इन रोगियों के लिए फायदेमंद
डॉक्टरों की माने तो कड़कनाथ का रंग, रक्त और हड्डी काली होने के कारण इसके चिकन की तासीर काफी गर्म होती है। इसके (MP News)साथ ही इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अन्य नस्लों से अधिक मिलती है। हृदय और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ का चिकन काफी फायदेमंद माना जाता है।
क्यों बढ़ रही कड़कनाथ की डिमांड?
कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारियों का कहना है कि बैसे तो कड़कना की डिमांड हर सीजन में रहती है, लेकिन सर्दियों में इसकी डिमांड और अधिक बढ़ जाती है, जिसका कारण है कि यह शरीर को एनर्जी देता है। इसके कारण भी इसकी डिमांड बहुत ज्यादा है।
भारत के अलावा कहीं और नहीं पाया जाता
यह मुर्गा एक दुर्लभ प्रकार का मुर्गा है। जो भारत के अलावा कहीं और नहीं पाया जाता है। काले रंग की वजह से इस मुर्गे को स्थानीय भाषा में कालीमासी भी कहा जाता है। जानकार मानते हैं कि दूसरी प्रजातियों के मुकाबले यह मुर्गा अधिक स्वादिष्ट, पौष्टिक, सेहतमंद और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। समान्य मुर्गों में जहां 18-20 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है, जबकि कड़कनाथ मुर्गे में करीब 25 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है।
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