नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी खासा परेशान है। लेकिन अब इसकी कीमतों में कटौती की जा सकती है। जीएसटी काउंसिल अब इसे जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार कर रही है। 17 सितंबर को लखनऊ में होने वाले काउंसिल की बैठक में इसपर चर्चा हो सकती है। बतादें कि पेट्रोल और डीजल पर इस वक्त तीन तरह के टैक्स और ट्यूटी लगते हैं। एक्साइज, वैट और सेस।
फैसले के बाद 28 प्रतिशत ही टैक्स भरना पड़ेगा!
वर्तमान में पेट्रोल और डीजल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी का हिस्सा केंद्र को जाता है। जबकि वैट राज्य सरकारों के हिस्से में जाता है। हर राज्य अपने यहां अलग-अलग वैट लगाती है। यानी राज्यों को पेट्रोल और डीजल से काफी राजस्व की प्राप्ती होती है। ऐसे में अगर इसे GST के दायरे में लाया जाता है तो राज्यों को काफी नुकसान का अनुमान है। औसतन एक लीटर पेट्रोल पर प्रत्येक व्यक्ति 55 प्रतिशत टैक्स भरता है। ऐसे में अगर इसे GST के हाई स्लैब में भी शामिल किया जाता है तो लोगों को सिर्फ 28 प्रतिशत टैक्स ही भरना पड़ेगा।
केंद्र को होगा भारी नुकसान
राज्यों के अलावा केंद्र को भी इससे भारी नुकसान होगा। क्योंकि केंद्र वर्तमान में पेट्रोल और डीजल से मिलने वाले भारी भरकम टैक्स को राज्यों के साथ साझा नहीं करता है। लेकिन अगर इसे GST के तहत लाया जाता है, तो प्राप्त होने वाले सभी राजस्व को केंद्र और राज्यों के बीच 50:50 के अनुपात में बांटा जाएगा।
केरल हाई कोर्ट ने GST के दायरे में लाने को कहा था
गौरतलब है कि जून में केरल उच्च न्यायालय ने एक रिट याचिका के आधार पर जीएसटी परिषद से पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला करने को कहा था। ऐसे में लखनऊ में होने वाले बैठक में जीएसटी कॉउंसिल हाई स्पीड डीजल और पेट्रोल के अलावा पेट्रोलियम क्रूड, प्राकृतिक गैस और एविएशन टर्बाइन फ्यूल को भी जीएसटी में शामिल करने पर चर्चा कर सकती है।
ऐसा करना आसान नहीं है
हालांकि, जानकार मानते हैं कि ऐसा करना आसान नहीं है। क्योंकि इससे केंद्र और राज्य सरकार को काफी नुकसान होगा और वे इसे कभी लागू करना नहीं चाहेंगे। लेकिन अगर एक क्षण के लिए मान लिया जाए कि ऐसा हो जाए तो लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है।