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अब यादों में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह: अंत्येष्टि और स्मारक पर भावविहीन आचरण क्रूर और कपट राजनीति का शर्मनाक उदाहरण

डॉ. मनमोहन सिंह का रास्ता जनता की राजनीतिक कभी नहीं था। दुनिया के अर्थ जगत के विशेषज्ञ के रूप में भारत में आर्थिक संकट के समाधान में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

Rahul Garhwal by Rahul Garhwal
December 31, 2024
in टॉप न्यूज, विचार मंथन
Former PM Manmohan Singh Memorial BJP Vs Congress Saryusut Mishra
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Former PM Manmohan Singh: राष्ट्रीय ‘शोक’ भी राजनीति की अराष्ट्रीय ‘सोच’ को नहीं रोक सका। किसी महापुरुष का प्रयाण राष्ट्रीय आत्मावलोकन का अवसर होता है। शोक में तो पक्ष-विपक्ष नहीं सोचा जा सकता। पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह का निधन पार्टी से ज्यादा राष्ट्रीय क्षति मानी जा सकती है। उनकी अंत्येष्टि और स्मारक पर भावविहीन आचरण क्रूर और कपट राजनीति का शर्मनाक उदाहरण है। राष्ट्रीय व्यक्तित्व को किसी धर्म से जोड़ना उनकी विशेषज्ञता और राष्ट्रीय योगदान को कमतर करने का ही प्रयास कहा जाएगा।

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का योगदान अविस्मरणीय

डॉ. मनमोहन सिंह का रास्ता जनता की राजनीति कभी नहीं था। दुनिया के अर्थ जगत के विशेषज्ञ के रूप में भारत में आर्थिक संकट के समाधान में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। पीएम बनने के पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्त मंत्री के रूप में उनकी विशेषज्ञता स्थापित हो चुकी थी। डॉ. मनमोहन सिंह के पीएम बनने की घटना ‘राजनीति की राजनीति द्वारा राजनीति के लिए’ घटित हुई थी। उनके कार्यकाल में उनकी दक्षता, नेक नियति और ईमानदारी को मुखौटे के रूप में उपयोग ने यही साबित किया कि उनका मनोनयन राजनीति के लिए ही किया गया था। पीएमओ से ऊपर सोनिया गांधी की एनएसी का अस्तित्व यही साबित करता है कि कांग्रेस द्वारा उनका राजनीतिक उपयोग किया गया था।

वैचारिक विरोधी होने के बावजूद डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर केंद्र सरकार की भूमिका उनके योगदान के प्रति पूर्ण सम्मान और कद के अनुरूप ही कही जाएगी। निधन के पश्चात केंद्रीय कैबिनेट ने यह निर्णय लिया कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। इसके साथ ही उनके योगदान को देखते हुए दिल्ली में उनका स्मारक बनाया जाएगा।

अंत्येष्टि और स्मारक के नाम पर राजनीति

स्मारक निर्माण की प्रक्रिया में लगने वाले समय और ट्रस्ट के गठन की अवधि को देखते हुए उनकी अंत्येष्टि निगम बोध घाट पर संपन्न हुई। जब स्मारक बनाने का निर्णय केंद्र सरकार द्वारा ले लिया गया था, उसकी जानकारी कांग्रेस और उनके परिवार को दी गई थी, तो फिर स्मारक और अंत्येष्टि स्थल के नाम पर कांग्रेस द्वारा शुरू की गई राजनीति, भाजपा विरोध से ज्यादा मनमोहन के अनादर के रूप में परिभाषित की जा सकती है। एक बार जब अंत्येष्टि संपन्न हो गई, उसके बाद भी राहुल गांधी द्वारा अनादर की बात सोशल मीडिया पर पोस्ट करना, उसी तरीके का भाव प्रकट करता है जैसा कि राजनीति में अपराधियों की एंट्री रोकने के लिए मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को नॉनसेंस कहते हुए राहुल गांधी द्वारा फाड़ दिया गया था।

‘मेरे मूल्यांकन में इतिहास ज्यादा उदार होगा’

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी की हत्या के बदले में सिख नरसंहार कांग्रेस का काला अध्याय रहा है। सिख सेंटीमेंट को फुसलाने के नजरिए से ही सिख प्रधानमंत्री बनाया गया था। एक विशेषज्ञ व्यक्तित्व का इसके लिए उपयोग किया गया। मनमोहन सिंह पर व्यक्तिगत तौर से कोई दाग नहीं है, लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने घोटालों का रिकॉर्ड बनाया था। इन घोटालों के कारण ही कांग्रेस की सरकार को पराजय मिली और भाजपा केंद्रीय सत्ता में आने में सफल हुई।

उन्हें एक्सीडेंटल पीएम तक कहा गया। डॉ. मनमोहन सिंह ने स्वयं कहा था कि उनके मूल्यांकन में इतिहास ज्यादा उदार होगा। उनका अनुभव कितना सही साबित हुआ, वैचारिक विरोधी बीजेपी सरकार ने उनके योगदान को उदारता पूर्वक न केवल माना बल्कि उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए स्वस्फूर्त पहल की। पीएम रहते हुए जो लोग मनमोहन के प्रति उदार नहीं थे, वही लोग आज भी अनुदार दिखाई पड़ रहे हैं। प्रयाण के बाद भी अनादर की बात, अनादर करने वाली सोच ही प्रकट कर सकती है।

