Farmer’s Success Story: आजकल किसान परंपरागत खेती से हटकर खेती की तकनीक में नवाचार लाकर कम लागत में अच्छा मुनाफा प्राप्त करने की दिशा में कार्यरत हैं। इसी दिशा में छत्तीसगढ़ के किसान किशोर राजपूत ऐसे किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उभरे हैं।
वे न केवल स्वयं नवाचार अपना कर कम लागत में औषधीय फसलों की जैविक खेती करके फसल को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचकर लाखों में कमाई कर रहे हैं, बल्कि राज्य और देश भर के किसानों को प्रशिक्षण देकर जैविक खेती की तरफ प्रोत्साहित कर रहे हैं।
आइए जानते हैं उनकी सफलता की प्रेरक कहानी
किशोर राजपूत का जन्म और परिवार
किशोर राजपूत छत्तीसगढ़ के निवासी हैं। उनका जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जिले के नगर पंचायत नवागढ़ के गांव जूनाडाडू में हुआ था। पिता गेंदालाल राजपूत किसान थे। इसलिए बचपन से ही खेती किसानी के प्रति रुझान रहा और बचपन से ही खेती के गुण पिता से सीखना शुरू कर दिया।
किशोर राजपूत की शिक्षा
किशोर राजपूत ने नवागढ़ नगर पंचायत के बड़ाडाडू नामक गांव के स्कूल में पहली और दूसरी की शिक्षा प्राप्त की और दूसरी से बारहवीं तक की शिक्षा नवागढ़ के स्कूल से प्राप्त की।
औषधीय फसलों की खेती का आइडिया
किशोर के पिता और दादा आयुर्वेदिक वनस्पतियों से ग्रामवासियों का इलाज करते थे. इसीलिए किशोए की भी रुचि आयुर्वेद की तरफ कही न कही बचपन से थी.
12वीं उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने नवागढ़ में ‘लोदेश्वर आर्युवेद’ के नाम से आर्युवेदिक दवाखाना प्रारंभ किया और उसे 6 वर्षों तक संचालित करते रहे। दवाखाने से उनकी आमदनी ₹10,000 प्रतिमाह थी।
आर्युवेदिक दवाखाना में उन्हें कई तरह के औषधीय पौधों की ज़रूरत पड़ती। ऐसे में उन्हें औषधीय फसलों की खेती करने का आइडिया आया और उन्होंने उसके बाज़ार का सर्वे प्रारंभ किया। राज्य और अंतर्राज्यीय व्यापारियों के संपर्क में आकर उन्हें औषधीय पौधों की बाज़ार में मांग का अंदाज़ा हो गया और उन्होंने विभिन्न प्रकार की औषधीय गुणों से युक्त वनस्पतियों की कृषि शुरू कर दी।
नवाचार से कर रहे हैं कम लागत पर जैविक खेती
प्रारंभ में उन्होंने सर्पगंधा की खेती की, बाद में अश्वगंधा, मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना, खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा आदि की खेती में भी हाथ आजमाया और सफलता पाई।
सर्पगंधा की खेती और हर साल ₹4 लाख की कमाई
सर्पगंधा एक औषधीय गुण वाला पौधा है, जिसके फल, तने से लेकर जड़ तक का उपयोग औषधि निर्माण में होता है। इसकी फसल 18 माह में पूरी तरह तैयार हो जाती है। वर्तमान में किशोर राजपूत सर्पगंधा की खेती से प्रतिवर्ष लगभग ₹4,00,000 की आमदनी कर रहे हैं।
अश्वगंधा की खेती और साल में ₹1 लाख की कमाई
अश्वगंधा एक प्रकार का पौधा है, जिसकी जड़ों और पत्तियों से घोड़े की गंध आने के कारण इसका नाम अश्वगंधा पड़ा। इसका उपयोग कई प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में होता है। भारत में अश्वगंधा की जड़ों की मांग 7000 टन प्रति वर्ष है।
अश्वगंधा की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है। ये उन फसलो में शुमार है, जिनमें कम लागत में अच्छा उत्पादन होता है। इसलिए अश्वगंधा की खेती कर किसान अपनी लागत का तीन गुना लाभ प्राप्त कर सकते हैं। किशोर राजपूत अश्वगंधा की खेती से हर वर्ष लगभग ₹1,00,000 की कमाई कर रहे हैं।
अन्य औषधीय फसलों की खेती और बंपर मुनाफा
अंतर्वती कृषि में तुलसी और दमनक के बीज की साथ में फसल लेकर ₹300 की लागत लगाकर ₹20 – ₹30 हजार का मुनाफा कमाया।
