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Guthlee Laddoo: 'आपत्तिजनक' शब्द के प्रयोग को लेकर सेंसर के घेरे में आई फिल्म, 24 घंटे के भीतर निर्णय लेने का निर्देश

गुजरात उच्च न्यायालय ने हिंदी फिल्म 'गुठली लड्डू' में वाल्मीकि समुदाय के लिए एक 'आपत्तिजनक' शब्द के प्रयोग को लेकर केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को 24 घंटे के भीतर निर्णय लेने का बृहस्पतिवार को निर्देश दिया।

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Bansal News
Guthlee Laddoo: 'आपत्तिजनक' शब्द के प्रयोग को लेकर सेंसर के घेरे में आई फिल्म, 24 घंटे के भीतर निर्णय लेने का निर्देश

अहमदाबाद। Guthlee Laddoo  गुजरात उच्च न्यायालय ने हिंदी फिल्म 'गुठली लड्डू' में वाल्मीकि समुदाय के लिए एक 'आपत्तिजनक' शब्द के प्रयोग को लेकर केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को 24 घंटे के भीतर निर्णय लेने का बृहस्पतिवार को निर्देश दिया। फिल्म 'गुठली लड्डू' 13 अक्टूबर शुक्रवार को रिलीज होनी है।

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24 घंटे के भीतर निर्णय लेने का निर्देश

न्यायमूर्ति वैभवी नानावटी ने एक आदेश जारी करके सीबीएफसी को सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा छह के प्रावधानों के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए 24 घंटे के भीतर मुद्दे पर निर्णय लेने को कहा है।चूंकि फिल्म शुक्रवार को रिलीज होनी थी इसलिए अदालत ने असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास के अनुरोध पर पेश हुए वकील सिद्धार्थ दवे को तुंरत अदालत का आदेश सीबीएफसी तक पहुंचाने का निर्देश दिया है।

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बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान फिल्म के निर्माताओं में से एक यूवी फिल्म्स ने अदालत को बताया था कि फिल्म विभिन्न फिल्म महोत्सव में दिखाई जा चुकी है और उसे सीबीएफसी ने 'यू' प्रमाणपत्र दिया है।

वालमीकि समुदाय के लिए किया प्रयोग

'यू' प्रमाण पत्र वाली फिल्में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए होती हैं और उन्हें परिवार के अनुकूल माना जाता है।इससे पहले नौ अक्टूबर को न्यायमूर्ति नानावटी ने फिल्म 'गुठली लड्डू' में वाल्मीकि समुदाय के लिए आपत्तिजनक शब्द इस्तेमाल करने को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सीबीएफसी और फिल्म निर्माताओं को नोटिस जारी किए थे।

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अदालत ने निमेश वाघेला द्वारा दायर उस याचिका पर नोटिस जारी किया था जिसमें फिल्म से एक शब्द हटाने के साथ-साथ इसके प्रमाणन को वापस लेने का अनुरोध किया गया था।

ट्रेलर में सुना था आपत्तिजनक शब्द

वाघेला ने फिल्म के रिलीज पर तब तक रोक लगाने का अनुरोध किया था जब तक फिल्म के निर्माता ‘‘आपत्तिजनक’’ शब्द को हटा नहीं देते। उक्त शब्द का प्रयोग हाल ही में रिलीज हुए फिल्म के ट्रेलर में दिखा था।

याचिका में कहा गया है कि फिल्म ने उक्त शब्द का उपयोग करके सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के साथ ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। याचिका में दावा किया गया था कि उक्त शब्द वाल्मिकी समुदाय की भावनाओं को आहत करता है।

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