बेंगलुरु। Aditya-L1 भारत के पहले सूर्य मिशन के तहत सूरज के बाहरी वातावरण के अध्ययन के लिए भेजे गए ‘आदित्य-एल1’ यान की पृथ्वी की कक्षा परिवर्तन से संबंधित चौथी और आखिरी प्रक्रिया मंगलवार तड़के सफलतापूर्वक पूरी कर ली गई।
इसी के साथ पृथ्वी की कक्षा में दो सितंबर से चक्कर लगा रहा ‘आदित्य-एल1’ ट्रांस-लैग्रेंजियन बिंदु-1 की तरफ स्थानांतरण कक्षा में दाखिल हो गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने यह जानकारी दी।
जानिए इसरो ने क्या दी जानकारी
इसरो ने बताया कि ट्रांस-लैग्रेंजियन बिंदु-1 की तरफ स्थानांतरण कक्षा में प्रवेश करने के साथ ही ‘आदित्य-एल1’ की लैग्रेंज बिंदु एल-1 के आसपास के निर्धारित क्षेत्र में पहुंचने की लगभग 110 दिन लंबी यात्रा शुरू हो गई। लैग्रेंजियन बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के बीच गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है, जिससे किसी उपग्रह को इस बिंदु पर रोकने में आसानी होती है।
Aditya-L1 Mission:
Aditya-L1 has commenced collecting scientific data.The sensors of the STEPS instrument have begun measuring supra-thermal and energetic ions and electrons at distances greater than 50,000 km from Earth.
This data helps scientists analyze the behaviour of… pic.twitter.com/kkLXFoy3Ri
— ISRO (@isro) September 18, 2023
इसरो ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, “सूर्य-पृथ्वी एल1 बिंदु की तरफ रवाना! ट्रांस-लैग्रेंजियन बिंदु-1 की तरफ स्थानांतरण कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया (टीएल1आई) सफलतापूर्वक निष्पादित की गई है। अंतरिक्ष यान अब एक प्रक्षेप पथ पर है, जो उसे सूर्य-पृथ्वी एल1 बिंदु पर ले जाएगा। इसे लगभग 110 दिनों के बाद एक प्रक्रिया के माध्यम से एल1 के आसपास की कक्षा में स्थापित किया जाएगा।”
लगातार पांचवीं बार पाई सफलता
इसरो ने कहा कि यह लगातार पांचवीं बार है जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने किसी वस्तु को अंतरिक्ष में किसी अन्य खगोलीय पिंड या स्थान की तरफ सफलतापूर्वक स्थानांतरित किया है। ‘आदित्य एल1’ भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित वेधशाला है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित पहले सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु (एल-1) में रहकर सूरज के बाहरी वातावरण का अध्ययन करेगी।
इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी57) ने दो सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के दूसरे लॉन्च पैड से ‘आदित्य एल1’ का सफल प्रक्षेपण किया था।
इन तारीखों में किया था कक्षा परिवर्तन
‘आदित्य एल1’ की कक्षा परिवर्तन संबंधी पहली, दूसरी और तीसरी प्रक्रिया को क्रमशः तीन सितंबर, पांच सितंबर और 10 सितंबर को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया था। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में स्थापित यान को बिना किसी रुकावट या ग्रहण के सूर्य पर लगातार नजर रखने का लाभ मिलता है।
इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष के मौसम पर उनके प्रभाव का आकलन करना संभव हो पाता है। ‘आदित्य एल1’ इसरो और भारतीय ताराभौतिकी संस्थान, बेंगलुरु तथा‘ इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे’ सहित अन्य राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित सात वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया है।
जानिए कैसा है उपकरण
ये उपकरण विद्युत-चुंबकीय, कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टर का इस्तेमाल कर प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों-कोरोना-का अध्ययन करेंगे।
‘आदित्य एल1’ के चार उपकरण विशेष सुविधाजनक बिंदु एल1 का उपयोग करते हुए सीधे सूर्य पर नजर रखेंगे, जबकि बाकी तीन उपकरण एल1 पर कणों और क्षेत्रों का ‘इन-सीटू’ (यथा-स्थान) अध्ययन करेंगे, जिससे अंतरग्रहीय माध्यम में सौर गतिशीलता के प्रभाव पर महत्वपूर्ण डेटा हासिल होने की उम्मीद है।
जल्द संपूर्ण डाटा मिलने की उम्मीद
‘आदित्य एल1’ के उपकरणों से सूर्य के परिमंडल की गर्मी और सौर हवा, सूर्य पर आने वाले भूकंप या ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई), पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष मौसम, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता और कणों एवं क्षेत्रों के प्रसार आदि को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण डेटा मिलने की संभावना है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच ‘लैग्रेंजियन’ बिंदु (या पार्किंग क्षेत्र) हैं, जहां पहुंचने पर कोई वस्तु वहीं रुक जाती है। लैग्रेंजियन बिंदुओं का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है। अंतरिक्ष यान इन बिंदुओं का इस्तेमाल अंतरिक्ष में कम ईंधन खपत के साथ लंबे समय तक रहने के लिए कर सकते हैं।
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