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Govardhan Puja 2025
Govardhan Puja 2025: गोवर्धन पूजन का पर्व प्रकृति और भगवान कृष्ण के प्रति सम्मान को दर्शाता है। बुधवार, 22 अक्टूबर 2025 को देशभर में इसे पर्व के रूप में मनाया जाएगा। इसकी कथा विष्णु पुराण, भागवत पुराण और अन्य हिन्दू ग्रंथों में वर्णित है।
बुधवार को सूर्योदय के समय प्रतिपदा तिथि रहेगी और प्रतिपदा तिथि 21 अक्टूबर 2025 को शाम 5:54 बजे से लग रही है, जिसका 22 अक्टूबर 2025 को रात 8:16 बजे समापन होगा। इसलिए यह पर्व 22 अक्टूबर को मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। इसलिए इसका पूजन भी बुधवार को उदय तिथि के अनुसार किया जाएगा।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
1. द्वापर युग की बात है। गोकुल और वृंदावन के ब्रजवासी हर साल कार्तिक माह में देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी करते थे। उनका मानना था कि इंद्र ही वर्षा करते हैं, जिससे उनकी फसलें होती हैं और गायों के लिए चारा मिलता है। इसीलिए वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट बनाकर एक भव्य यज्ञ करते थे।
2. भगवान कृष्ण ने पूजा रूकवाई
एक दिन बाल गोपाल कृष्ण ने अपनी माता यशोदा और नंद बाबा से पूछा कि सभी ब्रजवासी यह विशेष पूजा किसके लिए कर रहे हैं। जब उन्हें बताया गया कि यह इंद्रदेव के लिए है, तो श्री कृष्ण ने तर्क दिया:
इंद्रदेव का काम केवल बारिश करना है, लेकिन हमारा पालन-पोषण तो गोवर्धन पर्वत करता है। हमारी गायें वहीं चरती हैं, हमें घास और जड़ी-बूटियां वहीं से मिलती हैं। इसलिए, हमें इंद्र की जगह उस गोवर्धन पर्वत और हमारी गायों की पूजा करनी चाहिए, जो सीधे हमें जीवन देते हैं।
ब्रज के सभी लोग, विशेषकर नंद बाबा, कृष्ण की बुद्धिमानी भरी बात से सहमत हो गए। उन्होंने इंद्र की पूजा रोककर, गोवर्धन पर्वत और अपनी गौ-माता की पूजा शुरू कर दी, और उन्हें छप्पन भोग (अन्नकूट) का प्रसाद अर्पित किया।
3. इंद्र का अहंकार और प्रकोप
जब देवराज इंद्र को पता चला कि ब्रजवासियों ने उनकी पूजा बंद करके एक साधारण बालक (कृष्ण) के कहने पर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी है, तो उनका अहंकार आहत हुआ। इसे अपना घोर अपमान मानते हुए, इंद्र क्रोधित हो उठे।
उन्होंने बादलों के देवता मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रजभूमि पर प्रलयकारी मूसलाधार बारिश करें, जिससे पूरा गांव और पशुधन नष्ट हो जाएं।
4. गोवर्धन धारण लीला
इंद्र के प्रकोप से ब्रज में चारों ओर भयानक जल-प्रलय मच गया। भयभीत ब्रजवासी अपनी रक्षा के लिए भगवान कृष्ण के पास दौड़े। तब कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए एक अद्भुत लीला रची। उन्होंने तत्काल गोवर्धन पर्वत के पास जाकर, उसे अपनी कनिष्ठा (सबसे छोटी) उंगली पर उठा लिया।
गोवर्धन पर्वत एक विशाल छाते (छत्र) की तरह ब्रजवासियों और उनके पशुओं को बारिश से बचाता रहा। सात दिनों तक इंद्र ने लगातार वर्षा की, लेकिन पर्वत के नीचे सभी सुरक्षित और सुखी रहे।
5. इंद्र का अभिमान टूटा
सातवें दिन, जब इंद्र ने देखा कि उनका हर प्रयास विफल हो रहा है और कृष्ण एक साधारण बालक नहीं हैं, तो उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। ब्रह्मा जी ने भी आकर उन्हें बताया कि कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं।
इंद्र का अहंकार चूर हो गया। उन्होंने वर्षा रोक दी और तुरंत नीचे आकर भगवान कृष्ण से अपनी मूर्खता और घमंड के लिए क्षमा याचना की।
गोवर्धन पूजन का महत्व
पौराणिक कथा:इस पूजा का संबंध उस घटना से है जब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को भारी बारिश और इंद्र के क्रोध से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर सात दिनों तक धारण करके छत्र (छाता) की तरह आश्रय दिया था।
प्रकृति के प्रति सम्मान: यह पर्व सिखाता है कि हमें उन चीजों की पूजा करनी चाहिए जो वास्तव में हमें सहारा देती हैं, जैसे कि पहाड़, प्रकृति, खेती की जमीन और पशुधन।
गोवर्धन पूजन की सरल और पारंपरिक विधि
स्नान और वस्त्र: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
1. गोवर्धन की आकृति बनाना
घर के आंगन या प्रवेश द्वार के पास की जगह को साफ करें और गोबर से लीप लें।
गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक आकृति (अमूमन ज़मीन पर एक टीले या लेटे हुए पुरुष की आकृति) बनाई जाती है।
इस आकृति को फूलों, पत्तियों, धान की बालियों, और रंगोली से सजाया जाता है।
साथ ही, गाय, बछड़े, ग्वाल-बालों और भगवान श्री कृष्ण की भी छोटी आकृतियाँ गोबर से बनाई जाती हैं।
अन्नकूट (छप्पन भोग): इस दिन गेहूं, चावल, दालें, फल और विभिन्न प्रकार की सब्जियों से कई (जैसे 56) व्यंजन बनाकर भोग की तैयारी करें।
2. गौ-पूजा (गोधन पूजा)
गोवर्धन पूजा से पहले गौ माता की पूजा की जाती है, जो इस पर्व का एक अभिन्न अंग है:
गौ-श्रृंगार: घर में गाय और बैल हों तो उन्हें नहलाकर सजाया जाता है। उनके सींगों पर तेल या गेरू लगाया जाता है।
भोग अर्पण:गायों को गुड़, हरी घास और घर में बने पकवान खिलाकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
3. गोवर्धन और कृष्ण की पूजा
गोवर्धन की पूजा शुभ मुहूर्त में सुबह या शाम को की जाती है:
थाली सजाना: पूजा की थाली में रोली, अक्षत (चावल), जल, दही, शहद, बताशे, फूल, धूप, दीप, और भोग के लिए तैयार किए गए व्यंजन (अन्नकूट) रखें।
गोवर्धन की नाभि: गोबर से बनाई गई गोवर्धन की आकृति में, नाभि के स्थान पर एक मिट्टी का दीपक या कटोरी रखें। इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद और बताशे डालें। पूजा के बाद इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
पूजा-अर्चना: गोवर्धन महाराज और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति/चित्र पर रोली-अक्षत चढ़ाएँ, दीप जलाएँ और धूप-अगरबत्ती दिखाएँ।
मंत्र जाप और प्रार्थना: भगवान कृष्ण के नाम का जाप करें और गोवर्धन महाराज से सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
पूजन के समय का मंत्र
"गोवर्धन धराधार गोकुल-त्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव।।"
अन्नकूट पूजन शुभ मुहूर्त
सुबह 6:26 बजे से 8:42 बजे तक।
दोपहर 3:29 बजे से शाम 5:44 बजे तक
कुल अवधि 2 घंटे 16 मिनट
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