किशोर राजपूत अपने खेत के खाली पड़े स्थानों का उपयोग कर कमाई करना चाहते थे। इसलिए उन्हों खेतों की मेड़ों पर सतावर, कौच बीज, सर्पगंधा की रोपाई की और इनसे भी अच्छा लाभ कमाया।
बाद में किशोर ने आंवला, भृंगराज, सरपुंख, नागर मोथा की खेती भी शुरू की और बरसात में स्वयं उगने वाली वनस्पतियों के रख रखाव का ध्यान रखने लगे।
धीरे धीरे सुनियोजित तौर पर किशोर अश्वगंधा के साथ सरसों, धान में बच और ब्राह्मी, गन्ने के साथ मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना, खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा आदि की फसल लेने लगे।
शुरुवाती चरणों में किशोर को औषधीय फसलों की खेती में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा और नुकसान भी उठाना पड़ा। लेकिन समय के साथ वे अपनी जानकारी बढ़ाते रहे और आज वे अपने नुकसान को मुनाफे में बदल चुके हैं।
किशोर राजपूत किसान की सफ़लता
जैविक खाद का उपयोग कर कम लागत में खेती और ज्यादा मुनाफा
प्रायः किसान रबी के मौसम में धान की फसल काटने के बाद उसके अवशेष को खेत में ही जला देते हैं, जिससे जमीन के सूक्ष्म जीव मर जाते हैं और खेत की उर्वरता खत्म हो जाती है, धीरे-धीरे खेत बंजर होने लगते हैं।
किशोर राजपूत ने नवाचार अपनाते हुए अवशेष जलाने के बजाय खेत में गहरी जुताई की और उसके लगभग सप्ताह के बाद रोटावेटर चलाकर उसे जमीन में ही नष्ट कर दिया। बरसात के बाद धान का वही पैरा डिकम्पोज होकर रसायनिक खाद का काम कर रहा और उर्वरक में होने वाला खर्च बच रहा है।
इसके अतिरिक्त किशोर राजपूत गोबर, गोमूत्र जैसे पशुओं के अपशिष्ट का इस्तेमाल खाद के रूप में कर रहे हैं।
दो एकड़ की जमीन अब 100 एकड़ पर पहुंची
किशोर राजपूत के गांव में उनके पास दो एकड़ जमीन थी, उन्होंने नवाचार अपनाते हुए दो एकड़ की जमीन में तुलसी की खेती की। उसमें अच्छा मुनाफा हुआ, तो अपने खेत के आसपास की लगभग 70 एकड़ जमीन लीज पर वहां तुलसी और ब्लैक राइस लगाने लगे। आज वे लगभग 100 एकड़ की जमीन में खेती कर रहे हैं।
हर साल 30 क्विंटल औषधि का उत्पादन और बिक्री
किशोर राजपूत कई प्रकार की औषधियों की जैविक कृषि कर रहे हैं। वे हर साल सीजन के अनुसार तुलसी, अश्वगंधा, कालमेघ (चिरैता), गिलोय, पाषाणभेद, केवाच, काली हल्दी, सर्पगंधा, सतावर, नींबूघास आदि की फसल अपने खेतों में लगाते हैं, जिससे उन्हें प्रतिवर्ष लगभग 30 क्विंटल औषधियों का उत्पादन होता है।
इन औषधियों की देश विदेश में अच्छी खपत है। वे छत्तीसगढ़ के स्थानीय एजेंटों के माध्यम से दिल्ली, गुजरात और पश्चिम बंगाल की कंपनियों को औषधीय उत्पादों को बेचकर अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
हर साल कमा रहे हैं 10-12 लाख का शुद्ध मुनाफा
कोरोना के बाद से भारत में विभिन्न प्रकार के औषधीय जड़ी बूटियों की मांग बढ़ गई है। कंपनियों द्वारा खस, पामारोज, जीरेनियम, विष्णुकांता, वच, पिपली की खेती की मांग भी लगातार की जा रही है। किशोर औषधीय उत्पादों की खेती से हर साल 10 से 12 लाख का शुद्ध मुनाफा उठा रहे हैं।
किशोर राजपूत को मिले सम्मान और अवार्ड
कृषि क्षेत्र में उनके सराहनीय योगदान को देखते हुए किशोर राजपूत को कई सम्मानों से नवाजा गया है।
–अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण योद्धा अवॉर्ड 2021
–बायोडायवर्सिटी अवॉर्ड 2021
–अंतर्राष्ट्रीय कबीर अवार्ड सम्मान 2022
–छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान 2022
–जैविक किसान अवॉर्ड
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