पूर्व प्रधानमंत्री के अनादर की बात जब आई तो फिर अनादर का इतिहास भी खुलने लगा। बीजेपी की ओर से पूर्व प्रधानमंत्रियों के कांग्रेस द्वारा अपमान की घटनाओं का इतिहास खोला गया। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय में भी नहीं जाने दिया गया था, उनकी तो दिल्ली में अंत्येष्टि भी नहीं हो पाई। दस साल कांग्रेस की सरकार रहने के बावजूद नरसिंह राव का स्मारक और उन्हें भारत रत्न बीजेपी की सरकार में मिल पाया।

स्मारक पर राजनीति कांग्रेस की मजबूरी

प्रणव मुखर्जी की बेटी ने उनके अपमान का मामला कांग्रेस के खिलाफ उठाया हैं। गांधी परिवार ने अपने परिवार के नेताओं के अलावा किसी भी प्रधानमंत्री का कोई भी स्मारक दिल्ली में नहीं बनाया। संजय गांधी तो केवल सांसद थे, फिर भी गांधी परिवार का होने के कारण उनका स्मारक भव्यता के साथ परिवार के पूर्व प्रधानमंत्री जैसा बनाया गया।

प्रधानमंत्री लोक सेवक होता है। यह पद भी संसदीय व्यवस्था का ही पद है। व्यवस्था के लोग अगर अपने स्मारक के लिए सम्मान और अपमान की राजनीति करेंगे तो फिर विकास की राजनीति पीछे चली जाएगी। एक वक्त के बाद तो स्मारकों के लिए उपयुक्त स्थान भी नहीं बचेगा। अभी भी ऐसा हो रहा है। कांग्रेस यही चाहती थी कि राजघाट के आसपास जहां पूर्व प्रधानमंत्री की अंत्येष्टि और समाधि स्थल बने हैं, वहीं डॉ. मनमोहन सिंह का भी स्मारक बने।

स्मारक पर राजनीति को कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी कहा जा सकता है। जब नरेंद्र मोदी सरकार अपनी तरफ से स्मारक बनाने के लिए सहमत थी, तो फिर अगर किसी भी ढंग से इसमें विवाद नहीं खड़ा किया जाता तब तो मनमोहन सिंह का ब्रांड और सिख धर्म की राजनीति बीजेपी हथिया लेती। कांग्रेस ने जानबूझकर इस पर विवाद खड़ा किया। इस बात पर भी विचार होना चाहिए कि लोक सेवकों की स्मृतियां तो संजोई जाए। देश के लिए उनके बहुमूल्य योगदान को तो अविस्मरणीय रखा जाए, लेकिन समाधि, स्मारक बनाने के औचित्य पर जरूर सोचा जाए।

मनमोहन सरकार के बहुत सारे कामों पर विवाद

मनमोहन सिंह सरकार ने देश हित में महत्वपूर्ण काम किया है तो बहुत सारे उनके ऐसे काम हैं जिन पर विवाद है। उनके जो काम तुष्टिकरण की राजनीति के लिए किए गए थे उनको मान्यता क्यों मिलना चाहिए। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट मनमोहन सरकार की तुष्टिकरण की दिशा का संकेत है। 2013 में उनकी सरकार ने वक्फ एक्ट में जो बदलाव किया था, उसको वर्तमान सरकार ने उचित नहीं माना है, उसमें संशोधन का विधेयक जेपीसी के सामने विचार में है।

संसदीय व्यवस्था में जनादेश ही नीतियों का सम्मान और काम का अपमान होता है। जिस भी सरकार का जनादेश में पतन हो जाता है, उसके कामों का संग्रहालय तो बन सकता है, लेकिन अगर मूर्तियां, समाधियां, स्मारक अगर भविष्य में नेगेटिव मैसेज देने लगे तो, फिर उनकी शुरुआत ही नहीं होनी चाहिए।

पूरी दिल्ली आज मुगल साम्राज्य के प्रतीकों से भरी पड़ी है। मुगल शासकों के नाम से सड़कों के नाम और समाधियों की भरमार है। यह वास्तविकता है कि कालांतर में बदलती परिस्थितियां, पुरानी चीजों को अनुपयोगी साबित कर देती हैं। जब आज हम प्रतीकों को तोड़ रहे हैं, इतिहास को खोद रहे हैं, अपनी जड़ों की तलाश कर रहे हैं, तो फिर यह भविष्य में भी होगा। इसलिए ऐसे प्रतीकों की राजनीति ही बंद हो जानी चाहिए।

‘खामोशी ने मन मोहा, सवालों ने दिल तोड़ा’

डॉ. मनमोहन सिंह की दक्षता, नेक नियति और ईमानदारी के साथ उनकी खामोशी ने देश का मन मोहा था। उनके प्रयाण के बाद उनको लेकर उठाए गए कांग्रेस के सवालों ने देश का दिल तोड़ दिया है। देश के लिए काम ही किसी प्रधानमंत्री का जीवंत स्मारक होता है। अब क्योंकि सरकार मनमोहन सिंह का स्मारक बना रही है तो फिर इस पर दलगत राजनीति उनका सम्मान नहीं बल्कि उनका अपमान हीं कर रही है। कपट और क्रूर राजनीति अपना मन तो मोह सकती है, लेकिन देश का मन ऐसी राजनीति को कभी स्वीकार नहीं करता।

( लेखक सरयूसुत मिश्र (मंगला मिश्र) मप्र सरकार के जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त अतिरिक्त संचालक हैं )

Rahul Garhwal

Rahul Garhwal

करीब 5 साल से पत्रकारिता जगत में सक्रिय। नवभारत से शुरुआत की, स्वराज एक्सप्रेस, न्यूज वर्ल्ड और द सूत्र में भी काम किया। खबर को बेहतर से बेहतर तरीके से पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश रहती है। खेल की खबरों में विशेष रुचि है। जो सीखा है उसे निखारना और कुछ नया सीखने का क्रम जारी है।

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